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फर्जी खबरों पर प्रहार जरूरी: महामारी काल में कोरोना से निपटने में बाधा बनी थी फेक न्‍यूज

फेक न्यूज नकारात्मक माहौल बनाती है। ऐसी खबरें अमूमन गुमराह करने अफवाह फैलाने और किसी व्यक्ति या संस्था की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के उद्देश्य से फैलाई जाती हैं। इसके लिए अमूमन इंटरनेट मीडिया का सहारा लिया जाता है।

By TilakrajEdited By: Published: Wed, 13 Oct 2021 09:31 AM (IST)Updated: Wed, 13 Oct 2021 09:31 AM (IST)
फर्जी खबरों पर प्रहार जरूरी: महामारी काल में कोरोना से निपटने में बाधा बनी थी फेक न्‍यूज
फेक न्यूज फैलाना या उसमें सहायक बनना दोनों अनैतिक

सुधीर कुमार। यूट्यूब ने हाल में अपने प्लेटफार्म पर उपलब्ध समस्त एंटी-वैक्सीन सामग्री को ब्लाक करने का निर्णय लिया है। इसका उद्देश्य कोरोनारोधी टीके के खिलाफ दुष्प्रचार और अफवाहों पर रोक लगाना है। इससे फेक न्यूज के प्रसार को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी। इस अनूठी पहल का अनुकरण इंटरनेट मीडिया के अन्य मंचों को भी करना चाहिए। याद रहे कि महामारी काल में फेक न्यूज के तीव्र प्रसार ने कोरोना से निपटने में एक बाधा का काम किया था। उस दौरान कई संदेशों के जरिये लोगों को भ्रमित कर डराने की कोशिश की गई। बाद में वैक्सीन को लेकर फर्जी खबरों ने लोगों के जेहन में डर पैदा कर दिया। उस डर के आगे कई लोगों की जिजीविषा हार गई।

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फेक न्यूज नकारात्मक माहौल बनाती है। ऐसी खबरें अमूमन गुमराह करने, अफवाह फैलाने और किसी व्यक्ति या संस्था की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के उद्देश्य से फैलाई जाती हैं। इसके लिए अमूमन इंटरनेट मीडिया का सहारा लिया जाता है, क्योंकि एक तो उसकी पहुंच बहुत आसान है और दूसरी यही कि उसमें किसी की जिम्मेदारी-जवाबदेही नहीं। कई बार ऐसी फर्जी खबरें सामाजिक वैमनस्यता बढ़ाने के लिए भी फैलाई जाती हैं। कुछ घटनाओं में फेक न्यूज ‘माब लिंचिंग’ यानी हिंसक घटनाओं की वजह भी बनी है। ऐसे में फेक न्यूज पर विराम नहीं लगाया गया तो उसके परिणाम बेहद घातक होंगे।

भारतीय दंड संहिता यानी आइपीसी के अनुसार झूठी, गलत खबरें या अफवाह फैलाना दंडनीय अपराध है। आइपीसी की धारा-505 (ख) के तहत विभिन्न समुदायों के बीच शत्रुता, घृणा या वैमनस्य पैदा करने वाले कथन या रचना के परिचालन के लिए दोषी ठहराए जाने पर व्यक्ति को अधिकतम तीन साल कारावास और जुर्माना या दोनों हो सकता है। इसके बावजूद फेक न्यूज का प्रसार थमने के बजाय बढ़ता ही गया है।

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की ताजा रपट के मुताबिक, 2019 की तुलना में 2020 में फेक न्यूज के प्रसार में 214 फीसद की वृद्धि हुई। गत वर्ष फेक न्यूज की 1527 घटनाएं सामने आईं। इनमें सर्वाधिक घटनाएं तेलंगाना (273), तमिलनाडु (188) और उत्तर प्रदेश (166) में दर्ज की गईं। नागरिकों को सही समय पर पारदर्शी और सत्य खबर मिलने से लोकतंत्र की बुनियाद मजबूत होती है।

फेक न्यूज फैलाना या उसमें सहायक बनना दोनों अनैतिक हैं। फेक न्यूज लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को भी बुरी तरह प्रभावित कर सकता है। अत: समाचार के लिए भरोसेमंद स्रोत को ही प्राथमिकता दें। मुख्य स्रोत से पुष्टि किए बगैर किसी भी खबर को फारवर्ड न करें। फेक न्यूज की श्रृंखला को समझदारी से तोड़ा जा सकता है। भ्रम न फैलाएं और न ही उसका हिस्सा बनें। राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों का पालन करें और सौहार्दपूर्ण परिवेश बनाने में अपना योगदान दें।

(लेखक बीएचयू में शोध अध्येता हैं)


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