DATA STORY : कोरोना दौर में फेक न्यूज का इस तरीके से हुआ प्रसार, लोगों ने बताया किन खबरों पर करते हैं विश्वास
यह फेक न्यूज पर एक साइंटिफिक पेपर है। इसमें बताया गया है कि कोरोना के दौरान फेक न्यूज किस तरह से फैली। पता चला कि कोरोना जानकारी के लिए 30 फीसद लोग व्हाट्सएप प्रयोग करते हैं। 13 फीसद ने कहा कि उन्होंने कभी मैसेज को नहीं जांचा।
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। पूरे देश में कोरोना का कहर जारी है। एक तरफ जहां देश-दुनिया इस बीमारी से लड़ रही है तो दूसरी तरफ इसकी भ्रामक जानकारियों से। पूरी दुनिया के समक्ष लोगों को बचाने के लिए इस फेक न्यूज युद्ध से भी मुकाबला करना था तो वहीं लोगों तक सच को भी प्रस्तुत करना भी अहम जिम्मेदारी बन गई थी। भारत समेत दुनिया भर के देशों में कोरोना से जुड़ी भ्रामक जानकारियां लोगों तक पहुंची जिन्हें बार-बार गलत साबित करने के लिए सरकारी और प्राइवेट मीडिया को काफी मशक्कत करनी पड़ी। इसे लेकर समय-समय पर स्टडी होती रही है। हाल ही में कोरोना के दौरान दुष्प्रचार, भ्रामक खबरों के फैलने पर रोस्टर जनरल अस्पताल (अमेरिका), फाउंडेशन फॉर रिसर्च एंड एजुकेशन इन एंडोस्कोपी (पुणे) और बीजेएमसी अस्पताल (पुणे) ने एक शोध किया। स्टडी रिपोर्ट को जे अमोल बापाये और हर्ष अमोल बापाये ने किया है।
मैसेज भेजने से पहले जांचते नहीं लोग
यह फेक न्यूज पर एक साइंटिफिक पेपर है। इसमें बताया गया है कि कोरोना के दौरान फेक न्यूज किस तरह से फैली। इसमें सामने आया है कि कोरोना जानकारी के लिए 30 फीसद लोग व्हाट्सअप का प्रयोग करते हैं। जिसमें से 50 फीसद से संदेशों को आगे भेजने से पहले ही उनकी जांच की गई। 13 फीसद ने कहा कि फॉरवर्ड करने से पहले उन्होंने कभी मैसेज को नहीं जांचा। रिपोर्ट में सामने आया कि कुछ लोग ही बड़ी तादाद में मैसेज भेजने के लिए जिम्मेदार है। हालांकि 14 फीसद लोग तीन या तीन से अधिक मैसेज फॉरवर्ड करते हैं तो पांच प्रतिशत लोग नौ और उससे अधिक मैसेज भेजते हैं।
तीन चौथाई भारतीयों ने माना कि लिंक अटैच करना या किसी स्रोत के नाम का उल्लेख करने से मैसेज अधिक विश्वसनीय हो जाता है हालांकि इससे उस मैसेज का सही होने का दावा साबित नहीं होता है। एक तिहाई लोगों ने माना कि वह किसी परिचित द्वारा भेजे गए मैसेज को सही मानते हैं।
इस उम्र के लोग सबसे अधिक फंस रहे झूठ के जाल में
सर्वें स्टडी रिपोर्ट में सामने आया कि 65 साल से अधिक के लोग भ्रामक जानकारियों के अधिक शिकार होते हैं। वह इन झूठी खबरों पर जल्दी विश्वास कर लेते हैं। वहीं 25 साल से कम उम्र के लोग इन पर कम विश्वास करते हैं। 24 से 27 फीसद लोगों ने माना कि वह कोरोना में हर्बल, आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक उपचारों को आजमाने पर विचार कर सकते हैं। 7 से 8 फीसद ने कहा कि वह हर्बल, आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक उपचारों का सहारा ले चुके हैं जबकि 12 प्रतिशत ने माना कि उन्होंने घरेलू उपचार का इस्तेमाल किया।
ऐसे करें फैक्ट चेक
मैसेज की जांच कराने के लिए आप फैक्ट चेकिंग सेवाओं की मदद ले सकते हैं। उस मैसेज से जुड़े किसी सरकारी विभाग या आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर भी सत्यता जांच सकते हैं। यही नहीं कई मीडिया वेबसाइट व्हाट्सएप चैटबॉट के माध्यम से भी लोगों द्वारा भेजे गए संदेश को सत्यापित करती है। ऐसी वेबसाइट्स के संपर्क ईमेल एड्रेस या मोबाइल नंबर आप हमेशा अपनी कांटेक्ट लिस्ट में रख सकते हैं। इसके अलावा कई फैक्ट चेकिंग वेबसाइट ने फैक्ट चेक करने के तरीकों को भी दे रखा है। उदाहरण के तौर पर विश्वास न्यूज ने अपनी बेवसाइट पर https://www.vishvasnews.com/fact-check-tools-hindi.pdf" rel="nofollow फैक्ट चेक करने के सामान्य तरीकों के बारे में आसान भाषा में जानकारी दी है। इसको जानकर और पढ़कर फैक्ट चेक के बारे में अपनी समझ को बढ़ा सकते हैं और भ्रामक खबरों से बच सकते हैं। वहीं इसी बेवसाइट पर आप अपनी खबरों के सत्यापन के लिए https://www.vishvasnews.com/submit-news/" rel="nofollow पर संदेश भी भेज सकते हैं।
इसके अलावा आप पीआईबी की बेवसाइट https://factcheck.pib.gov.in/" rel="nofollow पर भी आप तथ्यों की पड़ताल करवा सकते हैं। यहां पर आपको अपना ईमेल दर्ज कराना होगा। उसके बाद जिस न्यूज की आप पुष्टि करना चाहते हैं, वह हो जाएगी। आप इस व्हाट्सएप नंबर 8799711259 पर फेक न्यूज भी भेज सकते हैं।