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टर्निंग प्‍वाइंट: अपना सौ प्रतिशत देने की रणनीति पर चलकर खींच सकते हैं बड़ी लकीर

स्‍वावलंबन की राह पर चलने के लिए जरूरी नहीं कि आपकी शैक्षणिक योग्‍यता असाधारण ही हो। यदि औसत भी हैं तो आप जिस क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहते हैं उसके लिए अपना सौ प्रतिशत देने की रणनीति पर चलकर बड़ी लकीर खींच सकते हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 25 Dec 2021 10:44 AM (IST)Updated: Sat, 25 Dec 2021 10:44 AM (IST)
टर्निंग प्‍वाइंट: अपना सौ प्रतिशत देने की रणनीति पर चलकर खींच सकते हैं बड़ी लकीर
आइए जानते हैं क्‍या है सौ प्रतिशत का यह फार्मूला?

सीमा झा। तमिलनाडु के कुन्‍नूर में हुए हेलीकाप्‍टर हादसे ने पूरे देश को हिला कर रख दिया। इस दुर्घटना में देश के पहले सीडीएस जनरल बिपिन रावत और उनकी पत्नी सहित कुछ तेरह लोगों का निधन हो गया। कुछ दिन बाद एकमात्र घायल बचे भारतीय वायुसेवा के ग्रुप कैप्‍टन वरुण सिंह का भी निधन हो गया। उन्‍हें इसी साल शौर्य चक्र से सम्‍मानित किया गया था। वह सम्मान पाने के बाद उन्‍होंने गत सितंबर माह में अपने स्‍कूल के प्रिंसिपल को जो पत्र लिखा था, वह इन दिनों चर्चा में है। इस पत्र में उन्‍होंने ऐसी बातों का जिक्र किया है, जो आज हरेक छात्र के लिए प्रेरक है। यह आम सोच है कि कामयाबी के लिए असाधारण योग्‍यता होना जरूरी है।

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दसवीं, बारहवीं में अधिक से अधिक अंक पाना सफल होने की पहली शर्त माना जाता रहा है, पर वरुण सिंह ने अपने पत्र में इससे अलग बातें लिखी हैं। इसमें उन्‍होंने छात्रों से कहा है कि आगे बढ़ने के लिए असाधारण प्रतिभा होना जरूरी नहीं, औसत होना भी ठीक होता है। स्‍कूल में औसत दर्जे का होना आपके जीवन में आने वाली स्थितियों का पैमाना नहीं हो सकता। अपना उदाहरण देते हुए पत्र में लिखते हैं कि वह स्वयं बेहद औसत छात्र थे, इसके बाद भी काफी अनुशासित रहे थे। वह खेल व दूसरी को-करिकुलर एक्टिविटीज में भाग लेते रहते थे। पर एविएशन और एयरोप्‍लेन को लेकर उनमें जुनून था और इसी की बदौलत वह जीवन में ऐसा मुकाम हासिल कर पाए, जहां कम लोग पहुंच पाते हैं। वरुण सिंह पत्र में छात्रों को यह भी सलाह देते हैं कि आपको अपने शौक को पहचानना चाहिए और इसके बाद उसमें पूरी तरह स‍मर्पित होना चाहिए यानी सौ प्रतिशत देना चाहिए। यह सोचकर सोने कभी मत जाएं कि मैं और प्रयास कर सकता था। क्‍या हम सौ प्रतिशत का यह नियम अपनाकर अपने क्षेत्र या विषय में आगे बढ़ पाते हैं?आइए यह समझने का प्रयास करें।

निकलना होगा दबाव से: कोई भी परफेक्‍ट नहीं होता और निश्चित तौर पर हर काम में सौ प्रतिशत कामयाब होने की अपेक्षा भी व्‍यावहारिक नहीं। पर सबसे जरूरी है कि आप अपने जीवन को कैसे देखते हैं और क्‍या हासिल करने का लक्ष्‍य रखते हैं? इसके लिए आपको सौ प्रतिशत समर्पण के साथ ही आगे बढ़ना होगा। हां, समाज में सफलता को लेकर जो आम मान्‍तयाएं हैं, वे परेशान अवश्‍य करती हैं। जैसे लोगों के दिमाग में यह आम तौर पर होता है कि सफलता का अर्थ है कि आप हर क्षेत्र में अव्‍वल रहें, एक ही कोशिश में असाधारण परिणाम प्राप्‍त कर लें अन्‍यथा आप एक औसत व्‍यक्ति हैं। आप यह जानते हैं कि किसी खास क्षेत्र में आपको महारत हासिल है और आप चाहें तो उसमें तरक्‍की कर सकते हैं लेकिन एक अनचाहा दबाव हावी रहता है आप पर। आपको लगता है कि आप सफल नहीं हैं क्‍योकि आप पढ़ाई में अच्‍छे नहीं। आपकी शैक्षणिक योग्‍यता साधारण है। इसलिए लोग आपको स्‍वीकार नहीं करेंगे। यह मनोवैज्ञानिक दबाव कामयाबी की राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। यदि इस दबाव से निकल गए तो स्‍वावलंबन की राह में यह आपकी पहली जीत होगी।

अंदरूनी क्षमता पर करें भरोसा: प्रकृति में जो कुछ अप्राकृतिक है वह नष्‍ट हो जाता है। पर क्‍या असफल होना अप्राकृतिक है? क्‍या इसका अर्थ यह भी है कि जो कुछ प्रकृति में है वह असफल नहीं होता? बेशक नहीं! जैविक दृष्टि से देखें तो कुछ अप्राकृतिक नहीं है। हर चीज जो सांस ले रही है वह नष्‍ट होती है और यह प्रकृति का नियम है। वही अप्राकृतिक है जो प्रकृति के नियम के विरूद्ध है। ऐसी चीजें वजूद में नहीं रह पातीं। जब प्रकृति में सफलता या असफलता का प्रतिबंध नहीं है तो हमारे डीएनए में सफलता बनाम असफलता कहां से आ गयी? दरअसल, दोष हममें है। हम सफलता को दैवीय मान लेते हैं और एक भी इंच असफलता को कबूल नहीं करते या इसके लिए तैयार नहीं होते। एक तरह से यह बाहरी विचार को खुद पर थोपना है। सबसे महत्‍वूपर्ण है हमारी अंदरूनी क्षमता। हर चीज में सुपर सक्‍सेस या नायिका नायक को तलाश करना हमारे स्‍वस्‍थ सोच की प्रक्रिया को नष्‍ट कर देगा। हम स्‍वाभाविक रूप से आगे नहीं बढ़ पाएंगे। इसका खामियाजा हम खुद भुगतेंगे। खासकर वे जो अभी युवा हैं और स्‍वावलंबन की राह पर चलने को तैयार खड़े हैं। हमेशा अपनी अंदरूनी क्षमता पर भरोसा करें।

ताकि पीछे मुड़कर न देखें: जरा सोचकर देखें कि आज कितने फ्रेशर्स अपनी पसंदीदा नौकरी पा रहे हैं या वे ऐसी जाब कर रहे हैं जिसमें उन्‍हें अच्‍छे पैकेज मिल रहे हैं? बेशक सबको उनकी पसंदीदा और ऊंची सैलरी वाली जाब नहीं मिल पाती। पर सभी यह कल्‍पना जरूर करते हैं कि वे अच्‍छा पैसा कमाएं, बढ़िया गाड़ी और घर लें ताकि आरामदायक जिंदगी बिता सकें। इन दिनों ज्‍यादातर युवा चालीस की उम्र तक रिटायर होकर अपना पसंदीदा काम भी करना चाहते हैं पर कितने हैं जो अपनी इस इच्‍छा को सच कर पाते हैं? आपने देखा होगा कि चालीस तक आते-आते ज्‍यादातर को बहुत सारे कर्ज, स्‍कूल की फीस और दूसरी बुनियादी चीजों को पूरी करने की चिंता सताने लगती है। कह सकते हैं कि पसंदीदा काम करने की चाह पीछे छूट जाती है। यदि शुरू से ही पसंदीदा क्षेत्र या विषय पर सौ प्रतिशत ध्‍यान दे पाते, तो शायद पीछे मुड़कर देखने की जरूरत ही नहीं पड़ती। पर वास्‍तव में सफल होने की तरफ पूरी तरह से फोकस होने के बजाय जो कर रहे हैं उसमें एकाग्र रहने की कोशिश करनी चाहिए। औसत होने पर शर्मिंदा या कमतर महसूस न करें या सफलता मिल भी जाए तो उसमें खुश होकर बैठ जाने के बजाय अपने प्रयासों को न रुकने दें। बेहतर यह है कि जो कुछ अभी कर रहे हैं उसमें डूब जाएं, उसी में अपना सौ प्रतिशत दें। याद रखें, आपकी सफलता को आप ही परिभाषित कर सकते हैं, कोई दूसरा नहीं।

क्‍या कहती हैं कामयाबी की कहानियां: इतिहास में और अपने इर्द-गिर्द भी आपको ऐसे लोगों के बहुत सारे उदाहरण मिल जाएंगे जो शुरुआती दिनों में औसत, साधारण छात्र रहे लेकिन सौ प्रतिशत की रणनीति पर चलते हुए उन्‍होंने दुनिया में असाधारण कामयाबी पाई। ऐसे नामों की कमी नहीं। उदाहरण के लिए, द वर्जिन ग्रुप के फाउंडर रिचर्ड ब्रेनसन, एपल के स्‍टीव जाब, हैरी पाटर सीरीज की लेखिका जे के रालिंग हों या ओपेरा विनफ्रे। सूची लंबी है। उनकी सफलता की कहानियों में क्‍या समानता है?

-वे औसत छात्र रहे।

-अपने शुरुआती जीवन में कामयाब नहीं रहे।

-लगातार असफलताओं के बाद वे जो कर रहे थे, उसमें सौ प्रतिशत दे रहे थे।

-उन सबने स्‍वीकार किया कि वे औसत हैं और अपनी कोशिशों पर हार के बाद भी दोबारा एकाग्र होकर प्रयास करते रहे।

-‘कभी हार नहीं मानेंगे’ नजरिए से आगे बढ़ते रहे।


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