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EWS Reservation मुद्दे पर DMK ने SC में दायर की पुनर्विचार याचिका, केंद्र के फैसले को सही ठहराने पर उठाया सवाल

EWS Reservation तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी डीएमके ने सोमवार को ईडब्ल्यूएस मुद्दे पर केंद्र सरकार के फैसले को सही ठहराने वाले फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की है। उसने इसके पहले भी इस फैसले का विरोध किया था।

By Achyut KumarEdited By: Published: Mon, 05 Dec 2022 02:17 PM (IST)Updated: Mon, 05 Dec 2022 02:17 PM (IST)
EWS Reservation मुद्दे पर DMK ने SC में दायर की पुनर्विचार याचिका, केंद्र के फैसले को सही ठहराने पर उठाया सवाल
EWS मुद्दे पर DMK ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की पुनर्विचार याचिका

नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। EWS Reservation: ईडब्ल्यूएस आरक्षण मुद्दे पर केंद्र के फैसले को सही ठहराने वाले फैसले के खिलाफ तमिलनाडु की सत्तारूढ़ पार्टी डीएमके ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की है। दूसरी तरफ, कांग्रेस भी 7 दिसंबर से शुरू होने वाले संसद के शीतकालीन सत्र में EWS आरक्षण और जाति आधारित जनगणना को लेकर सरकार को घेरने की तैयारी में है।

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सर्वदलीय बैठक में संविधान संशोधन को नकारा गया

इससे पहले, डीएमके सरकार की ओर से एक सर्वदलीय बैठक बुलाई गई थी, जिसमें संविधान संशोधन को नकार दिया गया था। वहीं, राज्य सरकार के इस कदम का AIDMK और BJP ने विरोध किया। बता दें, मध्य प्रदेश कांग्रेस के एक नेता ने भी इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट में एक समीक्षा याचिका दायर की है।

7 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला

बता दें, 7 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा था। शीर्ष अदालत ने सवर्ण वर्ग के लिए आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की व्यवस्था को न्यायसंगत ठहराते हुए 103वें संविधान संशोधन को लेकर पैदा हुई भ्रम की स्थिति भी दूर कर दी थी।

शीर्ष अदालत ने उन दलीलों को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि आर्थिक आधार पर आरक्षण संविधान के मूल ढांचे (1973 केशवानंद भारती मामला) का उल्लंघन करता है और इस कारण यह आरक्षण का आधार नहीं हो सकता है।

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पांच सदस्यीय पीठ ने बहुमत से खारिज की दलीलें

पांच सदस्यीय पीठ ने बहुमत से इस तर्क को भी खारिज कर दिया था कि इस 10 प्रतिशत आरक्षण से अनुसूचित जाति/जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की गैर-क्रीमी लेयर को बाहर रखना भेदभाव करने जैसा है। इसके अतिरिक्त पीठ ने इस दलील को खारिज कर दिया था कि यह संयविधान संशोधन आरक्षण पर प्रवर्तित 50 प्रतिशत की सीमा रेखा का उल्लंघन करता है।

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