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EWS Quota को गलत बता रहे याचिकाकर्ताओं से सुप्रीम कोर्ट ने पूछे सवाल, कहा- गरीबों के लिए आरक्षण संविधान के विपरीत कैसे

सुप्रीम कोर्ट ने EWS Quota मामले में गुरुवार को भी सुनवाई की। सर्वोच्‍च अदालत ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण को चुनौती के लिए संसद में चर्चा नहीं होने के आधार को मानने से इन्कार कर दिया। साथ ही याचिकाकर्ताओं से सख्‍त सवाल पूछे...

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Thu, 15 Sep 2022 09:52 PM (IST)Updated: Thu, 15 Sep 2022 09:57 PM (IST)
EWS Quota को गलत बता रहे याचिकाकर्ताओं से सुप्रीम कोर्ट ने पूछे सवाल, कहा- गरीबों के लिए आरक्षण संविधान के विपरीत कैसे
आर्थिक आरक्षण पर सवाल उठाने वाले याचिकार्कताओं से सुप्रीम कोर्ट ने तीखे सवाल पूछे...

नई दिल्ली, जेएनएन। आर्थिक आरक्षण पर सवाल उठाने वाले याचिकार्कताओं को सुप्रीम कोर्ट के तीखे सवालों का सामना करा पड़ा। शीर्ष अदालत ने पूछा कि गरीबों के लिए आरक्षण संविधान के खिलाफ कैसे है। इसके साथ ही इस दलील को खारिज कर दिया कि संसद ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) को 10 प्रतिशत आरक्षण देने संबंधी 103वें संविधान संशोधन को बिना पर्याप्त चर्चा के पारित कर दिया।

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यह तो वर्गीकरण का एक मान्य आधार

शीर्ष अदालत ने कहा कि 'उसके इस क्षेत्र में प्रवेश करने पर रोक है।' शिक्षा और सरकारी नौकरियों में ईडब्ल्यूएस को आरक्षण देने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने दोहराया कि सरकारी नीतियों का लाभ लक्षित समूह तक पहुंचाने के लिए आर्थिक मानदंड तय करना 'वर्जित' नहीं है बल्कि वर्गीकरण का एक मान्य आधार है।

संविधान एक जीवंत और बदलाव वाला दस्तावेज

चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने गुरुवार को कहा कि संविधान एक जीवंत और बदलाव वाला दस्तावेज है। हम पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी देखते हैं। हम गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले समूहों को भी देखते हैं। यह बड़ा जन समुदाय है। आर्थिक आधार पर कोई सकारात्मक कार्रवाई (सरकार द्वारा) क्यों नहीं हो सकती।

लोकतंत्र चर्चा-परिचर्चा से चलता है

एक याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता केएस चौहान ने इस संदर्भ में पूर्व सीजेआइ एनवी रमणा के भाषणों का जिक्र किया कि संसद में बिना चर्चा के विधेयक पारित हो रहे हैं। वकील ने कहा कि हम लोकतंत्र हैं और लोकतंत्र चर्चा-परिचर्चा से चलता है। यह संविधान संशोधन आठ जनवरी को लोकसभा में और नौ जनवरी को राज्यसभा में पारित हुआ था। मुझे इस पर कोई चर्चा नहीं मिली।

विधायिका के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं कर सकते

पीठ में जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जे बी पार्डीवाला शामिल रहे। पीठ ने कहा कि हमारे इस विषय में प्रवेश करने पर रोक है कि संसद में क्या बोला जाता है। हम विधायिका के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं कर सकते और यह कोई आधार नहीं हो सकता। इस पर किस बात की बहस। पीठ ने संविधान संशोधन पर संसद में कम चर्चा होने को चुनौती का आधार मानने से इन्कार कर दिया।  


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