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छत्तीसगढ़ में वनवासियों का श्रेय लूटने की राजनीति गरमाई

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश पर रोक लगा दी। अब कोर्ट ने राज्य सरकारों से वस्तुस्थिति की जानकारी देने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 10 मार्च को होगी।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Thu, 28 Feb 2019 07:22 PM (IST)Updated: Thu, 28 Feb 2019 07:22 PM (IST)
छत्तीसगढ़ में वनवासियों का श्रेय लूटने की राजनीति गरमाई
छत्तीसगढ़ में वनवासियों का श्रेय लूटने की राजनीति गरमाई

रायपुर, राज्य ब्यूरो। वनवासियों की जंगल की भूमि से बेदखली के सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर स्टे मिलने के बाद इस मामले को लेकर राजनीति तेज हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने 13 फरवरी को आदेश दिया था कि जिन लोगों का वनाधिकार पट्टा निरस्त हो गया है उन्हें जंगल से बेदखल कर दिया जाए। लोकसभा चुनाव के ठीक पहले आए इस आदेश से हड़कंप मच गया। कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए यह आदेश बड़ी मुसीबत बनकर आया।

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प्रदेश में इससे पहले करीब साढ़ चार लाख वनाधिकार पट्टे निरस्त किए गए थे। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद आदिवासी राजनीति के लिए यह मुद्दा अहम बन गया। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पत्र लिखकर कहा कि वनाधिकार पट्टों की समीक्षा कराएं। इसके बाद 22 जनवरी को मुख्य सचिव ने वनाधिकार पट्टों की समीक्षा का आदेश जारी किया।

दिक्कत यह हुई कि हर जिले में कलेक्टरों ने अपने हिसाब से समय सीमा निर्धारित कर अधीनस्थ अफसरों से समीक्षा करने को कहा। किसी ने दो महीने का वक्त दिया तो किसी ने 15 दिन में काम पूरा करने को कहा। नतीजा यह रहा कि जिस जिले में 20 फरवरी तक पट्टा बंट जाना था वहां आज तक एक भी पट्टे की समीक्षा नहीं हो पाई। मामला वहीं का वहीं अटका रहा। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने बेदखली का आदेश दे दिया।

छत्तीसगढ़ की राजनीति में आदिवासी प्रभावी भूमिका में हैं। इस आदेश की प्रतिक्रिया होनी ही थी। राहुल गांधी ने फिर एक पत्र मुख्यमंत्री को लिखा और कहा कि सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करें। कांग्रेस को इस मुद्दे को हथियाता देख भाजपा भी तुरंत मैदान में कूद गई। आरएसएस ने कहा कि भाजपा को पहल करनी चाहिए। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी तुरंत भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को याचिका दायर करने का निर्देश जारी किया। फिर केंद्रीय ट्राइबल मंत्रालय ने याचिका दायर करने का निर्णय लिया। गुरूवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश पर रोक लगा दी। अब कोर्ट ने राज्य सरकारों से वस्तुस्थिति की जानकारी देने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 10 मार्च को होगी।

कांग्रेस ने कहा, बड़ी सफलता मिली

याचिका भले ही केंद्र सरकार ने लगाई हो, कांग्रेस इस मुद्दे पर पिछड़ना नहीं चाहती। प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता शैलेष नितिन त्रिवेदी ने कहा राहुल जी ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से याचिका लगाने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट में मध्यप्रदेश सरकार की ओर से कपिल सिब्बल और छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से विवेक तन्खा ने पक्ष रखा। हमें बड़ी सफलता मिली। उन्होंने कहा कि वनाधिकार पट्टों की समीक्षा पहले से ही चल रही है। हम दूसरे राज्यों से आगे हैं।

कानून की समझ ही नहीं है

आदिवासियों के अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे संगठन छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने कहा कलेक्टरों को छोड़ निचले स्तर के अफसरों को वनाधिकार कानून की समझ ही नहीं है। जब वे जानते नहीं तो समीक्षा कैसे करेंगे। इस बारे में हमारी सीएम से भी बात हुई है। अगर किसी आवेदन में कागज नहीं लगा है तो यह कमी पूरा करना अफसरों का काम है। कई जगह देखा जा रहा है कि अधिकारी कह रहे हैं कि सामुदायिक पट्टा दे दिया तो व्यक्तिगत कैसे दें। पहले कानून की पूरी जानकारी देना जरूरी है। त्रुटि है तो समीक्षा करने का कोई मतलब नहीं है, सुधार किया जाए।

दिसंबर 2005 से पहले जो भी निवासरत हैं सब पात्र

वनााधिकार कानून के मुताबिक वन भूमि पर तीन पीढ़ियों से निवासरत ऐसे आदिवासी या अन्य परंपरागत निवासी जो 13 दिसंबर 2005 के पूर्व कब्जारत हैं उन्हंे वनाधिकार पट्टे का अधिकार है। ग्राम वन समिति में से आवेदन लेकर ग्राम सभा में अनुमोदन कराने के बाद उनका प्रकरण एसडीएम स्तरीय समिति और फिर राज्य स्तरीय समिति में भेजा जाता है। इसके बाद वनाधिकार पट्टा दिया जाता है।


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