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आजादी विशेष: पैतृक संपत्ति में बेटियों को बराबर का हक, सम्मान और गौरव का फैसला

बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट ने पैतृक संपत्ति में बेटियों के बराबर के हक पर अपनी मोहर लगा दी। देखा जाए तो यह फैसला बेटियों के हक सम्मान और गौरव का है।

By Shashank PandeyEdited By: Published: Sat, 15 Aug 2020 01:05 PM (IST)Updated: Sat, 15 Aug 2020 01:56 PM (IST)
आजादी विशेष: पैतृक संपत्ति में बेटियों को बराबर का हक, सम्मान और गौरव का फैसला
आजादी विशेष: पैतृक संपत्ति में बेटियों को बराबर का हक, सम्मान और गौरव का फैसला

यशा माथुर। बेटे शादी के बाद अक्सर बदल जाते हैं, लेकिन माता-पिता से बेटियों की बांडिंग हर दिन और बढ़ती जाती है। इन बातों में कुछ तो सच्चाई है तभी तो पैतृक संपत्ति में बेटियों के हक को बेटों के बराबर होने का फैसला लिया गया। तीन सदस्यीय पीठ के अध्यक्ष जस्टिस अरुण मिश्रा ने यह दोहराया कि ‘बेटा तब तक बेटा होता है जब तक उसे पत्नी नहीं मिलती है, लेकिन बेटी जीवनपर्यंत बेटी रहती है।’ उनके कथन में बेटियों का अपने माता-पिता के प्रति आजीवन स्नेह का भाव नजर आया। उनके इस उद्गार से जाहिर होता है कि बेटियां अपने मातापिता से भावनात्मक रूप से बेटों के मुकाबले कहीं ज्यादा जुड़ी होती हैं।

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ज्यादा संवेदनशील होती हैं बेटियां

बेटियां ठंडी हवा का झोंका हैं। जब बेटियों से अलग या साथ रह रहे माता-पिता एकांत में उनके स्नेह के बारे में सोचते हैं तो उनके दिल को एक सुकून महसूस होता है। ऐसा नहीं है कि बेटे माता-पिता का ख्याल नहीं रखते हैं, लेकिन उनकी परवरिश ऐसी हो जाती है कि पहले तो उन्हें घर के बाहर के संघर्ष की चिंता ज्यादा सताती है और फिर अपना परिवार बन जाने पर उसकी जिम्मेदारियों के बीच माता-पिता की भावनाओं का ध्यान रखना गौण हो जाता है, लेकिन बेटियां चाहे ससुराल में रहें या घर में, माता-पिता के दिल की धड़कन उन्हें हर वक्त सुनाई देती रहती है। इस बात से सरोकार रखते हैं वरिष्ठ फिल्म अभिनेता गोविंद नामदेव।

वह कहते हैं, ‘बेटों के मुकाबले बेटियों को ईश्वर ने संवेदनशीलता ज्यादा दी है। इसलिए वे माता-पिता के सुख-दुख को महसूस करती हैं और उनका दिल से ध्यान रखती हैं। उनकी परेशानियों से लगातार जुड़ी रहती हैं। ससुराल में बैठकर भी हालचाल पूछती हैं और वहीं से निर्देश भी आते रहते हैं।

बेटी का हक अब और मजबूत

हालिया फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि पिता की पैतृक संपत्ति में बेटी का हक अपने भाई से जरा भी कम नहीं है। पैतृक संपत्ति में बराबर के अधिकार को नई दिल्ली से सांसद व सुप्रीम कोर्ट की वकील मीनाक्षी लेखी कुछ इस प्रकार समझाने की कोशिश करती हैं, ‘बेटियों की बराबरी का अधिकार का यह कानून वर्ष 2005 में पास हो चुका था। पिता की संपत्ति में बेटियों को बराबर का अधिकार है, लेकिन कोपार्शनरी परिवार के व्यवसाय और हिंदू अविभाजित परिवार की बात करती है। इसमें एक फिक्शन क्रिएट किया जाता है कि मान लीजिए एक व्यक्ति की दो बेटियां हैं और उसकी मृत्यु हो गई और उस व्यक्ति की अपने भाइयों के साथ कोपार्शनरी है।

अगर उसके भाई के दो बेटे हैं तो इन बेटों को तो जन्म से ही अधिकार मिल जाता है यानी दो भाइयों की भागीदारी चार पुरुषों की भागीदारी हो जाती थी, लेकिन इस व्यक्ति की बेटियों को कोपार्शनरी में अधिकार नहीं मिलता था। इन लड़कियों को अपने पिता का चौथाई हिस्सा मिलता था और उसमें से भी आधा-आधा इनके हक में आता था। यह कानून था, लेकिन अब कोर्ट ने कहा है कि यह फिक्शन क्रिएट नहीं किया जाएगा। पिता की संपत्ति की कोपार्शनरी में लड़कियों को भी बराबर का अधिकार मिलेगा।

बदलती सोच का प्रतीक

फैसला आते ही सोशल मीडिया में तमाम प्रतिक्रियाएं हुईं। किसी ने इसे उनके सम्मान से जोड़ा तो कोई इसे बराबरी का अधिकार मान रहा है। खैर हर किसी ने तहेदिल से इसको अपनाया, जो दर्शाता है कि अब लोगों की सोच में काफी बदलाव आ रहा है। सॉफ्टवेयर इंजीनियर आकांक्षा कहती हैं, ‘यह फैसला बदलती सोच का प्रतीक है। बेटी अपना हक ले या छोड़े, यह उसका फैसला होगा। अगर उसे जरूरत हो और तब भी उसे अधिकार न मिले तो यह अन्याय होगा।’

समाज की ताकत दिखाता निर्णय

सांसद व वकील मीनाक्षी लेखी ने कहा कि इस फैसले को खुशी से स्वीकार किया जा रहा है। यह हमारे परिवार और समाज की ताकत दिखाता है कि समय के अनुसार हमें बदलना भी आता है। बराबरी के अधिकार को हम सही मायनों में मानते हैं और नियमों के अनुसार अपनी जिंदगी को बदलने की क्षमता रखते हैं।

मेरे तो दोस्त हैं माता-पिता

अभिनेत्री मधुरिमा रॉय ने कहा कि मेरा मिलिट्री बैकग्राउंड रहा है। भाई तो शादी के बाद अलग सेटल हो गए हैं, लेकिन माता-पिता से मेरा हर दिन संबंध मजबूत होता जा रहा है और यह कभी कम नहीं होगा। मैं अकेले मुंबई में रहती हूं। कहीं न कहीं वे मेरे दोस्त जैसे हैं और जैसे दोस्त हर बात शेयर करते हैं वैसे ही मैं उन्हें दिनभर का हाल बताती हूं। लॉकडाउन में उनके साथ रही तो यह जुड़ाव और मजबूत हुआ। वे कोलकाता में हैं। मैं समय-समय पर उनसे मिलने जाती रहती हूं।

ताउम्र रहता है बेटियों का प्यार

वरिष्ठ अभिनेता गोविंद नामदेव ने कहा किमेरी तीन बेटियां हैं। दो की शादी हो गई है। फिर भी वे दोनों मेरी पहले जैसी ही देखभाल करती हैं। जिनकी बेटियां हैं, वे ही इस भाव को अनुभव कर सकते हैं। उनकी छोटीछोटी चिंता भी सुकून भरी होती है। कभी कहती हैं, अभी तक क्यों जाग रहे हो, सो जाओ। ज्यादा नमक मत खाओ, जैसे बचपन में हम उनको हर चीज के लिए आगाह करते थे। वैसे ही अब वे हमारी चिंता करती हैं। उनका प्यार हर वक्त, हरदम बना रहता है।


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