नई दिल्ली, अनुराग मिश्र/ विवेक तिवारी। भारत का राष्ट्रीय पशु बाघ है। बाघ के बारे में कहा जाता है कि इनकी गर्जना काफी तेज होती है। बाघ की दहाड़ किसी के खून को जमा देने और रोंगटे खड़े कर देने वाली होती है। जंगल में जब इनकी दहाड़ गूंजती है, तो आसपास थरथराहट का माहौल बन जाता है। लेकिन जंगल के इस राजा के साथ हमने भी कम अत्याचार नहीं किए है। सरकार के बड़े प्रयासों के बाद आज ये हालात बने हैं कि देश में बाघों की स्थिति में सुधार आया है। लेकिन अकेले सरकार ही इनके संरक्षण के लिए कुछ नहीं कर सकती है। हम सब को मिलकर भी इन्हें बचाने के लिए कड़ी जद्दोजहद करनी होगी। पीलीभीत के माजरापट्टी गांव में रहने वाले विपिन कुमार बतौर 'बाघ मित्र' बन कर कुछ ऐसा ही काम कर रहे हैं।

विपिन कुमार बताते हैं कि कई सालों तक उनका गांव में बाघ से आमना-सामना हुआ था, लेकिन वह उस दौरान डरे नहीं वरन उस घटना के बाद बाघ से उनका लगाव बढ़ गया। वह कहते हैं कि बाघ एक सुंदर जीव है, कभी-कभी उसे लगता है कि उसके आसपास जो कुछ हो रहा होता है, उसकी उसे कोई परवाह नहीं होती, जबकि अगले ही पल आप उसे आपको डराने की कोशिश करता देख सकते हैं। वह बताते हैं कि पहले गांव के लोग बाघ को देखते ही उसे मारने की कोशिश करते थे लेकिन अब लोगों में जागरुकता आई है। लोग बाघ को देखते ही उन्हें मारने की कोशिश नहीं करते हैं। बाघ दिखने पर वह फॉरेस्ट डिपॉर्टमेंट को पहले सूचित करते हैं।

वह कहते हैं कि मुझे वन्यजीवों से बेहद प्यार था। ऐसे में मैंने उन्हें अपने मकसद के तौर पर बना लिया।

वह बताते हैं कि डब्ल्यूडब्लयूएफ द्वारा विभिन्न तरह के वन्यजीव जैसे बाघ की पहचान करना, उनके पगमार्क ट्रेस करना, वन्यजीवों के स्वभाव आदि के बारे में बीते साल उन्हें प्रशिक्षण दिया जा चुका है। जब बाघ गांव में आता है तो इसके बारे में पूरी जानकारी जुटाकर टाइगर रिजर्व प्रशासन के संज्ञान में लाना और जब तक रेस्क्यू के लिए विभाग की टीम मौके पर न पहुंच जाए, तब तक स्थानीय ग्रामीणों को सतर्क करते हुए उन्हें उस स्थल से दूर रखने की जिम्मेदारी निभाएंगे। जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष की स्थिति को टाला जा सके।

Edited By: Tilakraj