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साहब... देश में और भी हैं 'सबरीमाला मंदिर', जानें- बेटियों ने क्‍यों तोड़ा ये मिथक

आइए, हम आपको बताते हैं कि देश की किन मंदिरों में आज भी महिलाओं के जाने की इजाजत नहीं है और इसके साथ यह भी बताएंगे कि किन जगहों पर बेटियों ने तोड़ा प्रथा।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Fri, 28 Sep 2018 02:18 PM (IST)Updated: Fri, 28 Sep 2018 11:04 PM (IST)
साहब... देश में और भी हैं 'सबरीमाला मंदिर', जानें- बेटियों ने क्‍यों तोड़ा ये मिथक
साहब... देश में और भी हैं 'सबरीमाला मंदिर', जानें- बेटियों ने क्‍यों तोड़ा ये मिथक

नई दिल्‍ली [ जागरण स्‍पेशल ]। सुप्रीम कोर्ट ने भले ही केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की इजाजत दे दी हो, लेकिन अभी देश में कई ऐसे देवस्‍थल और मंदिर हैं, जहां महिलाओं का प्रवेश निषेघ है। हालांकि, इस सत्‍य के साथ एक और सत्‍य भी इस देश का है। देश में कई जगह महिलाओं ने आगे बढ़कर सदियों से चली आ रही प्रथाओं और कई मिथकों को तोड़ा है। जी हां, महिलाओं ने श्‍मशान घाट में प्रवेश कर अपने परिजनों को मुखाग्नि दी है। आइए, हम आपको बताते हैं कि देश की किन मंदिरों में आज भी महिलाओं के जाने की इजाजत नहीं है और इसके साथ यह भी बताएंगे कि किन जगहों पर बेटियों ने तोड़ा प्रथा।

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मंदिरों में महिलाओं का निषेध

1- हरियाणा राज्‍य के पेहोवा में कार्तिकेय भगवान का मंदिर स्थित है। इस मंदिर में भी महिलाओं के प्रवेश पर निषेध है। ऐसी मान्‍यता है कि कार्तिकेय भगवान ब्रह्मचारी थे, इसलिए महिलाओं का प्रवेश यहां वर्जित किया गया है। यहां यह मिथक स्‍थापित है कि यदि कोई महिला मंदिर में प्रवेश करेगी तो उसे श्राप मिलने का डर है। ऐसा कहा जाता है कि राजस्‍थान के पुष्‍कर में बने कार्तिकेय मंदिर में भी यहां प्रवेश करने पर महिलाओं को आशीर्वाद के स्‍थान पर श्राप मिलता है। यह भी मान्‍यता है कि जब कार्तिकेय इस स्‍थान पर तपस्‍या कर रहे थे, तब इंद्र उनसे भयभीत हो गए थे।

2- महाराष्‍ट्र के सतारा में घटई देवी मंदिर और सोला स्थित शिवलिंग मंदिर में महिलाओं का प्रवेश पूरी तरह से वर्जित है। हालांकि, सतारा मंदिर में इस तरह के निर्देश को कोई बोर्ड नहीं हैं, लेकिन महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। इसी तरह से सोला के देवस्‍थान सतारा में शिवलिंग शनैश्वर के मंदिर में महिलाओं के जाने पर रोक है। इस मंदिर पर महिलाओं के प्रवेश पर सख्‍ती है।

3- असम राज्‍य के बरपेचटा सत्रा स्थित एक कीर्तन घर में महिलाओं के प्रवेश पर रोक है। दरअसल, यह एक वैष्णव मंदिर है। असम राज्‍य में इसकी दूर-दूर तक मान्‍यता है। कहा जाताह कि एक बार पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस मंदिर में जाने की इच्‍छा जाहिर की थी, लेकिन यहां के प्रबंधन ने उन्‍हें इसकी अनुमति देने से मना कर दिया था।

3- देश के झारखंड प्रांत में बोकारो स्थित मंगल चंडी मंदिर में महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित है। यहां महिलाओं के प्रवेश पर ज्‍यादा सख्‍ती है। महिलाओं को मंदिर प्रांगण में ही नहीं, बल्कि इसके 100 फीट की दूरी तक आने पर रोक है। यानी महिलाएं मंदिर के आसपास नहीं फटक सकती हैं। मंदिर प्रबंधन ने इस नियम के उल्लंघन पर सजा का प्रावधान रखा है।

4- छत्‍तीसगढ़ के धमतरी स्थित मवाली माता मंदिर में भी महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध है। ऐसी मान्‍यता है कि यहां पुजारी को माता सपने में आईं और उसके बाद मंदिर प्रबंधन ने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया। तब से यह प्रथा चली आ रही है।

 

बेटियों ने दिखाई हिम्‍मत, पिता का अंतिम संस्‍कार किया

1- 20 सितंबर, 2018 को राजस्‍थान की रहने वाली मीना रेगर ने समाज की परवाह किए बगैर पिता की मौत के बाद उनका अंतिम संस्‍कार किया। मीना का मायका राजस्‍थान के बूंदी में है और वह कोटा अपने ससुराल में रहतीं हैं। मीना के पिता दुर्गाशंकर की मृत्यु जुलाई में हुई थी। बीमारी के वक्‍त पिता ने कहा था कि मुश्किल वक्‍त में किसी ने हमारी सहायता नहीं की है, इसलिए तुम्‍ही लोग मुझे मुखाग्नि भी देना। तब मीना और उनकी तीन बहनों ने अपने पिता का अंतिम संस्कार करने का फ़ैसला किया। हालांकि, इस प्रथा को तोड़ने की सजा उन्हें समाज ने दिया। पिता का संस्‍कार करने के बाद उनको समाज से बेदखल होना पड़ा।

2- 11 दिसंबर 1017 को मुरैना में पिता की पैरालाइसिस से मौत के बाद बेटी ने उनका अंतिम संस्कार किया। पिता के शव यात्रा के दौरान शादीशुदा बेटी ने पिता को कंधा दिया और इसके बाद मुखाग्नि भ्‍ाी किया। बेटी ने समस्‍त संस्‍कार पूरे किए। इस बाबत समाज के लोग आगे आए और उन सभी ने लड़की को सहयोग किया।

3- 25 जून 2018 को राजधानी शिमला में टुटू के साथ लगते मज्याठ वार्ड में एक बेटी ने पिता का अंतिम संस्कार अपने हाथों से किया। कोई भाई और बहन नहीं होने के कारण बेटी ने यह फैसला लिया और पिता का अंतिम संस्कार से जुड़ी सारी प्रक्रियाएं पूरी की। मृतक की बेटी भी अंतिम यात्रा में शामिल हुई और कपाल क्रिया में भी हिस्सा लिया।


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