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कोल ब्लॉक आवंटन मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने की 169 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त

ईडी ने आरोप लगाया है कि फर्म को गलत तरीके और गलत प्रस्तुति से कोल ब्लाक आवंटित हुए थे। केंद्रीय एजेंसी ने दावा किया गैरकानूनी रूप से कोल ब्लॉक आवंटित होने के कारण कंपनी को 169.64 करोड़ रुपये का लाभ हुआ।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Wed, 04 Nov 2020 06:30 AM (IST)Updated: Wed, 04 Nov 2020 06:30 AM (IST)
कोल ब्लॉक आवंटन मामले में प्रवर्तन निदेशालय ने की 169 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त
कोयला निकालने से 52.50 करोड़ रुपये की गैरकानूनी आय हुई

नई दिल्ली, प्रेट्र। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने कोल ब्लॉक आवंटन मामले में मनी लांड्रिंग की जांच के तहत एक फर्म की 169 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की है। यह मामला टोपावर्थ ऊर्जा एंड मेटल्स लिमिटेड (औपचारिक रूप से श्री वीरांगना स्टील्स लिमिटेड) से संबंधित है। फर्म को पूर्वी महाराष्ट्र में मार्की मांगली-दो, तीन और चार कोल ब्लॉक आवंटित किए गए थे।

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9,21,748 मीट्रिक टन कोयला निकाला गया गैरकानूनी तरीके से 

ईडी ने आरोप लगाया है कि फर्म को गलत तरीके और गलत प्रस्तुति से कोल ब्लाक आवंटित हुए थे। केंद्रीय एजेंसी ने दावा किया, 'गैरकानूनी रूप से कोल ब्लॉक आवंटित होने के कारण कंपनी को 169.64 करोड़ रुपये का लाभ हुआ। 2011-12 से 2014-15 के दौरान कुल 9,21,748 मीट्रिक टन कोयला गैरकानूनी तरीके से निकाला गया। इन ब्लॉकों से कोयला निकालने से 52.50 करोड़ रुपये की गैरकानूनी आय हुई। कंपनी को कैप्टिव पावर प्लांट से ज्यादा उत्पादित बिजली की बिक्री से 20.40 करोड़ रुपये का लाभ हुआ।'

यह भी आरोप लगाया है कि कंपनी ने कोल ब्लॉक के लिए आवेदन और आवंटन के बाद इक्विटी और प्रेफरेंस शेयर जारी कर शेयर कैपिटल जुटाए। इससे इसे 96.72 करोड़ रुपये का लाभ हुआ।

बैंक धोखाधड़ी मामले में भी की गई थी छापेमारी

वहीं, दूसरी ओर प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने शनिवार को 488 करोड़ रुपये के बैंक धोखाधड़ी मामले में छापेमारी कर छह करोड़ रुपये जब्त किए थे। यही नहीं, उसने विदेशी मुद्रा भी बरामद की थी। ईडी ने कहा था कि यह छापेमारी कंसल्टेंसी और बिल्डर समूह-ट्रू वैल्यू ग्रुप, विपुल और मनीष एसोसिएट्स के ठिकानों पर की गई। ईडी ने बैंक फर्जीवाड़ा मामले में मनीलांड्रिग एक्ट के तहत अहमदाबाद की आर्डोर ग्रुप ऑफ कंपनीज के खिलाफ मामला दर्ज किया था। ईडी ने कहा था कि कंपनी के निदेशकों ने अज्ञात बैंक अधिकारियों के साथ मिलकर धोखाधड़ी की थी। बैंकों को लगभग 488 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाया था।


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