कार्ति चिदंबरम की संपत्ति जब्ती पर लगी मुहर, ईडी की कार्रवाई को ठहराया सही
ईडी का आरोप है कि एयरसेल में एफआइपीबी क्लीयरेंस देने के दौरान तत्कालीन वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने तथ्यों को छिपाया।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। विदेशी निवेश को हरी झंडी दिलाने के एवज में लिए गए पैसे के जब्त करने के प्रवर्तन निदेशालय के फैसले पर एडजुडिकेटिंग अथारिटी ने मुहर लगा दी है। ईडी ने एयरसेल-मैक्सिस डील में विदेशी निवेश को मंजूरी देने के दौरान कार्ति चिदंबरम और उनकी कंपनी में जमा किये 1.16 करोड़ रुपये को जब्त कर लिया था। दूसरी ओर मनी लांड्रिंग के केस में कार्ति चिदंबरम की गिरफ्तारी पर हाईकोर्ट की रोक को ईडी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट गुरूवार को सुनवाई करेगा।
ईडी ने जिन संपत्तियों को जब्त किया है, उनमें कार्ति चिदंबरम के बैंक खाते में जमा रकम के साथ-साथ एफडी भी शामिल है। इसके साथ ही 26 लाख रुपये एडवांटेज स्ट्रेटिजिक कंसल्टिंग के बैंक खाते के जब्त किये गए हैं। ईडी का कहना है कि यह कंपनी कार्ति चिदंबरम की है और 2006 में एयरसेल में विदेशी निवेश की मंजूरी मिलने के तत्काल बाद इस कंपनी में एयरसेल की ओर से 26 लाख रुपये दिये गए थे। इसी तरह से साउथ एशिया कम्युनिकेशन में इस दौरान लाखों रुपये दिए गए थे। ईडी इस कंपनी के कार्ति चिदंबरम के होने के सबूत दिये थे।
एडजुडिकेटिंग अथारिटी ने ईडी के सबूतों को सही माना है। अब कार्ति चिदंबरम के पास अपीलीय ट्रिब्युनल में चुनौती देने का विकल्प बचा है। अथारिटी में संपत्ति जब्त करने को सही बताते हुए ईडी ने कहना था कि कार्ति चिदंबरम पिछले कई महीने से एफआइपीबी क्लीयरेंस से बनाई गई संपत्तियों को बेच रहे थे और उससे जुड़े बैंक खातों के बंद कर रहे थे। ताकि भ्रष्टाचार के सबूत मिलने की स्थिति में उन संपत्तियों को जब्त नहीं किया जा सके। 2013 में ऐसे ही एफआइपीबी क्लीयरेंस पाने वाली कंपनी को कार्ति चिदंबरम ने गुड़गांव स्थित अपनी संपत्ति को किराये पर दिया था। लेकिन जांच एजेंसियों के बढ़ते शिकंजे को देखते हुए उन्होंने अपनी इस संपत्ति को बेच दिया।
ईडी का आरोप है कि एयरसेल में एफआइपीबी क्लीयरेंस देने के दौरान तत्कालीन वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने तथ्यों को छिपाया। उन्होंने दिखाया एफआइपीबी क्लीयरेंस केवल 180 करोड़ रुपये के विदेशी निवेश के लिए दिया गया है। जबकि सच्चाई यह है कि कुल 3500 करोड़ रुपये के विदेश निवेश को मंजूरी दी गई थी। नियम के मुताबिक, वित्तमंत्री को सिर्फ 600 करोड़ रुपये तक के विदेशी निवेश को मंजूरी देने का अधिकार है। इससे अधिक के विदेशी निवेश की मंजूरी सिर्फ आर्थिक मामले का कैबिनेट कमिटी दे सकता है। ईडी का आरोप है कि आर्थिक मामलों के कैबिनेट कमिटी में विदेशी निवेश की पूरी पड़ताल की जाती। इससे बचने के लिए इसे कम रकम का दिखाया गया।