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आयुर्वेदिक दवाओं को दुनिया में मान्यता दिलाने की पीएम मोदी की पुरजोर कोशिश

योग की तरह आयुर्वेद को भी दुनिया में मान्यता दिलाने के लिए सरकार पूरी कोशिश कर रही है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 28 Oct 2018 08:07 PM (IST)Updated: Sun, 28 Oct 2018 08:07 PM (IST)
आयुर्वेदिक दवाओं को दुनिया में मान्यता दिलाने की पीएम मोदी की पुरजोर कोशिश
आयुर्वेदिक दवाओं को दुनिया में मान्यता दिलाने की पीएम मोदी की पुरजोर कोशिश

नीलू रंजन, नई दिल्ली। आने वाले दिनों में आयुर्वेदिक दवाएं विदेशों में भी दवा के रूप में बिक सकेंगी। सरकार ने इसके लिए कोशिशें तेज कर दी है। आयुर्वेदिक दवाओं और डाक्टरों को मान्यता देने के लिए अभी तक नौ देशों के साथ समझौता हो चुका है और 45 देशों से बातचीत भी चल रही है। विदेशों में मान्यता दिलाने के लिए आयुर्वेदिक दवाओं को क्लीनिकल ट्रायल से गुजारने, पेटेंट कराने और उत्पादन की कसौटी के मानक तय करने की कोशिशें तेज हो गई हैं।

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क्लीनिकल ट्रायल और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप उत्पादन पर जोर

दरअसल अमेरिका समेत दुनिया के अधिकांश देशों में आयुर्वेदिक दवाओं को मान्यता नहीं मिली है। वहां ये दवाएं फूड सप्लीमेंट के रूप में बिकती है। आयुष मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इन देशों में दवा नियामक एजेंसी के नियमों के अनुरूप नहीं होने के कारण दवा के रूप में आयुर्वेदिक दवाओं को मान्यता नहीं मिल पाती है।

उन्होंने कहा कि सरकार आयुर्वेदिक दवाओं को उन नियमों के अनुरूप ढालने की कोशिश कर रही हैं। उनके अनुसार इसके लिए आयुर्वेदिक दवाओं को मान्यता देने के पहले बाकायदा उनका क्लीनिकल ट्रायल किया जा रहा है। उनके अनुसार डेंगू की अभी तक एलोपैथ में भी कोई दवा उपलब्ध नहीं है, लेकिन आयुर्वेद में इसके लिए दवा विकसित कर ली गई है। इस दवा का क्लीनिकल ट्रायल अंतिम चरण में है। क्लीनिकल ट्रायल पूरा होते ही इसे बाजार में उतार दिया जाएगा।

आयुष मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार अभी तक आयुर्वेदिक दवाएं आयुर्वेद के प्राचीन फार्मूले पर बनाकर बेची जाती थी। लेकिन अब देश के चोटी के रिसर्च संस्थान आयुर्वेदिक दवाओं को विकसित करने में जुटे हैं। सीएसआइआर के तहत आने वाली लखनऊ की नेशनल बॉटनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनबीआरआइ) ने डायबटीज के लिए बीजीआर-34 नाम की दवा विकसित की है। कुछ सालों के भीतर यह दवा डायबटीज के इलाज में 20 बड़े ब्रांडों में शामिल हो गई है। इसी तरह सफेद दाग के इलाज के लिए रक्षा अनुसंधान से जुड़े डीआरडीओ ने ल्यूकोस्किन नाम की दवा विकसित की है। क्लीनिकल ट्रायल के बाद इसे भी बाजार में उतार दिया गया है।

वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि क्लीनिकल ट्रायल और उच्च गुणवत्ता मानकों के तहत तैयार इन दवाओं को विदेशों में दवा के रूप में मान्यता दिलाना में मुश्किल नहीं होगा। उन्होंने कहा कि योग की तरह आयुर्वेद को भी दुनिया में मान्यता दिलाने के लिए सरकार पूरी कोशिश कर रही है। इसी का नतीजा है कि आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, यूएई, स्विट्जरलैंड, कोलंबिया, हंगरी और क्यूबा में कुछ औपचारिकता पूरी करने के बाद आयुर्वेदिक डाक्टरों को भी प्रैक्टिस की अनुमति भी मिलने लगी है।

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