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चुनावी बेला में बिजली की आपूर्ति और मांग का अंतर हुआ बहुत कम, दो वर्ष पहले 30 संयंत्रों में थी कोयले की कमी

पिछले दो-तीन महीनों के दौरान कोयला आपूर्ति को सुधारने पर जो ध्यान दिया गया है उसकी वजह से आज की तारीख में सिर्फ एक बिजली प्लांट है जिसमें कोयले की दिक्कत है।

By Mangal YadavEdited By: Published: Tue, 12 Mar 2019 08:34 PM (IST)Updated: Tue, 12 Mar 2019 08:34 PM (IST)
चुनावी बेला में बिजली की आपूर्ति और मांग का अंतर हुआ बहुत कम, दो वर्ष पहले 30 संयंत्रों में थी कोयले की कमी
चुनावी बेला में बिजली की आपूर्ति और मांग का अंतर हुआ बहुत कम, दो वर्ष पहले 30 संयंत्रों में थी कोयले की कमी

जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। आम चुनाव सर पर हो तो फिर सरकार की तेजी देखते ही बनती है। वर्ष 2016 के बाद जब देश में बिजली की मांग बढ़ने लगी तो कई ताप बिजली संयंत्रों में कोयले की कमी हो गई थी। एक समय ऐसा आ गया था कि देश के 30 ताप बिजली संयंत्रों में कोयले की जबरदस्त किल्लत हो गई थी। लेकिन पिछले दो-तीन महीनों के दौरान कोयला आपूर्ति को सुधारने पर जो ध्यान दिया गया है उसकी वजह से आज की तारीख में सिर्फ एक बिजली प्लांट है जिसमें कोयले की दिक्कत है।

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एक वर्ष पहले देश में बिजली की आपूर्ति और मांग में जो अंतर 7-8 फीसद का था वह भी अब घट कर महज एक से दो फीसद रह गया है। कोयला मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 10 मार्च, 2019 को सिर्फ एक ताप बिजली घर में कोयले की दिक्कत है। जबकि 5 दिसंबर, 2018 में 22 ऐसे प्लांट थे जिन्हें कोयले की पूरी आपूर्ति नहीं हो पा रही थी।

इसके पहले 30 नवंबर, 2018 को 29 ताप बिजली प्लांट में कोयले आपूर्ति पांच से सात दिनों से ज्यादा का नहीं था। इसे अभी देश के तकरीबन सभी ताप बिजली प्लांट में 15 दिनों के उपयोग के बराबर कोयला है। कोयला आपूर्ति बढ़ने से बिजली का उत्पादन बढ़ गया है। यह बात बिजली मंत्रालय की तरफ से जारी आंकड़ों से चलता है।

अगर देश के उत्तरी क्षेत्र की बात करें तो जनवरी, 2019 में बिजली की मांग और पूर्ति में अंतर महज 1.2 फीसद है। पश्चिमी क्षेत्र में यह अंतर सिर्फ 0.4 फीसद, दक्षिणी क्षेत्र में मांग और आपूर्ति एक दम बराबर है जबकि पूर्वी क्षेत्र में अंतर 0.6 फीसद का है। पूर्वोत्तर राज्यों में भी मांग आपूर्ति से महज 0.9 फीसद ज्यादा है।

अगर राज्य वार स्थिति का आकलन करे तो उत्तर प्रदेश में बिजली की मांग जितनी है उतनी ही बिजली की आपूर्ति की गई है। जबकि बिहार में भी यही स्थिति है। जनवरी, 2019 में बिहार में अधिकतम मांग 4430 मेगावाट की थी और इतनी ही आपूर्ति की गई है। झारखंड इस क्षेत्र का ऐसा राज्य है जहां बिजली की मांग अभी भी पूरी नहीं हो पा रही है। वहां अंतर 9.5 फीसद का है। यानी मांग आपूर्ति से ज्यादा है।

असलियत में झारखंड से ज्यादा बिजली की दिक्कत सिर्फ एक राज्य जम्मू व कश्मीर में दिखाई देती है। जहां मांग आपूर्ति के मुकाबले 20 फीसद ज्यादा है। बिजली मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि बिजली आपूर्ति की स्थिति सिर्फ चुनाव तक ही नहीं बल्कि उसके बाद भी अब ऐसी ही रहेगी क्योंकि सरकार 24 घंटे बिजली की योजना को लागू करने जा रही है।

जिन राज्यों में बिजली आपूर्ति बाधित होगी उसका खामियाजा उन राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों को उठाना पड़ेगा क्योंकि बिजली की आपूर्ति नहीं होने पर उन्हें ग्राहकों को इसका मुआवजा देना होगा।


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