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अच्छे रहे 75, स्वर्णिम होंगे अगले 5 साल : साल 2027 तक इतनी बिजली चाहिए, जानिए कैसे आएगा उत्पादन में बूम

रिन्यूएबल एनर्जी का देश में तेजी से विस्तार हो रहा है। इनके बड़े-बडे प्लांट लग रहे हैं। हाइड्रो और न्यूक्लियर पावर प्लांट की तकनीक भी काफी बेहतर हुई है। तो आइये जानते हैं कि आने वाले पांच साल में इस सेक्टर के लिए क्या लक्ष्य तय किए गए हैं।

By Vineet SharanEdited By: Published: Mon, 30 Aug 2021 08:32 AM (IST)Updated: Tue, 31 Aug 2021 02:24 PM (IST)
अच्छे रहे 75, स्वर्णिम होंगे अगले 5 साल : साल 2027 तक इतनी बिजली चाहिए, जानिए कैसे आएगा उत्पादन में बूम
आने वाले दिनों में बिजली की खपत बढ़ेगी क्योंकि मेट्रो छोटे शहरों में चलेगी। स्मार्ट सिटी बनेगी।

नई दिल्ली, विनीत शरण। आजादी के वक्त 1947 में देश में मात्र 1362 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है। वहीं बिजली की खपत प्रति व्यक्ति केवल 16.3 यूनिट थी। 2020 तक भारत में बिजली उत्पादन 448.11 गीगा वाट हो गया है। प्रति व्यक्ति बिजली की खपत 1208 यूनिट हो गई है। यानी उत्पादन और खपत दोनों कई गुना बढ़ गए। अभी कुछ साल पहले तक देश के ज्यादातर शहरों में दिन-रात कई-कई घंटे पॉवर कट होता था। लेकिन अब स्थिति काफी बेहतर है। वहीं रिन्यूएबल एनर्जी जैसे पवन ऊर्जा और सौर ऊर्जा का देश में तेजी से विस्तार हो रहा है। इनके बड़े-बडे प्लांट लग रहे हैं। हाइड्रो और न्यूक्लियर पावर प्लांट की तकनीक भी काफी बेहतर हुई है। तो आइये विशेषज्ञों से जानते हैं कि आने वाले पांच साल में इस सेक्टर के लिए क्या लक्ष्य तय किए गए हैं और साथ में जानेंगे पिछले 75 साल की तरक्की की कहानी।

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आने वाले सालों में इलेक्ट्रिसिटी सेक्टर में क्या होगा

1. 24 घंटे बिजली पहुंचाने पर जोर

पूर्व चेयरमैन झारखंड स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड और पूर्व सीएमडी उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड बी एम वर्मा बताते हैं कि आज पर्याप्त बिजली उपलब्ध है। गांव तक बिजली पहुंचाने का सवाल है तो 100 फ़ीसदी गांव तक भी बिजली पहुंचाई जा चुकी है। पर मुद्दा आता है घरों तक बिजली पहुंचाने और इसके वितरण का। हमें 24 घंटे बिजली पहुंचाने पर जोर देना है। किसानों के लिए खेत तक अलग से बिजली की लाइन देने पर कार्य कर रहे हैं। जहां तक सस्ती बिजली का सवाल है 25 फीसदी बिजली चोरी हो जाती है जिसके चलते डिस्ट्रीब्यूशन नुकसान बहुत है।

बी एम वर्मा के मुताबिक सबसे पहले बिजली के डिस्ट्रीब्यूशन में हमें सुधार करना होगा जिससे बिजली बोर्ड का नुकसान कम हो। ऊर्जा मंत्रालय ने इस दिशा में काम किया है। मॉनिटरिंग सिस्टम को दुरुस्त करना होगा। प्रीपेड़ मीटर पर काम हो रहा। जुलाई में सरकार ने इस और कुछ निर्णय लिए हैं। उसके नतीजे देखने होंगे। वहीं सबसे अहम सवाल है कि बिजली के उपभोग का भुगतान होना वह जब तक नहीं होगा इस क्षेत्र में सुधार होना मुश्किल है।

(फोटो स्रोत-ऊर्जा मंत्रालय फेसबुक पेज)

2. इन वजहों से बढ़ेगी बिजली की डिमांड

टेरी की रिपोर्ट एनालिसिस एंड प्रोजेक्टिंग इंडियन इलेक्ट्रिसिटी डिमांड टू 2030 के मुताबिक आने वाले सालों में नए लोड के चलते बिजली की मांग बढ़ेगी। इन नए लोड में नए घरों का निर्माण, अफोर्डेबल हाउसिंग स्कीम, इलेक्ट्रिक कुकिंग, इलेक्ट्रिक व्हीकल, एसी और उच्च मैन्युफैक्चरिंग विकास दर शामिल हैं। बीएम वर्मा के मुताबिक आने वाले दिनों में बिजली की खपत बढ़ेगी क्योंकि मेट्रो छोटे शहरों में चलेगी। स्मार्ट सिटी बनेगी।

3. 2027 और 2030 तक होगी इतनी मांग

2030 तक भारत में बिजली की मांग 2074 टेरावॉट से लेकर 2785 टेरावॉट के बीच रहने की उम्मीद है। यह मांग जीडीपी की रफ्तार और क्षमता के हिसाब से घटेगी बढ़ेगी। वहीं 2027 में यह मांग 2108 से लेकर 2303 टेरावॉट के बीच होगी।

(फोटो स्रोत-ऊर्जा मंत्रालय फेसबुक पेज)

4. रिन्यूएबल एनर्जी पर रहेगा जोर-बड़े प्लांट लगेंगे

अब तक ज्यादातर बिजली उत्पादन कोयला जैसे जीवाश्म ईंधन से होता रहा है, क्योंकि अब से पहले ऊर्जा के नवीन स्रोतों की तुलना में इससे बिजली सस्ती पड़ती थी। पर पिछले कुछ दशकों में इसमें काफी परिवर्तन हुए हैं। दुनिया के कई देशों में नवीन ऊर्जा स्रोतों से पैदा होने वाली बिजली जीवाश्म ईंधन की बिजली की तुलना में सस्ती पड़ने लगी है। इस बदलाव का कारण नवीन ऊर्जा से जुड़ी तकनीकों का लगातार बेहतर होना है। इससे पवन और सौर ऊर्जा उत्पादन की लागत में पिछले 10 साल में 70 फीसदी की कमी आई है।

ज्यादा क्षमता के पवन और सौर ऊर्जा प्लांट लगाने पर इसकी कीमत तुलनात्मक रूप से कम होती है, लेकिन जीवाश्म ईंधन की कीमत पर इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है। इसके चलते ही अब नवीन ऊर्जा के बड़े-बड़े प्लांट लगाने के लिए बड़े निवेश हो रहे हैं, क्योंकि इससे बिजली ज्यादा सस्ती हो जाती है। ऊर्जा की कीमत में गिरावट के कई फायदे हैं। इससे लोगों की आय में वृद्धि होती है। विशेषज्ञों के मुताबिक सोलर ऊर्जा का जहां तक सवाल है उसमें बैटरी की लागत में कमी लानी होगी। उस पर बहुत कार्य चल भी रहा है।

5. जीवाश्म ईंधन और उत्सर्जन घटाने पर फोकस

बढ़ते प्रदूषण के बड़े कारणों में से एक जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल और गैस) से बिजली उत्पादन भी है। अभी 79 फीसद बिजली का उत्पादन जीवाश्म ईंधन से होता है। वहीं जीवाश्म ईंधन जलने के कारण 87 फीसद कार्बन डाई ऑक्साइड गैस का उत्सर्जन होता है। एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में जीवाश्म ईंधन जलने के कारण होने वाले प्रदूषण से 36 लाख लोगों की मृत्यु होती है। इसलिए जीवाश्म ईंधन को घटाकर रिन्यूएबल एनर्जी से ही ज्यादा से ज्यादा बिजली उत्पादन की कोशिश होगी।

बी एम वर्मा बताते हैं कि जहां तक बिजली उत्पादन का सवाल है कोयले पर हमारी निर्भरता कम होगी। नए बिजली उत्पादन के सिस्टम आएंगे, जैसे हाइड्रोजन सेल्स। विकसित देशों में इस पर काम हो रहा है। भारत में भी आएगा।

(फोटो स्रोत-ऊर्जा मंत्रालय फेसबुक पेज)

बिजली सेक्टर के महत्वपूर्ण पड़ाव

1. भारत में पहली बार बिजली

1879 में कोलकाता में भारत में पहली बार बिजली आई थी। इसके बाद 1882 में मुंबई में बिजली पहुंची। वहीं एशिया में पहला हाइड्रो पावर प्लांट 1897 में दार्जिलिंग में लगा और फिर 1902 में शिवसमुद्रम में एक प्लांट लगा।

2. जब देश आजाद हुआ

बी एम वर्मा बताते हैं कि जब भारत आजाद हुआ सब कुछ लोगों से कि बिजली की पहुंचती। तब पावर प्लांट्स बने। भाखड़ा डैम बना। इसके बाद बिजली की संभावना बढ़ी। 17 नवम्बर 1955 को तात्कालिक प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में भाखड़ा नांगल परियोजना के अंतर्गत बांध का निर्माण शुरू हुआ। 1966 में इसका निर्माण पूरा हुआ।

3. साठ के दशक में आया बीएसईएल

साठ के दशक में बीएसईएल ने बिजली के क्षेत्र में बड़ा खिलाड़ी बन कर उभरा। साठ के दशक में 60 मेगावाट 100 मेगावाट से शुरुआत हुई। चेकोस्लोवाकिया से बॉयलर और रूस के टरबाइन इस्तेमाल किया जाता था। फिर 200 मेगावाट इसके बाद 660 फिर 800 मेगावाट के यूनिट्स लगने लगे। 1960 के दशक में भारत में क्षेत्रीय स्तर पर ग्रिड मैनेजमेंट सिस्टम शुरू हुआ। वहीं 1961 से 1966 में देश में पहली बार गैस से बिजली उत्पादन शुरू हुआ।

4. पंचवर्षीय योजनाओं का कमाल

पंचवर्षीय योजनाओं के आने के बाद से भारत में बिजली सेक्टर ने काफी प्रगति की है। 1950 में जहां कुल 1713 मेगावाट बिजली उत्पादन होता था। वह पहली पंचवर्षीय योजना का अंत होने पर 2886 मेगावाट हो गया। वहीं 1961 और 1966 में दूसरी और तीसरी योजना का अंतर होने पर यह क्रमश 4653 और 9027 मेगावाट पहुंच गया।

5. 70 का दशक-आई न्यूक्लियर एनर्जी

भारत में 1969 तक परमाणु संयंत्र से बिजली निर्माण नहीं शुरू हुआ था। लेकिन 1974 आते-आते देश में 640 मेगावाट बिजली न्यूक्लियर रिएक्टर से बनने लगी।

6. हाइड्रोइलेक्ट्रिक सेक्टर में सुधार

बाद में हाइड्रोइलेक्ट्रिक सेक्टर में भी काफी कम हुआ 1991 में बिजली के क्षेत्र में सुधार का कार्यक्रम शुरू किया गया जिसका नतीजा है कि निजी क्षेत्र की भागीदारी बिजली उत्पादन में 47 फीसदी हो चुकी है बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों ने अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट लगाए।

7. रिन्यूएबल ऊर्जा पर काम शुरू

1990 के दशक में ही पहली बार रिन्यूएबल ऊर्जा पर काम शुरू हुआ। 1990 में मात्र 18 मेगावाट बिजली उत्पादन रिन्यूएबल एनर्जी से होता था। लेकिन 1997 तक ये 902 मेगावाट हो गया है।

वहीं जलवायु परिवर्तन पर काम कर रहे थिंक टैंक एजेंसी एम्बर की रिपोर्ट के मुताबिक, 2020 की पहली छमाही में भारत भी अपनी 10 फीसदी ऊर्जा का उत्पादन विंड और सोलर की मदद से कर रहा है। विश्व की महाशक्ति अमेरिका 12 फीसदी, चीन, जापान और ब्राजील 10 फीसदी और तुर्की 13 फीसदी बिजली का उत्पादन पवन और सौर ऊर्जा से कर रहे हैं।

(इनपुट-मनीष कुमार, अनुराग मिश्र, विवेक तिवारी) 


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