यदि नोटा को ज्यादा वोट मिले तो रद किए जाएं चुनाव, राइट टु रिजेक्ट की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका
भाजपा नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल करके मांग की है कि चुनाव आयोग को संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत ऐसे चुनाव नतीजों को खारिज करने का अधिकार दिया जाए जहां अधिकतम वोट नोटा पर पड़े हों।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। एक बार फिर 'राइट टु रिजेक्ट' की मांग उठी है। नापसंद और अयोग्य प्रत्याशी को चुनाव में नकारने का अधिकार मांगा जा रहा है। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग को संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत ऐसे चुनाव नतीजों को खारिज करने का अधिकार दिया जाए, जहां अधिकतम वोट नोटा पर पड़े हों। याचिका में 'राइट टु रिजेक्ट' का अधिकार दिए जाने की मांग करते हुए कहा गया है कि इससे राजनैतिक दल ईमानदार और देशभक्त उम्मीदवार को टिकट देने को बाध्य होंगे।
...रद कर कराया जाए नया चुनाव
भाजपा नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने याचिका में 'राइट टु रिजेक्ट' का अधिकार मांगते हुए कहा कि अगर नोटा (नन ऑफ द एबव यानी उपरोक्त में से कोई नहीं) पर सबसे अधिक वोट पड़ें तो उस निर्वाचन क्षेत्र का चुनाव रद कर नया चुनाव कराया जाए और नए चुनाव में उन्हें चुनाव लड़ने से रोक दिया जाए जो रद हुए चुनाव में प्रत्याशी थे। 'राइट टु रिजेक्ट' का अधिकार दिए जाने की मांग करते हुए कहा गया है कि इससे राजनीतिक दल ईमानदार और देशभक्त उम्मीदवार को टिकट देने को बाध्य होंगे।
...तो गलत उम्मीदवार नहीं उतारेंगे दल
याचिका में कहा गया है कि जिस उम्मीदवार पर पार्टियां करोड़ों रुपये खर्च करती हैं और अगर मतदाता उसे अस्वीकार कर देते हैं तो राजनीतिक दल ऐसा उम्मीदवार खड़ा करने से परहेज करेंगे। यह सही मायने में लोकतंत्र होगा क्योंकि इससे लोग वास्तविक रूप से अपना प्रतिनिधि चुन सकेंगे। साथ ही उम्मीदवार में कामकाज के प्रति जवाबदेही आएगी। याचिका में मांग है कि चुनाव आयोग को निर्देश दिया जाए कि वह अनुच्छेद 324 में मिली शक्तियों का इस्तेमाल कर उस निर्वाचन क्षेत्र का चुनाव अमान्य घोषित करे जहां पर नोटा पर सबसे अधिक मत पड़े हों।
केंद्र को निर्देश देने की मांग
साथ ही वहां कराए जाने वाले नए चुनाव में उन्हें प्रतिबंधित कर दे जो अमान्य ठहराए गए चुनाव में प्रत्याशी थे। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार को उचित कदम उठाने का निर्देश दे या फिर संविधान का संरक्षक होने के नाते आदेश करे कि जहां नोटा पर सबसे अधिक वोट पड़ेंगे वहां का चुनाव अमान्य माना जाएगा और वहां छह महीने के भीतर नया चुनाव कराया जाएगा जिसमें वे प्रत्याशी नहीं होंगे जो चुनाव में अमान्य ठहराए गए थे।
1999 में सबसे पहले प्रस्तावित
याचिका के अनुसार 'राइट टु रिजेक्ट' सबसे पहले 1999 में विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट में प्रस्तावित किया गया था। रिपोर्ट में यह भी सुझाव था कि वही निर्वाचित घोषित किया जाएगा जिसे पचास फीसद से अधिक वैध वोट मिले हों। इसके बाद चुनाव आयोग ने 2001 में पहली बार 'राइट टु रिजेक्ट' का समर्थन किया था। उस समय जेम्स लिंगदोह मुख्य चुनाव आयुक्त थे। 2004 में जब टीएस कृष्णमूर्ति मुख्य चुनाव आयुक्त थे चुनाव आयोग ने चुनाव सुधार की अनुशंसा में इसे शामिल किया। चुनाव आयोग ने तब नियमों में संशोधन कर नोटा लाने का भी प्रस्ताव किया था।
विधि मंत्रालय का 2010 का प्रस्ताव
2010 में विधि मंत्रालय की ओर से चुनाव सुधार पर तैयार किए गए बैकग्राउंड पेपर में प्रस्ताव किया गया कि अगर नकारात्मक मत एक निश्चित फीसद में होंगे तो वह चुनाव अमान्य हो और नया चुनाव कराया जाना चाहिए। चुनाव आयोग और विधि आयोग दोनों ने उस समय निगेटिव या तटस्थ वोटिंग के विकल्प की सिफारिश की थी। जब सरकार ने इस पर कुछ नहीं किया तो पीयूसीएल संस्था ने 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने याचिका दायर की जिस पर 2013 में फैसला आया। फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को नोटा का विकल्प शामिल करने का आदेश दिया था। इसके बाद नोटा शामिल किया गया।
मौजूदा नोटा व्यवस्था है अलग
याचिका में कहा गया है कि मौजूदा नोटा व्यवस्था 'राइट टु रिजेक्ट' की तरह नहीं है क्योंकि इसमें अगर नोटा को 99 फीसद मत मिले और किसी प्रत्याशी को मात्र एक मत मिला तो भी एक मत पाने वाला प्रत्याशी विजयी होता है। कोर्ट ने नोटा पर फैसला देते हुए उम्मीद जताई थी कि इससे पार्टियों पर अच्छे उम्मीदवार का दबाव होगा। कहा गया है कि कोलंबिया व कुछ और देशों में अगर ब्लैंक वोट पचास फीसद से ज्यादा होते हैं तो वहां दोबारा चुनाव कराया जाता है और अमान्य चुनाव के उम्मीदवार पर नए चुनाव में रोक होती है।