तंत्र के गण : 75 वर्ष में स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में शिक्षा की यात्रा में स्वावलंबी होने के प्रयास
अमेरिका की सिलिकान वैली में भारतीयों का राज है। हमारी मेधा का परचम लहराता है लेकिन विश्व के सौ सर्वश्रेष्ठ शिक्षण संस्थानों में हमारा एक भी नहीं है। बीते 75 वर्ष में स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में शिक्षा की यात्रा में स्वावलंबी होने के प्रयासों को दर्शाती रिपोर्ट
नई दिल्ली, जेएनएन। राष्ट्र के विकास में शिक्षा महत्वपूर्ण स्तंभ है। अकादमिक सशक्तता के साथ-साथ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मजबूती के लिए भी शिक्षा का उतना ही महत्व है। अति प्राचीन भारतीय शिक्षा की संस्कृति को वैश्विक स्तर पर सैकड़ों वर्ष पहले से ही सराहा जा चुका है। तक्षशिला और नालंदा के देश की परंपरा स्वतंत्रता के बाद भी कायम रही है।
संविधान और शिक्षा
संविधान लागू होने के 10 वर्ष के भीतर इसके अनुच्छेद 45 में छह से 14 वर्ष के सभी बच्चों के लिए अनिवार्य व निःशुल्क शिक्षा व्यवस्था का निर्देश दिया गया था। अनुच्छेद 46 निर्देश देता है कि सरकार की तरफ से अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जन जातियों तथा पिछड़े वर्ग की शिक्षा की विशेष व्यवस्था की जाए। 2009 में अधिनियम बनाकर बाल शिक्षा को एक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई।
आइआइटी एवं आइआइएम
1951 में बंगाल के खड़गपुर में पहली आइआइटी बनी और इसके 10 वर्ष बाद कोलकाता (तब कलकत्ता) में पहले आइआइएम की स्थापना हुई। आज देश में 23 आइआइटी और 19 आइआइएम हैं। 25 ट्रिपलआइटी भी हैं।
वर्ष 2014 के बाद करीब सात वर्षों में सात आइआइटी की स्थापना हुई। इस कालखंड में देश में सात आइआइएम भी बने।
शिक्षा नीति
- 1968 स्वतंत्रता मिलने के बाद पहली शिक्षा नीति बनने में दो दशक से अधिक का समय लगा। पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति में त्रिभाषा मूल सूत्र था यानी अंग्रेजी, हिंदी और एक स्थानीय भाषा। छह से 14 साल के बच्चों के लिए शिक्षा को अनिवार्य और निःशुल्क बनाने की बात इसमें की गई
- 1986 नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में महिलाओं और वंचित वर्गों की शिक्षा पर खास जोर था। मुक्त विश्वविद्यालयों की अवधारणा भी मजबूत की गई
- 2020 यह आमूलचूल बदलाव का वर्ष साबित हो सकता है। महामारी केबावजूद केंद्र ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को टाला नहीं
- 35 वर्ष के अंतराल के बाद समावेशी शिक्षा का सिद्धांत लेकर सरकार ने यह नीति प्रस्तुत की। प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक का स्वरूप बदलने और भारतीयता की भावना से ओतप्रोत शिक्षा व्यवस्था पर काम शुरू हो चुका है
ये हैं लक्ष्य
- वर्ष 2030 तक सकल नामांकन अनुपात (जीआईआर) 100 प्रतिशत करना
- शिक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का छह प्रतिशत सार्वजनिक व्यय करना
- पांचवीं कक्षा तक मातृभाषा/ स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा पर जोर दिया जाएगा
इतिहास के झरोखे से
भारतीय भाषाओं से मैकाले की अंग्रेजी तक: देश का शासन ब्रिटिश राज के हाथों में जाते ही भारत में शिक्षा को अंग्रेजों के अनुरूप व अनुकूल बनाने की प्रक्रिया चली जिसका प्रभाव आजतक दिखता है। 1835 में मैकाले की अंग्रेजी आधारित शिक्षा पद्धति आने से पहले देश में भारतीय भाषाओं और विषयों का बोलबाला था।
स्वतंत्रता मिलने के पश्चात
उच्च शिक्षा: 1947 में देश स्वाधीन हुआ। अगले ही वर्ष भारतीय शिक्षा व्यवस्था में स्वावलंबन की दिशा में पहला बड़ा पग उठा, राधाकृष्णन समिति के गठन के रूप में। डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के नेतृत्व में इस समिति के सुझाव पर 1953 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) का गठन हुआ।
माध्यमिक शिक्षा: राधाकृष्णन समिति के माध्यम से स्वतंत्र देश में उच्च शिक्षा के प्रबंधन की दिशा में तो कदम बढ़ चले थे, लेकिन माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में बहुत कुछ किया जाना बाकी था। 1952-53 में माध्यमिक शिक्षा आयोग का गठन होने के बाद से इस वर्ग को सही दिशा में आगे बढ़ने का अवसर मिला।
कब क्या हुआ
- 1961 राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की स्थापना
- 1975 समेकित बाल विकास सेवा योजना प्रारंभ
- 1976 42वें संविधान संशोधन से शिक्षा को राज्य से समवर्ती सूची में डाला गया
- 1985 इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय की स्थापना
- 1987-88 अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआइसीटीई) स्थापित। राष्ट्रीय साक्षरता मिशन प्रारंभ
- 1993 राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद स्थापित
- 1994 राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद की स्थापना की गई
- 1995 प्राथमिक स्कूलों में मिडडे मील योजना की शुरुआत
- 2001 सर्व शिक्षा अभियान प्रारंभ किया गया, जिससे साक्षरता दर बढ़ाने में मदद मिली
- 2003 17 क्षेत्रीय इंजीनियरिंग कालेजों को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान बनाया गया
- 2004 शिक्षा को समर्पित उपग्रह एडूसैट प्रक्षेपित
- 2007 राष्ट्रीय संस्कृत परिषद गठित
- 2018 इस वर्ष देश में 62 विश्वविद्यालयों और आठ महाविद्यालयों को स्वायत्तता की घोषणा की गई