कारगर दवा: नीरी केएफटी खराब कोशिकाओं को ठीक करने में सक्षम
गुर्दे की बीमारी पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में छाया रहा आयुर्वेद..एलोपैथ में नहीं है कोई इलाज, पर आयुर्वेद करता है खराब किडनी को ठीक
नई दिल्ली (नीलू रंजन)। आधुनिक चिकित्सा पद्धति एलोपैथ ने भी आयुर्वेद का लोहा मान लिया है। जिस मर्ज का इलाज एलोपैथी में नहीं है, वह आयुर्वेद में है। कम-से-कम किडनी की बीमारियों के इलाज में यह साबित हो रहा है। आयुर्वेदिक दवा न सिर्फ किडनी की बीमारी को बढ़ने से रोकती है बल्कि खराब किडनी को काफी हद तक ठीक भी कर सकती है। यही कारण है कि किडनी के उपचार में आयुर्वेद की प्रभावी दवाओं के इस्तेमाल की पैरवी अब एलोपैथी के डॉक्टर भी करने लगे हैं। सोसाइटी ऑफ रीनल न्यूट्रीशियन एंड मेटाबॉलिजम (एसआरएनएमसी) के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में किडनी के इलाज में आयुर्वेद को शामिल करने का मुद्दा छाया रहा।
खासतौर से आयुर्वेदिक दवा नीरी केएफटी की किडनी की बीमारी को बढ़ने से रोकने और खराब किडनी को काफी हद तक ठीक करने में मिल रही सफलता पर विशेष चर्चा हुई। सम्मेलन में भाग ले रहे डॉक्टरों का कहना था कि ऐलोपैथ में किडनी का कोई प्रभावी इलाज नहीं है। एलोपैथ की दवाइयां खराब किडनी को ठीक करना तो दूर की बात, किडनी को खराब होने से रोकने में भी सक्षम नहीं है। अंतत मामला डायलसिस या फिर किडनी के ट्रांसप्लांट पर आकर टिक जाता है। लेकिन आयुर्वेद का पुनर्नवा, जिसका इस्तेमाल नीरी केएफटी में किया जाता है, किडनी की खराब कोशिकाओं की ठीक करने में सक्षम है। इस आयुर्वेदिक दवा में 15 जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल होता है।
गंगाराम अस्पताल के जाने-माने किडनी रोग विशेषज्ञ डॉ. मनीष मलिक ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि किडनी के बढ़ते मरीजों की संख्या देखते हुए इसके कारगर इलाज का तरीका ढूंढना जरूरी है। ऐसे में डॉक्टरों को एलोपैथी चिकित्सा पद्धति के ढांचे से बाहर निकलकर आयुर्वेद जैसे वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति में मौजूद विकल्पों को सहजता से अपनाना चाहिए। किडनी के मरीजों को यदि शुरू में ही आयुर्वेदिक दवाइयां दे दी जाएं तो उनके किडनी को और ज्यादा खराब होने से रोका जा सकता है। उन्होंने कहा कि आयुर्वेदिक दवा के इस्तेमाल से यदि मरीज को फायदा होता है तो डॉक्टरों को इसे स्वीकार करने और इलाज में इसे शामिल करने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए। शनिवार और रविवार को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में आयोजित इस सेमिनार में स्वीडन और हांगकांग समेत कई देशों के चिकित्सक मौजूद थे।
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