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New Education Policy : भारी निवेश के बगैर शिक्षा में नहीं दिखेगा बदलाव, दोगुना करना होगा शिक्षा का बजट

नई शिक्षा नीति तैयार करने वाली कस्तूरीरंगन कमेटी ने नीति के मसौदे के साथ ही इसे जमीन पर उतारने के लिए होने वाले खर्च को लेकर भी रिपोर्ट दी है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Thu, 06 Aug 2020 08:16 PM (IST)Updated: Fri, 07 Aug 2020 02:03 AM (IST)
New Education Policy : भारी निवेश के बगैर शिक्षा में नहीं दिखेगा बदलाव, दोगुना करना होगा शिक्षा का बजट
New Education Policy : भारी निवेश के बगैर शिक्षा में नहीं दिखेगा बदलाव, दोगुना करना होगा शिक्षा का बजट

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। नई शिक्षा नीति के जरिए जिन बड़े बदलावों और सुधारों का प्रस्ताव किया गया है, उसे जमीन पर उतारने के लिए शिक्षा के बजट को कम से कम दोगुना करना होगा। हालांकि सरकार के लिए यह कठिन है, बावजूद इसके नीति निर्माताओं ने जो प्रस्ताव किया है, उसके तहत नीति को लागू करने के लिए शिक्षा पर होने वाले सरकारी खर्च को बढाकर 20 फीसद करना होगा। मौजूदा समय में यह 10 फीसद के आसपास है। वहीं प्रस्तावित बढ़ोत्तरी में से आधी बढ़ोत्तरी तुरंत ही करनी होगी। 

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नई शिक्षा नीति में शिक्षा पर सरकारी खर्च को 20 फीसद करने का प्रस्ताव

नई शिक्षा नीति तैयार करने वाली कस्तूरीरंगन कमेटी ने नीति के मसौदे के साथ ही इसे जमीन पर उतारने के लिए होने वाले खर्च को लेकर भी रिपोर्ट दी है। साथ ही बताया है कि इससे पहले वर्ष 1968 और 1986 में लायी गई शिक्षा नीति इसीलिए पूरी तरह क्रियांवित नहीं हो पायी, न ही उसका लाभ मिल पाया, क्योंकि इसके लिए बजट में उतनी राशि ही उपलब्ध नहीं कराई गई। जिसके तहत यह तय समयसीमा में लागू नहीं पायी। कमेटी ने नीति को लेकर अपनी बजट रिपोर्ट में इस बात पर अफसोस भी बताया है कि शिक्षा पर जीडीपी का छह फीसद खर्च करने की बात वर्ष 1968 में पहली शिक्षा नीति के समय कही गई थी। जो बाद में 1986 और 1992 में भी दोहराई गई, लेकिन कभी उस लक्ष्य के पास भी नहीं पहुंची। 

मौजूदा समय में शिक्षा का बजट करीब एक लाख करोड़ के आसपास

मौजूदा समय में भी शिक्षा पर कुल जीडीपी का चार फीसद के आसपास ही खर्च होता है। जबकि विकसित देशों में यह छह फीसद या उससे ज्यादा है। ऐसे में शिक्षा के क्षेत्र में विकसित देशों के मुकाबले खड़े होने के लिए शिक्षा पर मूलभूत ढांचे को सुधारने के लिए अतिरिक्त राशि की जरूरत है। वित्तीय वर्ष 2020-21 के बजट में शिक्षा का कुल बजट करीब एक लाख करोड़ रूपए था।

नीति के क्रियान्वयन पर काम कर रहे अधिकारियों का मानना है, कि इसके अमल की राह का सबसे बड़ा रोड़ा बजट ही है। खासकर नीति में जिस तरीके से प्री-प्राइमरी के लिए एक नया स्टेज शुरू करने, बच्चों को खाने के साथ नाश्ता देने और सभी जिलों में ऐसे उच्च शिक्षण संस्थान स्थापित करने जिसमें सभी विषयों की पढाई होती हो, जैसे प्रमुख प्रस्तावों के तुरंत ही पैसा चाहिए। नई शिक्षा नीति में पिछली नीति की चूक से भी सबक ली गई है।


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