नई दिल्ली, अनुराग मिश्र।

भारत का स्टार्टअप इकोसिस्टम दुनिया में तीसरे स्थान पर है। भारत ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में शीर्ष 50 देशों में शामिल है और दुनिया के सबसे स्टार्टअप फ्रेंडली देशों (एशिया में अग्रणी) में से एक है। केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने भी कुछ समय पहले यह बयान दिया था कि नई शिक्षा नीति भारत में स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को नए कैरियर और उद्यमिता के अवसर खोलने के वादे के साथ पूरक बनाती है। कोरोना काल के दौरान एजुकेशन स्टार्टअप में सबसे अधिक तरक्की देखी गई थी। उसके बाद एजुकेशन स्टार्टअप के रूझान में कमी नहीं आई है। विशेषज्ञ कहते हैं कि इसके पीछे खास वजह है। वह कहते हैं कि वह शिक्षार्थियों को विषयों को बेहतर ढंग से समझने में मदद करने के लिए ऑनलाइन शिक्षण या हाइब्रिड तरीकों का उपयोग कर रहे हैं। वे छात्रों के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं की पढ़ाई को आसान बनाकर भारत में शैक्षिक माहौल को भी बदल रहे हैं। शिक्षकों को उनके शिक्षण को अधिक आकर्षक और प्रभावी बनाने के लिए डिवाइसेज और संसाधन प्रदान करके, एडटेक स्टार्टअप भारतीय शिक्षा परिदृश्य को बदल रहे हैं।

स्पेसमंत्रा की संस्थापक निधि अग्रवाल कहती है कि तेजी से बढ़ रही इंडस्ट्री और समाज की मांगों को पूरा करने के लिए, भारत की शिक्षा प्रणाली समय के साथ बदल गई है। इसमें कई नई चीजों को शामिल किया गया है। कौशल-आधारित शिक्षा की प्रासंगिकता को भारतीय शिक्षा प्रणाली द्वारा मान्यता दी गई है। शैक्षणिक ज्ञान के अलावा व्यावहारिक कौशल पर जोर देकर छात्रों को इंडस्ट्री के लिए बेहतर तरीके से तैयार किया जा सकता है। जिससे संभावित रूप से बेरोजगारी दर कम हो सकती है। जैसे-जैसे शैक्षिक प्रणाली बदलती है, रचनात्मकता और उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करने पर अधिक ध्यान दिया जाता है। इसके परिणामस्वरूप अधिक स्टार्टअप बन सकते हैं, जो आर्थिक विकास और रोजगार सृजन को बढ़ावा देने में सहायता करेगा।

एआईसीटीई के वाइस चेयरमैन कहते हैं कि हमने स्टॉर्टअप को बढ़ाने को लेकर बड़ी स्कीम लांच की है। आईआईसी (इंस्टीट्यूशंस इनोवेशन काउंसिल) एक महती स्कीम है। हमने ये काउंसिल साढ़े सात हजार कॉलेज में खड़ी की है। इस इनोवेशन काउंसिल के द्वारा हम आईडिया को सपोर्ट कर रहे हैं। हम टीआरएल (टेक्नोलॉजी रेडीनेस लेवल) लेवल पर आईडिया को सपोर्ट कर रहे हैं। हमने इसे एक से दस लेवल पर आंका है। एक मतलब आईडिया है और दस नंबर इंडस्ट्री को ट्रांसफर करने के लिहाज से तैयार है। अभी तक हमारे विभिन्न कॉलेजों में पांच हजार से ज्यादा स्टॉर्टअप इंक्यूबेटर्स है। कभी भी पहले ऐसा नहीं हुआ था। हमारे एजुकेशन संस्थान स्टॉर्टअप हब बनने जा रहे हैं। हम आउटकम बेस्ड लर्निंग पर फोकस कर रहे हैं। क्या आप सिर्फ रट्टा मार पढ़ाई नहीं कर रहे ?आपकी तार्किक क्षमता, समस्याओं को हल करने की काबीलियत कितनी बेहतर है इसकी परख होनी आवश्यक है? बच्चों के कांसेप्ट को मजबूत करने पर फोकस है। जब आप बेहतर तरीके से इन चीजों को आत्मसात कर सकेंगे तो आप सफल इंटरप्रिन्योर बन सकेंगे।

घर बैठे क्वालिटी एजुकेशन

रोजमोर की निदेशक रिद्धिमा कंसल कहती है कि टेक्नोलॉजी से शिक्षा सबके लिए सुलभ हो गई है। यहीं नहीं अब यह पहले की तुलना में अधिक व्यक्तिगत जुड़ाव रखने वाली हो गई है। वह कहती है कि डिजिटल सामग्री और ऑनलाइन पाठ्यक्रमों की बढ़ती उपलब्धता के कारण छात्र किसी भी जगह बैठकर गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। भारत शैक्षिक गुणवत्ता को बढ़ावा देकर विश्व स्तर पर शानदार वर्कफोर्स का निर्माण कर सकता है। एक सुशिक्षित कार्यबल विदेशी निवेश और आर्थिक प्रगति को प्रोत्साहित करता है। शैक्षणिक संस्थानों में अनुसंधान और विकास में सुधार से विभिन्न क्षेत्रों में सफलता मिल सकती है। इससे प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य देखभाल और अन्य क्षेत्रों में प्रगति करने में सहायता मिल सकती है।

2047 में हम आइडियाज के हब बनेंगे

एआईसीटीई के वाइस चेयरमैन कहते हैं कि हमारे 100 साल पूरे होंगे तब भी हम सबसे युवा देश रहेंगे। तब तक दुनिया की पहली या दूसरी इकोनॉमी भारत बन चुका होगा। दुनिया के तमाम मुल्कों से लोग यहां पढ़ने आ रहे हैं और आने वाले समय में इसमें बढ़ोतरी होगी। यहां से प्रशिक्षित मानव संसाधन पूरी दुनिया में अपनी छाप छोड़ेगा। पहली और दूसरी इकोनॉमी बनने के लिए हमें इतनी आइडियाज बनाने होंगे जो पूरी दुनिया में लागू हो। अगले पच्चीस साल में हम ग्लोबल इनोवेशन हब बनेंगे। हमारे लोग दुनिया को टेक्नोलॉजी, प्रोडक्ट के साथ आइडियाज भी देंगे।

ई-लर्निंग कंटेट

पीडीएम यूनिवर्सिटी के वीसी और डीयू के सेंटर फॉर ई लर्निंग के चेयरमैन डॉ ए के बख्शी ने बताया कि देश में 13 साल पहले से ई-लर्निंग के लिए कंटेंट बन रहा है। ई-लर्निंग को बढ़ावा देने के दो कारण थे- पहला, देश में उच्च शिक्षा में पंजीकरण सिर्फ 28 फीसदी है और पढ़ाई के स्तर में भी सुधार की काफी जरूरत है। शिक्षा में इनोवेशन काफी कम है। इसे इस बात से समझा जा सकता है कि क्यों 130 के बाद भी किसी भारतीय को नोबेल पुरस्कार नहीं मिला? यानी उच्च शिक्षा की पहुंच ज्यादातर युवाओं तक पहुंचाने के लिए ई-लर्निंग की काफी जरूरत है। पर साथ ही ई-लर्निंग के कंटेंट की क्वालिटी अच्छी होनी चाहिए। अगर कंटेंट खराब होगा तो छात्र समझने की जगह कंप्यूज हो जाएगा।

डॉ ए के बख्शी ने कहा कि कंटेंट में सुधार के लिए 2013-14 से MOOCs (मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्सेज) पर जोर देना शुरू किया गया। मूक्स में किसी कोर्स के सेमेस्टर और पेपर के हिसाब से कंटेंट बनता है। मतलब किसी 2 साल के कोर्स के चार सेमेस्टर में कुल 16 पेपर हैं तो 16 मूक्स तैयार होंगे। देश में उच्च शिक्षा के करीब 50 फीसदी कोर्स के मूक्स तैयार हो चुके हैं और बाकी पर काम किया जा रहा है।

कल्याणम फर्नीचर के संस्थापक और सीईओ तेजपाल सिंह शेखावत कहते हैं कि भारत में आज व्यावहारिक कौशल विकास पर जोर दिया जा रहा है। व्यावहारिक कौशल विकास यह गारंटी देता है कि छात्रों को ऐसे कौशल और जानकारी के साथ तैयार किया जाए जो बाजार की मांगों के अनुरूप हो। इससे छात्रों की रोजगार क्षमता बढ़ती है और अकादमिक ज्ञान और वास्तविक दुनिया के अनुप्रयोगों के बीच अंतर कम होता है। आज शिक्षण संस्थानों में बाजार की मांग के अनुरूप छात्रों को तैयार किया जा रहा है। छात्रों को कौशल विकास से जोड़ने से उनका व्यावहारिक ज्ञान बढ़ता है जिससे उन्हें बेहतर ढंग से समझने और लंबे समय तक ज्ञान बनाए रखने में मदद मिलती है। इससे छात्र समस्याओं के समाधान के लिए बेहतर तरीके से काम कर सकते हैं।

क्यों सफल है एजुकेशन स्टॉर्टअप

अपने अनुसार समय चुनने की छूट

कई स्टॉर्टअप में इस बात की सुविधा है कि शिक्षक और छात्र अपने अनुसार समय चुन सकें। इससे शिक्षकों और छात्रों का वर्क लाइफ बैलेंस ठीक रहता है। वहीं प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे लोग साथ में नौकरी भी जारी रख सकते हैं।

छात्र-शिक्षक संवाद

एडटेक स्टार्टअप में छात्र शिक्षक संवाद बेहतर रहता है। यहां स्टूडेंट टीचर के साथ व्यक्तिगत स्तर पर अपनी समस्याओं के निदान के लिए काम कर सकता है।

विकल्प चुनने की सुविधा

एडटेक स्टार्टअप शिक्षकों को शिक्षण के अपने पसंदीदा तरीके का चयन करने की सुविधा भी प्रदान करते हैं। शिक्षक ऑनलाइन शिक्षण का विकल्प चुन सकते हैं, जहां वे विशेष रूप से डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से कक्षाएं लेते हैं, विभिन्न स्थानों से छात्रों तक पहुंचते हैं।

इंफ्रास्ट्रक्चर

एडटेक खिलाड़ी शिक्षकों को उनके कार्यों में सहायता करने के लिए प्रचुर शिक्षण संसाधन और बुनियादी ढाँचा प्रदान करते हैं। ये स्टार्टअप इंटरैक्टिव शैक्षिक सामग्री, मूल्यांकन और बहुत कुछ जैसी डिजिटल शिक्षण सामग्री डिजाइन और प्रस्तुत करते हैं।

चुनौतियां और फायदे

सस्ती हो जाएगी शिक्षा और दूसरे देशों में भी नहीं जाना पड़ेगा- अगर ऑनलाइन एजुकेशन एक मानक बनेगा तो इससे कई और फायदे होंगे, क्योंकि ऑनलाइन एजुकेशन काफी सस्ती है। अगर दुनिया की ज्यादातर बड़ी यूनिवर्सिटी ऑनलाइन शिक्षा देने लगें तो छात्रों को पढ़ने के लिए दूसरे देशों में नहीं जाना पड़ेगा। छात्रों को अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा उनके गृह देश में ही मिलेगी।

सामाजिक अनुभव कम मिलेगा- दूसरे देशों में शिक्षा के लिए जाने पर सामाजिक अनुभव भी खूब मिलता है। ऑनलाइन कोर्स की मान्यता और गुणवत्ता नियंत्रण की भी समस्या है। क्रॉस इंस्टीट्यूट क्रेडिट सिस्टम पारंपरिक शिक्षा प्रणालियों के लिए भी चुनौती है और ऑनलाइन एजुकेशन का लचीलापन इसे और भी खराब बना सकता है। कई यूनिवर्सिटी को शक होता है कि क्या उनके ऑनलाइन कोर्स परंपरागत कोर्स जितने लोकप्रिय होंगे।

व्यावहारिक चुनौतियां- ऑनलाइन पढ़ाई में कई व्यावहारिक चुनौतियां भी हैं। जैसे, इंटरनेट की समस्या, बैकग्राउंड की आवाज और फोकस होने में मुश्किल। ये चीजें छात्र और शिक्षक दोनों पर प्रभाव डालती हैं।

ग्रामीण भारत को भी साथ लेकर चलना होगा- कुछ लोगों का मानना है कि ऑनलाइन एजुकेशन केवल विकसित देशों में ज्यादा सफल हो सकता है। हमारे देश में जहां मिड डे मील स्कूली बच्चों के आकर्षण की एक बड़ी वजह है, वहां कई हिस्सों में ऑनलाइन एजुकेशन फिलहाल असंभव है। ऑनलाइन क्लास के लिए स्थिर बिजली और भरोसेमंद इंटरनेट कनेक्शन की जरूरत है। ऐसे में अगर ऑनलाइन एजुकेशन एकाएक बढ़ता है तो कम आय वाले घरों, पिछड़े जिलों और गरीब देशों में लर्निंग गैप बढ़ जाएगा।

ये चुनौतियां जरूर हैं, लेकिन ये अजेय नहीं हैं। ऑनलाइन एजुकेशन अपार संभावनाओं वाला क्षेत्र है। एजुकेशन सेक्टर का झुकाव को रिमोट लर्निंग की ओर बढ़ाना होगा और इसे बेहतर बनाने के हर संभव प्रयास करने होंगे।