इकोनोमी में नई जान फूंकने के लिए करने होंगे भागीरथी प्रयास, दूसरी तिमाही में धीमी रही ग्रोथ रेट
आरबीआइ ने इस वर्ष रेपो रेट घटा कर कर्ज को सस्ता कर घरेलू मांग बढ़ाने की जो कोशिश की है वह भी काम नहीं कर पा रहा है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के दौरान देश की आर्थिक विकास दर के पिछले छह वर्षो के न्यूनतम स्तर पर आ जाने से भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि इस हालात में फिलहाल बड़े सुधार की गुंजाइश नहीं है। विशेषज्ञों की राय में लगातार छह तिमाहियों से आर्थिक विकास में आ रही गिरावट के साथ सरकार के राजस्व में भारी कमी मिल कर अर्थव्यवस्था के समक्ष एक बड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं जिससे पार पाना आसान नहीं होगा। ऐसे में सरकार के लिए चालू वित्त वर्ष के अगले पांच महीनों के दौरान राजकोषीय संतुलन बनाना आसान नहीं होगा। अर्थविद यह भी कह रहे हैं कि अगली तिमाही से देश की आर्थिक विकास दर सुधरेगी, लेकिन यह इसलिए नहीं कि मूलभूत हालात में सकारात्मक बदलाव आ रहे हैं बल्कि पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाहियों में विकास दर काफी नीचे रही थी।
अगली तिमाही से हालात सुधरेंगे
अर्थविदों की इस आशंकाओं के बावजूद वित्त मंत्रालय के अधिकारी मानते हैं कि अगली तिमाही से हालात सुधरेंगे। आर्थिक मामलों के सचिव अतनु चक्रवर्ती का कहना है कि विकास दर के ताजा आंकड़ों के बावजूद भारत अभी भी दुनिया की सबसे तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था है। विदेशी संस्थागत व अन्य निजी निवेशकों का भरोसा भारतीय बाजार व यहां की इकोनोमी पर मजबूत हो रही है। अप्रैल से अक्टबर, 2019 में 23.86 अरब डॉलर का निवेश आया है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में यह राशि महज 9.04 अरब डॉलर की थी। उन्होंने निजी निवेश की रफ्तार को लेकर चिंता जरुर जताई लेकिन यह भी कहा कि सरकार निजी क्षेत्र को अर्थव्यवस्था में ज्यादा भागीदारी देने की कोशिश कर रही है। इस संदर्भ में उन्होंने सरकारी उपक्रमों के विनिवेश को लेकर हाल के फैसलों का जिक्र किया और कहा कि कुछ महत्वपूर्ण उपक्रमों में सरकार की हिस्सेदारी 51 फीसद से नीचे लाने का फैसला ऐसा है जो पहले कभी नहीं हुआ।
विकास दर के बेहद कम होने का असर आने वाले दिनों में पड़ेगा
दैनिक जागरण ने कई अर्थविदों से इस बारे में बात की तो वो इस बात से सहमत हैं कि अगली तिमाही (अक्टूबर-दिसंबर, 2019) से आर्थिक विकास दर पहले से बेहतर होगी, लेकिन पहली छमाही में विकास दर के बेहद कम होने का असर कई तरह से आने वाले दिनों में पड़ेगा।
राजकोषीय संतुलन की स्थिति भी बेहद चिंताजनक, खपत बढ़ाना बड़ी चुनौती
शुक्रवार को सरकार की तरफ से बताया गया है कि वित्त वर्ष के पहले सात महीनों में राजकोषीय घाटा लक्ष्य का 102.4 फीसद हो गया है। चालू वित्त वर्ष के लिए सरकार राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 3.3 फीसद का रखा है। जीएसटी और प्रत्यक्ष कर के जो आंकडे़ अभी तक सामने आये है वो बेहद निराशाजनक है। जीएसटी संग्रह पिछले सात महीनों में सिर्फ एक बार एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा रही है जबकि सरकार ने हर महीने 1.14 लाख करोड़ रुपये संग्रह का अनुमान लगाया था। फिच रेटिंग एजेंसी के चीफ इकोनोमिस्ट सुनील सिन्हा का कहना है कि शेष बचे पांच महीनों में लक्ष्य के मुताबिक राजस्व संग्रह करना नामुमकिन है। ऐसे में सरकार को राजकोषीय घाटे का लक्ष्य बढ़ाना होगा या फिर खर्चे पर लगाम लगाना होगा। हालांकि मौजूदा परिदृश्य में खर्चे में कटौती करने का ज्यादा विपरीत असर होगा।
सरकार के खर्चे में 13.1 फीसद का इजाफा, निजी क्षेत्र के खर्चे में 3.1 फीसद की गिरावट
क्रिसिल के अर्थशास्त्री डीके जोशी का कहना है कि 'सरकार के खर्चे में 13.1 फीसद का इजाफा हुआ है जिसकी वजह से विकास दर की रफ्तार चार फीसद को पार की है। दूसरी तरफ देखा जाए तो निजी क्षेत्र के खर्चे में महज 3.1 फीसद की गिरावट है। अब देखना है कि देश में उपभोग बढ़ाने के लिए क्या उपाय किये जाते हैं। फिक्की, एसोचैम जैसे उद्योग चैंबर भी जीडीपी की सुस्त रफ्तार के लिए उपभोग में कमी को बड़ी वजह मानते हैं। माना जा रहा है कि आरबीआइ ने इस वर्ष रेपो रेट घटा कर कर्ज को सस्ता कर घरेलू मांग बढ़ाने की जो कोशिश की है वह भी काम नहीं कर पा रहा है।