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सालभर का संसाधन 212 दिन में खत्म 153 दिन क्या करेगा इंसान?

अर्थओवर शूट दिन का मतलब है कि धरती एक साल में जितने संसाधन उत्पादित करती है, दुनिया भर की आबादी उन संसाधनों का एक साल से पहले ही जिस दिन तक उपभोग कर लेती है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Thu, 02 Aug 2018 11:29 AM (IST)Updated: Thu, 02 Aug 2018 11:59 AM (IST)
सालभर का संसाधन 212 दिन में खत्म 153 दिन क्या करेगा इंसान?
सालभर का संसाधन 212 दिन में खत्म 153 दिन क्या करेगा इंसान?

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। बुधवार यानी एक अगस्त को एक ऐसा दिन बीता जिसे दुनिया भर में अर्थ ओवरशूट दिवस के रूप में मनाया जाता है। अर्थओवर शूट दिन का मतलब है कि धरती एक साल में जितने संसाधन उत्पादित करती है, दुनिया भर की आबादी उन संसाधनों का एक साल से पहले ही जिस दिन तक उपभोग कर लेती है।

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यानी साल 2018 में धरती द्वारा उत्पादित जिस संसाधन को हमें 365 दिन उपभोग करना था, उसे हमने एक अगस्त यानी 212वें दिन ही खत्म कर दिया। बाकी 153 दिन हम संसाधनों के अति दोहन करेंगे। अंतरराष्ट्रीय शोध संस्थान ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क का अध्ययन बताता है कि आज एक साल के लिए जितने संसाधन की जरूरत है, उसके लिए हमें 1.7 पृथ्वी की जरूरत है।

धरती का तेजी से बढ़ता दोहन
1969 में धरती एक साल में जितना संसाधन तैयार करती थी, पूरी दुनिया उसका इस्तेमाल करीब 13 महीने करती थी। दिन बदले, तस्वीर बदली। आज 2018 में हम उन्हीं संसाधनों को 212वें दिन ही खत्म कर दे रहे हैं। पिछले साल खात्मे की तारीख दो अगस्त यानी 213वां दिन था। एक साल में ही एक दिन घट गया। अगर दोहन इसी तरह चलता रहा तो किसी भी अनहोनी के लिए इंसानियत को तैयार रहना होगा।

40 दिन में ही संसाधन खत्म कर देते हैं कतर वाले
विभिन्न देशों की प्राकृतिक संसाधनों के दोहन की क्षमता के आधार पर यदि आकलन किया जाए तो वियतनाम के लोग सबसे अच्छा जीवन व्यतीत कर रहे हैं और प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर चल रहे हैं। यदि वियतनाम या जमैका निवासियों की तरह जीवनशैली अपनाई जाए तो प्राकृतिक संसाधनों का पूरे साल प्रयोग किया जा सकता है, वहीं इस मामले में सबसे खराब स्थिति कतर की है, जहां संसाधनों का दोहन मात्र 40 दिन में ही कर लिया जाता है।

2.5 भारत चाहिए
हमारी साल भर की प्राकृतिक संसाधनों की पूर्ति के लिए। 8.5 दक्षिण कोरिया चाहिए उनकी जरूरतों के लिए तो ब्रिटिश जरूरतों की पूर्ति के लिए करीब 4 ब्रिटेन की आवश्यकता है।

0.7 पृथ्वी, यानी एक से भी कम की जरूरत पड़ेगी यदि दुनिया भर के लोग भारतीयों की तरह जीवनयापन करें। 5 पृथ्वी की जरूरत होगी यदि लोग अमेरिकी लोगों की तरह रहें, 3 पृथ्वी की जरूरत जर्मनी और 2.2 पृथ्वी की जरूरत होगी यदि ब्रिटिश नागरिकों की तरह जीवन जिया जाए।

पृथ्वी से धोखा
ग्लोबल फुटप्रिंट नेटवर्क के मुखिया मैथीज वेकरनेगल ने बताया कि हमारी वर्तमान अर्थव्यवस्था पृथ्वी के साथ धोखा करने जैसी है। यह कुछ-कुछ पोंजी स्कीम जैसा है। हम वर्तमान की जरूरतें पूरी करने के लिए धरती से भविष्य के संसाधन भी उधार लेते जा रहे हैं। लेकिन यह तरकीब एक वक्त तक ही काम कर सकती है। जब कर्ज या दोहन जरूरत से ज्यादा बढ़ जाता है तो यह उपाय काम करना बंद कर देता है।  


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