धरती अपनी सामान्य गति से तेजी से घूम रही है, 24 घंटे से भी कम समय में लगा रही चक्कर, जानें नुकसान
पृथ्वी ने हाल के दिनों में अपनी स्पीड काफी तेजी से बढ़ाई है। साल 2020 में पृथ्वी की तेज गति के चलते जुलाई का महीना सबसे छोटा देखा गया। इससे पहले ऐसी स्थिति साल 1960 के दशक में देखी गई थी। 19 जुलाई को सबसे छोटा दिन मापा गया था।
नई दिल्ली, नेशनल डेस्क। धरती अपनी सामान्य गति से क्या अब तेज घूमने लगी है? क्या पृथ्वी अब 24 घंटे से भी कम समय में एक चक्कर पूरा कर ले रही है? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जो पिछले कुछ महीनों में अस्तित्व में आया है। विज्ञानियों का मानना है कि पृथ्वी तेज गति से घूम रही है। पृथ्वी के घूमने की स्पीड इतनी तेज है कि 24 घंटे में पूरा होने वाला चक्कर, उससे पहले ही पूरा हो जा रहा है। यह कैसे हो रहा है? और इसका हम पर क्या असर पड़ेगा? इन सवालों के जवाब तलाशती रिपोर्ट:
नए पैमाने तय करेगा 29 जुलाई का रिकार्ड
रिकार्ड के अनुसार 29 जुलाई 2022 को पृथ्वी को अपने अक्ष पर एक चक्कर पूरा करने में 24 घंटे से कम का समय लगा था। इस दिन धरती ने अपना चक्कर महज 1.59 मिलीसेकंड में पूरा कर लिया, जो औसत गति से ज्यादा है।
2020 में जुलाई का महीना सबसे छोटा था
इंडिपेंडेंट की रिपोर्ट के मुताबिक, पृथ्वी ने हाल के दिनों में अपनी स्पीड काफी तेजी से बढ़ाई है। साल 2020 में पृथ्वी की तेज गति के चलते जुलाई का महीना सबसे छोटा देखा गया।
1960 में देखी गई थी स्थिति
वर्ष 2022 से पहले, ऐसी स्थिति साल 1960 के दशक में देखी गई थी। 19 जुलाई को अब तक का सबसे छोटा दिन मापा गया था, क्योंकि इस दिन पृथ्वी ने अपना एक चक्कर 1.47 मिलीसेकंड में ही पूरा कर लिया था, जबकि इस साल 26 जुलाई को धरती 1.50 मिलीसेकंड में पूरी घूम गई।
...लेकिन पृथ्वी अपना चक्कर धीमे लगा रही है
रिपोर्ट के मुताबिक, पृथ्वी की गति में निरंतर बढ़ोतरी देखी जा रही है, लेकिन पृथ्वी का चक्कर धीमा हो रहा है। धरती एक चक्कर पूरा करने में जितना मिलीसेकंड का समय लेती थी, अब हर सदी में उससे ज्यादा वक्त ले रही है।
विज्ञानियों की तीन थ्योरी
- यह बदलाव कोर की इनर और आउटर लेयर, महासागरों, टाइड या फिर जलवायु में लगातार हो रहे परिवर्तन के कारण हो रहे हैं।
- घटती हुई दिन की अवधि चांडलर वाबल से जुड़ी हो सकती है, जो पृथ्वी के घूमने की धुरी में एक छोटा सा डेविएशन (विचलन) है।
- अगर पृथ्वी इसी बढ़ती हुई गति से घूमती रही, तो ये नेगेटिव लीप सेंकेड की शुरुआत कर सकती है। इसका मतलब है कि पृथ्वी को उस दर को बनाए रखना होगा, जिसके मुताबिक पृथ्वी अटोमिक घड़ियों के समान सूर्य की परिक्रमा करती है।
क्या यह खतरनाक है?
इंडिपेंडेंट के मुताबिक अगर पृथ्वी इसी तरह गति बढ़ाती जाती है तो एक नए नेगेटिव लीप सेकंड की जरूरत पड़ सकती है, ताकि घडिय़ों की गति को सूरज के हिसाब से चलाए रखा जा सके। यह नेगेटिव लीप सेकंड स्मार्टफोन, कंप्यूटर और अन्य कम्यूनिकेशन सिस्टम की घडिय़ों में गड़बड़ी पैदा कर सकता है. एक 'मेटा ब्लाग के अनुसार लीप सेकंड विज्ञानियों और खगोलविदों के लिए तो फायदेमंद हो सकता है, लेकिन यह एक 'खतरनाक परंपरा है जिसके फायदे कम नुकसान ज्यादा हैं।
डाटा करप्ट कर सकता है
घड़ियां 23:59:59 के बाद 23:59:60 पर जाती हैं और फिर 00:00:00 से दोबारा शुरू हो जाती है, लेकिन समय यह बदलाव कंप्यूटर प्रोग्रामों को क्रैश कर सकता है और डाटा को करप्ट कर सकता है, वर्तमान मेंं सभी डाटा टाइम स्टांम के साथ सेव होता है।
तो ड्राप सेकंड जोड़ना होगा
अगर नेगेटिव लीप सेकंड लाया जाता है तो घडिय़ों का समय 23:59:58 के बाद सीधे 00:00:00 पर चला जाएगा, जिसका नकारात्मक या विनाशकारी प्रभाव हो सकता है। 'इंटरेस्टिंग इंजीनियरिंग' के मुताबिक इस समस्या को हल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समयसूचकों को 'ड्राप सेकंड' जोड़ना होगा।
यह भी जानें
27 बार लीप सेकंड से बदला जा चुका है यूनिवर्सल टाइम (यूटीसी) को। यानि दुनियाभर की घड़ियां जिस कोआर्डिनेटे यूनिवर्सल टाइम (यूटीसी) के आधार पर चलती हैं, उसे 27 बार लीप सेकंड से बदला जा चुका है।
1973 से शुरू हुई थी लीप सेकंड जोड़ने की परंपरा की शुरूआत हुई थी।
31 दिसंबर 2016 को बदला गया था आखिरी बार (27वीं बार)
स्रोत: अर्थ रोटेशन एंड रेफरेंस सिस्टम्स सर्विस (आईईआरएस) के अनुसार