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पेट्रोल-डीजल के विकल्प के तौर पर E Vehicles का उपयोग बन सकता है घातक

जैसे हर सिक्के के दो पहलू होते हैं वैसे ही ई-व्हीकल्स के भी दो पहलू हैं। एक पहलू इसके बेशुमार फायदों को बताता है तो दूसरा इसके संभावित नुकसानों को रेखांकित करता है।

By Amit SinghEdited By: Published: Tue, 23 Jul 2019 01:12 PM (IST)Updated: Tue, 23 Jul 2019 01:12 PM (IST)
पेट्रोल-डीजल के विकल्प के तौर पर E Vehicles का उपयोग बन सकता है घातक
पेट्रोल-डीजल के विकल्प के तौर पर E Vehicles का उपयोग बन सकता है घातक

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]।  पिछले कुछ समय से भारत में ई-व्हीकल्स को बढ़ावा देने की बात की जा रही है। इसके मद्देनजर सरकार ने बजट में ई-व्हीकल्स को बढ़ावा देने के लिए उस पर लगने वाली जीएसटी की दर घटा दी है। साथ ही, उसके ब्याज पर छूट देने की भी घोषणा की है। सरकार का ये प्रयास लोगों को पेट्रोल-डीजल की किल्लत और उससे होने वाले प्रदूषण से निजात दिलाने की है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि अगर समय रहते नहीं चेते तो भारतीय बाजारों में आने वाले ई-व्हीकल्स प्रदूषण के लिए गंभीर समस्या भी बन सकते हैं।

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इलेक्ट्रिक व्हीकल्स, मतलब ऐसे वाहन जिसमें पेट्रोल-डीजल या सीएनजी जैसे पारंपरिक ईंधनों की जरूरत न हो। ये वाहन बिजली की मदद से चलते हैं। इसके लिए इन वाहनों में दमदार बैट्री लगी होती है। इन कारों के नियमित प्रयोग के लिए इन्हें प्रतिदिन चार्ज करना पड़ता है। लॉन्ग ड्राइव पर जाते वक्त कार को एक ही दिन में कई बार चार्ज करने की जरूरत पड़ सकती है। इससे कार की बैट्री जल्दी खराब होने का खतरा बढ़ जाता है। यही इसका सबसे बड़ा खतरा है।

वैसे तो इन दिनों लगभग पूरी दुनिया ही ई-वेस्ट के खतरे से जूझ रही है। तेजी से बढ़ते मोबाइल, लैपटॉप व अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की वजह से ई-कचरे की मात्रा भी तेजी से बढ़ी है। बावजूद भारत समेत दुनिया के ज्यादातर देशों में इनके सही निस्तारण की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। प्रदूषण नियंत्रण जानकारों के अनुसार, ई-कचरा आम तौर पर निकलने वाले पारंपरिक कचरे से कहीं ज्यादा खतरनाक हो सकता है, क्योंकि उसमें कई तरह के रसायन होते हैं। ये रसायन जमीन पर गिरने पर प्रतिक्रिया करते हैं, जिससे जहरीली गैसें निकलती हैं। पानी के साथ ये रसायन अगर जमीन के अंदर पहुंच गया तो भूजल दूषित करता है।

बावजूद ई कचरे के निस्तारण को लेकर देश में अब तक कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। यही वजह है कि घरों या मोहल्ले के कूड़ेदानों में अक्सर ई-कचरा फेंका हुआ दिख जाता है। जानकारों के अनुसार, ई-वाहन ने अगर पेट्रोल-डीजल कारों की जगह ले ली तो बड़े पैमाने पर उसकी खराब बैट्रियों को भी नियमित बदलने की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती खतरनाक रसायनयुक्त इन खराब बैट्रियों के सुरक्षित निस्तारण की होगी।

अभी देश के ज्यादातर हिस्सों में लोगों द्वारा बैट्री कबाड़ी को बेच दी जाती है और वह बैट्री को बिना किसी सुरक्षा के तोड़कर उसका प्लास्टिक और अंदर भरी हुई धातु निकालते हैं। ऐसे में बैट्री में भरा खतरनाक रसायन जमीन पर गिरा दिया जाता है या फिर नालियों में बहा दिया जाता है। पर्यावरण विशेषज्ञ केएल जोशी के अनुसार, बैट्री से होने वाला प्रदूषण अन्य तरह के प्रदूषण से कहीं ज्यादा खतरनाक होता है। ऐसे में ई-व्हीकल्स को बढ़ावा देने के साथ ही ई-कचरा निस्तारण भी सुनिश्चित करना होगा।

बिजली बनाने से होने वाला प्रदूषण

जानकारों के अनुसार, ई-व्हीकल्स को चार्ज करने के लिए काफी मात्रा में बिजली की जरूरत होती है। इससे बिजली की खपत बढ़ना तय है। ज्यादा बिजली की जरूरत पड़ने पर हमें ज्यादा उत्पादन करना होगा। ऐसे में ई-व्हीकल्स उन्हीं देशों के लिए फायदेमंद है, जहां प्रदूषण मुक्त बिजली का उत्पादन होता है। भारत में अब भी बहुत से बिजली घरों में कोयले का इस्तेमाल होता है। उत्पादन बढ़ाने के लिए और ज्यादा कोयला जलाना पड़ेगा। ऐसे में इससे निकलने वाली ग्रीन हाउस गैसों से पहले के मुकाबले कई गुना ज्यादा प्रदूषण होगा।

ई-कचरा पैदा करने वाले पांच शीर्ष देशों में भारत

विश्व में सबसे ज्यादा ई-कचरा पैदा करने वाले शीर्ष पांच देशों में भारत का नाम भी शामिल है। भारत में प्रतिवर्ष करीब 20 लाख टन ई-कचरा पैदा होता है और मात्र 4,38,085 टन कचरे को ही रीसाइकिल किया जाता है। भारत के अलावा सबसे ज्यादा ई-कचरा उत्पन्न करने वाले शीर्ष पांच देशों में चीन, अमेरिका, जापान और जर्मनी का नाम शामिल है। वर्ष 2016 में पूरी दुनिया में 4.47 करोड़ टन ई-कचरा उत्पन्न हुआ था। अगले दो साल, मतलब 2021 तक दुनिया में पैदा होने वाले ई-कचरे की मात्रा 5.52 करोड़ टन पहुंचने की संभावना है।

ये है ई-वेस्ट का खतरा

एसोचैम और एनईसी द्वारा 2016 में जारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत में सबसे ज्यादा 19.8 फीसद ई-कचरा महाराष्ट्र से उत्पन्न होता है। इसके मुकाबले महाराष्ट्र केवल 47,810 ई-कचरे को ही सालान रीसाइकिल कर पाता है। यही स्थिति अन्य राज्यों की भी है। प्रत्येक राज्य अपने यहां से निकलने वाले ई-कचरे को 100 फीसद रीसाइकिल करने में अक्षम है। ऐसे में ई-वाहन से अगर ई-कचरे की मात्रा बढ़ती है तो ये देश के लिए बड़ी समस्या पैदा कर सकता है। असुरक्षित ई-कचरे को रिसाइकलिंग के दौरान उसके रसायनों के संपर्क में आने से तंत्रिका तंत्र, रक्त प्रणाली, गुर्दे और मस्तिष्क विकार, सांस संबंधी बीमारी, त्वचा की बीमारी, गले में सूजन, फेफड़ों का कैंसर, दिल, यकृत आदि को नुकसान पहुंचता है।

ई-कचरे का मुख्य हिस्सा

कम्प्यूटर मॉनिटर, मदरबोर्ड, कैथोड रे ट्यूब (सीआरटी), प्रिटेंड सर्किट, बोर्ड (पीसीबी), मोबाइल फोन, मोबाइल या लैपटॉप चार्जर, कॉम्पैक्ट डिस्क (सीडी), हेडफोन, एलसीडी, प्लाज्मा टीवी, एयर कंडीशनर, इन्वर्टर, यूपीएस, डिजिटल कैमरा, रेफ्रिजरेटर, बैट्री व सेल इत्यादि प्रमुख हैं।

सबसे ज्यादा ई-वेस्ट पैदा करने वाले 10 शहर

शहर           कचरा (टन/प्रतिवर्ष)

मुंबई            11017.1

दिल्ली            9730.3

बेंगलुरु          4648.4

चेन्नई              4132.2

कोलकाता       4025.3

अहमदाबाद    3287.5

हैदराबाद        2833.5

पुणे               2584.2

सूरत             1836.5

नागपुर           1768.9


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