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Dussehra 2022: रावण पर प्रभु श्रीराम की विजय धर्म की अधर्म पर जीत के रूप में स्थापित

Dussehra 2022 “सत्यमेव जयते” के रूप में मुखरित होने वाला मंत्र ही हमारी प्रेरणा है। अपनी संस्कृति का गौरव एवं स्वाभिमान लेकर हम भारत की शक्ति का जागरण करते हुए विश्वकल्याण में रत हों यही विजयदशमी का संदेश है।

By Jagran NewsEdited By: Sanjay PokhriyalPublished: Wed, 05 Oct 2022 01:04 PM (IST)Updated: Wed, 05 Oct 2022 01:04 PM (IST)
Dussehra 2022: रावण पर प्रभु श्रीराम की विजय धर्म की अधर्म पर जीत के रूप में स्थापित
Dussehra 2022: भारत की शक्ति का जागरण करते हुए विश्वकल्याण में रत हों

शिवप्रकाश। भारतीय परंपरा में विजयदशमी भगवान श्रीराम की लंका अधिपति रावण के ऊपर विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाने वाला उत्सव है। देश के लाखों स्थानों पर इस दिन मेघनाथ एवं कुंभकर्ण सहित राक्षस रूपी रावण के पुतलों का दहन किया जाता है। इसके पूर्व शारदीय नवरात्र के प्रारंभ से रामलीला के मंचन की परंपरा भी है। प्रभु श्रीराम की रावण पर यह विजय धर्म की अधर्म एवं सत्य की असत्य पर विजय के रूप में स्थापित है। उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम मनाया जाने वाला यह उत्सव इसी संदेश को स्थापित करता है। उत्तर से दक्षिण को जोड़ने वाली श्रीराम की यात्रा देश में एकात्मता का निर्माण करती है।

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विजयदशमी के पर्व पर शस्त्रों का पूजन एवं नए कार्यों के शुभारंभ की परंपरा भी है। भारतीय संस्कृति में वीरत्व एवं पराक्रम भाव को समाज में जागृत करने के लिए शस्त्र पूजन का विशेष महत्व है। शस्त्र के इसी महत्व को प्रकट करने के लिए सभी देवी-देवता अपने हाथ में शस्त्र धारण किए हुए हैं। चाणक्य ने कहा कि “शस्त्रेंण रक्षिते राष्ट्रे, शास्त्र चिंता प्रवर्तते।” यानी शस्त्रों से सुसज्जित राष्ट्र में ही शास्त्रों की चिंता संभव है।

भारत में सभी देवी-देवता शस्त्रधारी

विश्व के श्रेष्ठतम ज्ञान की उदात्त धरोहर होने के बाद भी आवश्यक शस्त्र शक्ति न होने के कारण कई बार हमारी पराजय हुई, इसका इतिहास गवाह है। 1964 में पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अपने पड़ोसी देशों के शत्रुतापूर्ण व्यवहार को देखकर कहा था कि “भारत में सभी देवी-देवता शस्त्रधारी हैं, धर्म संस्थापक भगवान श्रीकृष्ण सुदर्शन चक्र धारी हैं तब भारत माता भी परमाणु बम धारी होनी चाहिए।” वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत आधुनिक सैन्य शक्ति से सुसज्जित हो रहा है। सैन्य क्षेत्र की इस उपलब्धि के कारण दुनिया हमें जिम्मेदार एवं सम्मानित राष्ट्र के रूप में देख रही है।

देश के समस्त नागरिकों को अपनी सुरक्षा के प्रति गंभीर होना भी आवश्यक है। इसके लिए सभी युवक एवं युवतियों को आत्मरक्षा के कुछ उपाय सीखने चाहिए। इससे उनमें भी आत्मविश्वास का संचार होगा। विजयदशमी से पूर्व नौ दिनों तक जगत-जननी आदिशक्ति मां के पूजन की परंपरा है। हमारे शास्त्रों में नारी शक्ति के महत्व को प्रकट करते हुए कहा है कि “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता:”।

कुरीतियों से मुक्त समाज का वातावरण

आज यह संकल्प लेना होगा कि समाज में स्त्री को समान स्थान मिले। प्रगतिशीलता एवं आधुनिकता की होड़ में संस्कार का पक्ष पीछे न छूट जाए, इसका प्रयास करना होगा। शिक्षा, आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में समान भागीदारी, जागरूकता के प्रयास, तकनीकी ज्ञान, नौकरियों में समान अवसर सभी में समानता आवश्यक है। परिवार के निर्णयों में समान सहभागिता प्रकट होनी चाहिए। कुरीतियों से मुक्त समाज का वातावरण ऐसा हो कि स्त्री कहीं भी, किसी भी समय अपने को सुरक्षित अनुभव करे। कुदृष्टि रखने वालों पर कठोर कार्रवाई आवश्यक है। ईरान सहित अनेक देशों में महिला स्वतंत्रता के लिए चलने वाले आंदोलन की सार्थकता सिद्ध होनी चाहिए। नारी शक्ति की प्रगतिशीलता की बात करने वाले संगठनों को इस विषय पर मौन होने के बजाय सक्रियता दिखानी चाहिए। हमारी मान्यता है कि “भक्ति में ही शक्ति है।’

नए अन्न के आगमन से पूर्व व्रत रखकर शरीर को शुद्ध करना औषधीय विज्ञान है। आंतरिक शुचिता शरीर के लिए आवश्यक है। आंतरिक स्वच्छता बढ़ाते हुए शरीर की प्रतिरोधक क्षमता का विकास हमें अनेक रोगों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है, जिसके कारण आत्म शक्ति का विकास होता है। यह शक्ति ही हमें आंतरिक एवं बाह्य शत्रुओं से लड़ने की ताकत प्रदान करती है। लोकतंत्र में जन शक्ति ही वास्तविक शक्ति है। श्रीराम ने वनवासी समाज को साथ लेकर रावण पर विजय प्राप्त की थी। हमें भी पिछड़े समाज की सोई हुई शक्ति को जागृत करना होगा।

समाज को तोड़ने वाले विध्वंसक तत्वों को परास्त करना होगा। एकता एवं एकजुटता का भाव जागृत करते हुए सर्वत्र भारत माता के जय के उद्घोष को जगाना होगा। समरस, जागरूक सक्रिय समाज शक्ति ही देश की आधार शक्ति बनेगी। धर्म की अधर्म पर, सत्य की असत्य पर, मानवता की दानवता पर विजय का यह सिद्धांत ही हमारी संस्कृति का मूल तत्व है। “सत्यमेव जयते” के रूप में मुखरित होने वाला मंत्र ही हमारी प्रेरणा है। अपनी संस्कृति का गौरव एवं स्वाभिमान लेकर हम भारत की शक्ति का जागरण करते हुए विश्वकल्याण में रत हों, यही विजयदशमी का संदेश है।

[राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री, भाजपा]


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