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लॉकडाउन के दौरान अपनी पहचान बनाने वाली इन हस्तियों ने बंद खिड़कियों में भी ढूंढ़ ली रोशनी

लॉकडाउन के दौरान जहां एक ओर लोग अपने घरों में बंद होकर परेशान थे वहीं कुछ सेलिब्रिटी ने इस मौके का भी फायदा उठाया और अपनी अलग पहचान बनाई।

By Vinay TiwariEdited By: Published: Sat, 30 May 2020 04:21 PM (IST)Updated: Sat, 30 May 2020 04:21 PM (IST)
लॉकडाउन के दौरान अपनी पहचान बनाने वाली इन हस्तियों ने बंद खिड़कियों में भी ढूंढ़ ली रोशनी
लॉकडाउन के दौरान अपनी पहचान बनाने वाली इन हस्तियों ने बंद खिड़कियों में भी ढूंढ़ ली रोशनी

नई दिल्ली [यशा माथुर]। महामारी से बचने के लिए जब घरों के खिड़की-दरवाजे अंदर से बंद हो गए तब प्रसिद्ध नृत्यांगना शोवना नारायण ने आने वाली पीढ़ी के लिए कथक नृत्य के कई रहस्यों को पन्नों में कैद किया तो दीपा मलिक ने पैरास्पोट्र्स की जानकारियों को आगे बढ़ाने के नए तौर-तरीके ढूंढ़े। इसी प्रकार सेलेब्रिटी डॉली अहलूवालिया को लॉकडाउन ने और समृद्ध बनाया। अपनी पहचान बनाने वाली इन हस्तियों ने सकारात्मकता को आगे रख बंद खिड़कियों में भी ढूंढ़ ली रोशनी...

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जब आशा के दीप जलते हैं तो रास्ते दिखाई देने लगते हैं और बाधाएं दूर होती जाती हैं, लेकिन ऐसा उन्हीं के साथ होता है जिनमें खुद की जीत का विश्वास होता है। आम महिलाओं ने लॉकडाउन दौरान तरह-तरह के खाने बनाए। घर की साफ-सफाई की, टिकटॉक बनाए, मीम्स बनाए, चुटकुले रचे। वाट्सएप पर मैसेज फॉरवर्ड करने में भी वे अव्वल ही रहीं। कुछ ने रचनात्मक करने की गरज से फेसबुक व इंस्टाग्राम लाइव किए। किसी ने अपने शौक को आगे बढ़ाया तो किसी ने कैनवस पर आशा के रंग बिखेरे। कुछ शख्सियतों ने दूसरों के लिए भी काम किया और उम्मीद का दिया जलाए रखा।

इतना भय क्यों है

आपकी लॉकडाउन यात्रा कैसी रही? किस पॉजिटिविटी के साथ आपने इसे पूरा किया और इस बंद माहौल से क्या गूढ़ संदेश निकाला? एक साथ किए गए इन प्रश्नों का जवाब देने में जरा भी देर नहीं की प्रसिद्ध नृत्यांगना शोवना नारायण ने। वह बोलीं, मुझे कोई भी मानसिक या शारीरिक समस्या नहीं हुई। मेरे स्वभाव में ही सकारात्मकता है। मैं हर मुश्किल को चुनौती की तरह लेती हूं। मैं दो किताबों पर काम कर रही थी।

पांच साल से हम रिसर्च कर रहे थे। इस दौरान हम इन्हें पूरा कर पाए। अपनी बात कहने के नए माध्यम सीखे। हर दिन ऑनलाइन क्लास ले रही हूं और छात्रों को नई चीजें सिखा रही हूं। नृत्य से जुड़ी बातें लोगों तक पहुंचाने के लिए हम छोटे-छोटे वीडियो बनाकर डाल रहे हैं। अपने कुक को कई तरह की डिशेज बनाना सिखाया। इस दौरान बहुत से कलाकारों की समस्याओं के बारे में सरकारों को लिखा।

कुछ कलाकारों की मैं आर्थिक रूप से मदद भी कर रही हूं। कारण, उनकी आमदनी बंद है। लोगों में भय का वातावरण है। सतर्कता अपनी जगह है, लेकिन इतना भय क्यों? भयभीत होकर आप खुद को कमजोर कर रहे हैं। अगर ऐसा होगा तो आप मानसिक और भावनात्मक रूप से कमजोर हो जाएंगे। 

जागरूकता के कदम

जब मन में किसी लक्ष्य को हासिल करने का विश्वास होता है तो नई दिशाएं मिलने लगती हैं। पैरालंपियन दीपा मलिक को लगा कि भारत में पैरास्पोट्र्स के बारे में हिंदी में जानकारियां कम हैं तो उन्होंने कई वेबिनार करवाए। वह कहती हैं, हमने अलग-अलग सोलह सेट बनाए और जूम मीटिंग्स के द्वारा पैरालंपिक खिलाडिय़ों को बताया कि इन खेलों के लिए क्या जरूरतें होती हैं? कैसे इनका वर्गीकरण और रजिस्ट्रेशन होता है। इस पर बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली।

अपने फाउंडेशन व्हीलिंग हैप्पीनेस के जरिए हैप्पी जनता किचन चलाई और कई शहरों में रोज दो सौ दिव्यांग मजदूरों को खाना दिया साथ ही उन गरीब परिवारों को राशन भी दिया जिनके परिवार का कोई सदस्य दिव्यांग है। मैंने अपने वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाले कि जब व्हील चेयर पर बैठी महिला खाना बना सकती है, कपड़े धो सकती है, वेबिनार कर रही है, घर बैठे लोगों को खाना पहुंचा रही है तो आप भी कर सकते हैं। मैंने कुछ किताबें पढ़ीं और अपनी बेटियों को समय भी दे पाई। वे हमेशा मेरा ख्याल रखती हैं। इस दौरान मैंने उनके मन के काम किए।

सादगी है कितनी सुंदर

सादगी का जीवन, खुशी का स्रोत मिलना और भौतिक वस्तुओं से मोहभंग होना ही अपनी उपलब्धि मानती हैं सेलेब्रिटी डॉली अहलूवालिया तिवारी। वह कहती हैं, मैं गर्व से कहती हूं कि मैंने सात जोड़ी कपड़ों में दो महीने अच्छी तरह से बिताए हैं। इस दौरान सादगी को महसूस किया है। जब भी अपनी अलमारी खोलती हूं तो खुद पर गुस्सा आता है और ग्लानि होती है कि मैंने बेइंतहा चीजें क्यों खरीदीं? इनकी मुझे जरूरत ही नहीं थी। मेरा दिल कर रहा है कि मैं किसी गांव चली जाऊं और वहां साधारण जिंदगी बिताऊं। अब मैं भौतिकता से भागना चाहती हूं। खुशी आपके भीतर है। इसे खोजकर ही हम खुशियां बांट सकते हैं। 

सर्वप्रथम प्रकृति पूजा

हमने कुछ तो गलतियां की हैं। तभी यह आपदा आई है। मानवजाति में चांद और मंगल तक पहुंचने की क्षमता है तो वह यह भी सोचें कि हम किस-किस चीज का ध्यान नहीं रख रहे हैं। इसमें सभी को अपना उत्तरदायित्व निभाना है। हम जब घर से बाहर आते हैं तो मानवता भूल जाते हैं। हमें इसे अपने व्यवहार में लाना है। बहुत कम लोग हैं, जो पर्यावरण और जीव-जंतुओं की बात करते हैं और उन्हें अपने जीवन में निभाते भी हैं।

बाकी सब लिप सर्विस ही करते हैं। कहना कुछ और करना कुछ। भारतीय दर्शन में प्रकृति और पशुओं के लिए बहुत आदर है। हमें सीख दी गई है, लेकिन कोई इन्हें कितना मानता है, यह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है। पद्मश्री डॉ. शोवना नारायण, कथक गुरु, प्रसिद्ध नृत्यांगना 

जिंदगी में कई लॉकडाउन देखे

मेरे लिए लॉकडाउन कॉमन है। मैं अक्सर परिवार से महीनों दूर रहती हूं। रियो ओलंपिक की सवा साल की तैयारी लॉकडाउन ही था। तैयारी के समय मुझसे फोन भी ले लिया गया था। खाना भी सीमित और उबला हुआ मिलता था। यह लॉकडाउन मैंने खुद लगाया तो स्वर्ण पदक पाया। जब पैरालाइज हुई तब चौदह महीने बिस्तर पर पड़ी रही। अगर उस समय मैं अपनी सकारात्मकता छोड़ देती तो यहां तक नहीं पहुच पाती। मैंने भरोसा रखा कि यह समय गुजर जाएगा।

उन चौदह महीनों में मैंने सोचा कि इस जीवन को अब कैसे जिऊंगी? बदलाव को जितनी जल्दी अपना लें उतना ही अच्छा। नहीं तो उदासी और नकरात्मकता में गुम हो सकते हैं। तैरने के लिए हाथ-पैर मारने पड़ते हैं, नहीं तो डूब सकते हैं। इस लॉकडाउन में भी मैंने हल ढूंढ़े। पहले स्काईप व जूम नहीं जानती थी। अब सीख लिया। किसी भी परिस्थति में अगर मन:स्थिति सही है तो कठिनाई नहीं होती। मैंने अपनी जिंदगी से माइंड ओवर बॉडी का संदेश लिया है। खिचड़ी रसोई में बनाएं, दिमाग में नहीं। दिमाग में पकाएंगे तो रोगी हो जाएंगे। समय कभी रुका नहीं है। शारीरिक रूप से दूरी बनाएं, लेकिन मानसिक और आत्मिक रूप से दूर न हों। आपदा एक दिन जाएगी ही।  दीपा मलिक, पैरालंपियन, स्वर्ण पदक व खल रत्न पुरस्कार विजेता 

कौन सी लेयरिंग है जरूरी कॉस्ट्यूम की भाषा में बोलूं तो आप लेयरिंग उतारते हैं, ओढ़ते हैं और फिर उतारते हैं। वही मेरे साथ हुआ है। इस लॉकडाउन में मैने नजदीक से जाना है कि अपनी जिंदगी में मैं कौन सी लेयर पहनना चाहूंगी और कौन सी उतारना चाहूंगी। बेशक यह मुश्किल है, लेकिन इससेे गुजरना बड़ी बात है। मुझे यह भी अहसास हुआ कि हर चीज में मेडीटेशन है।  

बैठकर ध्यान लगाना अलग बात है, परंतु झाड़ू-पोंछा करना और खाना बनाना भी एक मेडीटेशन है, क्योंकि इसमें भी आपकी एक सोच है। अगर आप पौधों में गुम हैं और अपनी बालकनी में बैठकर सुकून से सुबह या शाम की चाय पी रहे हैं तो यह भी अपने आपमें एक मेडीटेशन है। जिंदगी एक मेडीटेशन ही तो है। अब जब मैं फिल्मों में काम शुरू करूंगी तब मेरा नजरिया अलग होगा। हर किरदार को देखने का तरीका अलग होगा। लेयरिंग की बात मैं अपने लिए ही नहीं पूरे विश्व के लिए महसूस कर रही हूं।

मुझे एक नई डॉली की खोज महसूस हुई है। शायद मैंने खुद को इतनी भागदौड़ में डाल दिया था कि मेरे भीतर की चीजों पर एक झूठा आवरण आ गया था। इसका मुझे पता भी नहीं था, लेकिन लॉकडाउन में उन चीजों के नजदीक आई हूं और उनकी गहराई तक गई हूं। मैं काफी चीजों को निगेटिव तरीके से देखती थी, लेकिन अब मुझमें एक सकारात्मक बदलाव आया है।

डॉली अहलूवालिया तिवारी, कॉस्ट्यूम डिजाइनर व अभिनेत्री


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