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Durga Puja 2019: कोलकाता की मूर्तिकार 'चाइना पाल' चीन में सशक्त महिला सम्मान से हो चुकी हैं सम्मानित

Durga Puja 53 साल की मूर्तिकार चाइना पाल कोलकाता में वर्षों से दुर्गा प्रतिमाएं गढ़ने का काम करती आ रही हैं। आगामी दुर्गोत्सव के लिए भी उन्होंने अपनी तैयारी लगभग पूरी कर ली है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 28 Sep 2019 10:37 AM (IST)Updated: Sat, 28 Sep 2019 11:08 AM (IST)
Durga Puja 2019: कोलकाता की मूर्तिकार 'चाइना पाल' चीन में सशक्त महिला सम्मान से हो चुकी हैं सम्मानित
Durga Puja 2019: कोलकाता की मूर्तिकार 'चाइना पाल' चीन में सशक्त महिला सम्मान से हो चुकी हैं सम्मानित

प्रकाश पांडेय, कोलकाता। Durga Puja 2019 कोलकाता का दुर्गोत्सव दुनिया में प्रसिद्ध है, लेकिन दुर्गोत्सव अब केवल भारत में ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में उतनी ही श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाने लगा है। भारतवंशियों के अलावा विदेशी भी इस पर्व को मना रहे हैं। 53 साल की मूर्तिकार चाइना पाल कोलकाता में वर्षों से दुर्गा प्रतिमाएं गढ़ने का काम करती आ रही हैं। आगामी दुर्गोत्सव के लिए भी उन्होंने अपनी तैयारी लगभग पूरी कर ली है। उनके पास अमेरिका, चीन, रोमानिया समेत अनेक देशों से मूर्तियों के ऑर्डर हैं, जिन्हें वह तैयार कर रही हैं।

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चीन द्वारा सम्मानित

चाइना का केवल नाम ही चाइना नहीं है, बल्कि पड़ोसी देश चीन द्वारा उन्हें नारी सशक्तीकरण के लिए सम्मानित भी किया जा चुका है। कोलकाता की कला, संस्कृति और विरासत को जानने के लिए यहां आने वालों का पहला पड़ाव कुम्हारटोली होता है। यहां की गलियों में औपनिवेशिक काल की पीड़ा से लेकर बंगाल की परंपरा का सदृश्य चित्रण देखने को मिलता है। कभी कुम्हारटोली की संकरी गलियों में महिलाएं रूढ़िवादी बंधनों में कैद हुआ करती थीं, लेकिन आज खुले आसमान के नीचे अपनी अभिनव कला से दुनिया में नजीर बन गई हैं। मूर्तिकार चाइना पाल इन्हीं में से एक हैं।

बनी अंतरराष्ट्रीय पहचान

उन्होंने बताया कि समय की करवट ने यहां की महिलाओं को जागृत करने का काम किया और आज वे पुरुषों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं और खुद को साबित कर रही हैं। 53 साल की चाइना ने बताया, ‘पिछले साल मुझे दक्षिण चीन के युन्नान प्रांत के कुनमिंग में आयोजित दक्षिण-पूर्व एशियाई कला सप्ताह में हिस्सा लेने आमंत्रित किया गया था, जहां मुझे सशक्त महिला सम्मान से सम्मानित किया गया। इस सम्मान से सही मायने में मेरी अंतरराष्ट्रीय पहचान बनी और आज आलम यह है कि दुर्गोत्सव के दौरान विदेश से मिले मूर्तियों के ऑर्डर ने हमें तमाम समस्याओं से उबारने का काम किया है। इस बार मैं अमेरिका, चीन, रोमानिया समेत अन्य कई देशों के लिए मूर्तियां बना रही हूं।’

कई देशों से मिल चुका है न्योता

उन्होंने कहा, ‘चीन छोड़कर मैं कहीं नहीं गई, लेकिन कई देशों से मुझे न्योता जरूर मिला है। 1994 में पिता के निधन के बाद मैंने पारिवारिक विरासत को बचाने के लिए मूर्ति निर्माण शुरू किया, क्योंकि भाइयों का इस पेशे के प्रति कोई रुझान नहीं था और सभी ने इससे किनारा कर लिया। ऐसे में मैंने मूर्ति निर्माण शुरू किया। बचपन में पिता के साथ बैठकर मिट्टी से खेलने के क्रम में मैंने बहुत कुछ सीखा था और उसी सीख ने आज मुझे इस मुकाम पर पहुंचाया है।’स्थानीय मूर्तिकारों के बीच ‘दशभुजा’ के नाम से मशहूर चाइना के लिए आज 10 से अधिक कारीगर काम करते हैं और इन कलाकारों की सुविधा व सहूलियत का चाइना हमेशा ख्याल रखती हैं।

आलोचनाओं का करना पड़ा सामना

मूर्तिकार चाइना को कई बार आलोचना का भी सामना करना पड़ा। उन्होंने एक बार किन्नरों के एक समूह के लिए अद्र्धनारीश्वर के रूप में मां दुर्गा की प्रतिमा बनाई थी, जिसे लेकर परंपरा तोड़ने का आरोप लगाते हुए उनका पुरजोर विरोध किया गया था। चाइना ने तब साफ कहा था कि हर किसी को दुर्गा की आराधना का समान अधिकार है। ऐसे में किन्नरों के साथ भेदभावपूर्ण रवैया गैर-जायज है और लोगों को अपनी सोच बदलनी होगी।


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