बेंगलुरु की बाढ़ के सबक, खराब शहरी नियोजन से बीते दिनों बारिश के बाद हुआ जलजमाव
बीते दिनों भारी बारिश से बेंगलुरु में कई दिनों तक अनेक स्थानों पर जलभराव रहा। ऐसे में शहरी नियोजन व जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं की दिशा में गंभीरता से विचार करना होगा। खराब शहरी नियोजन से बेंगलुरु में बीते दिनों बारिश के बाद हुआ जलजमाव। फाइल
संजीव गुप्ता। बेंगलुरु में हाल ही में हुई भारी बारिश के बाद जलभराव के समाचारों ने समूचे देश का ध्यान आकर्षित किया। तमाम लोगों को अपना घर छोड़ सुरक्षित स्थानों पर जाना पड़ा। इससे व्यापक आर्थिक नुकसान की भी आशंका जताई जा रही है। दरअसल दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव सामने आ रहे हैं। चाहे बांग्लादेश या पाकिस्तान में आई बाढ़ हो, राजस्थान के कुछ हिस्सों और बेंगलुरु में हुई अत्यधिक बारिश जैसी घटनाओं ने दिखाया है कि कैसे दक्षिण एशिया में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव सामने आ रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र के इंटरगवर्नमेंटल पैनल आन क्लाइमेट चेंज (आइपीसीसी) ने पिछले साल चेतावनी दी थी कि अगर कार्बन उत्सर्जन अनियंत्रित रहा तो आने वाले वर्षों में पूरे दक्षिण एशिया में चरम मौसमी घटनाओं में वृद्धि होगी। बढ़ते शहरीकरण के साथ हमारे शहर अधिक जोखिम में हैं, क्योंकि मानव जीवन के नुकसान, संपत्ति की क्षति और आर्थिक नुकसान की मात्रा ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक है। मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु, दिल्ली और चेन्नई जैसे शहर लाखों लोगों के घर हैं और जलवायु जोखिम इतना अधिक है।
बढ़ता जोखिम
गर्म वातावरण में शहरी बाढ़ हमारे शहरों और कस्बों के लिए एक बड़ा खतरा है। जलवायु परिवर्तन के साथ क्षेत्रीय पारिस्थितिक चुनौतियों ने बाढ़ के जोखिम को बढ़ा दिया है। शहरी बाढ़, जो मुख्य रूप से नगरपालिका और पर्यावरण शासन की चिंता थी, अब ‘आपदा’ की शक्ल बन चुकी है। शहरी बाढ़ को दो कारकों के संयोजन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है- शहरी नियोजन का कुप्रबंधन और जलवायु परिवर्तन का दुष्प्रभाव तीव्र होने के साथ ही उसकी आवृत्ति में भी वृद्धि हो रही है। ऐसे में शहरी बाढ़ के परिणामस्वरूप आपदाएं हो सकती हैं जो शहरी विकास को वर्षों या दशकों तक पीछे कर देती हैं।
बेंगलुरु की हालिया बाढ़ इसका ताजा उदाहरण है। इस कारण यहां दो सौ करोड़ रुपये से अधिक के नुकसान की आशंका जताई जा रही है। शहर में पांच सितंबर को 24 घंटे की अवधि में 132 मिमी बारिश दर्ज की गई, जो इस क्षेत्र की मौसमी वर्षा का 10 प्रतिशत है। 26 सितंबर, 2014 के बाद से यह सबसे गर्म दिन था, जबकि जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून सिस्टम में बदलाव होने से शहर में मूसलाधार बारिश हुई। खराब शहरी नियोजन के कारण स्थिति और खराब हो गई, जिसने पानी को बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिल सका। अंततः पूरा शहर कई दिनों तक जलमग्न रहा। चरम मौसम की घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता के साथ भारत के कई शहरों में बार-बार ऐसा होने की आशंका जताई जा रही है। ऐसे में इसका मानव जीवन, आजीविका और जीडीपी पर भी दुष्प्रभाव पड़ने का पूरा अंदेशा है।
झीलों का शहर
बेंगलुरु को झीलों के शहर के रूप में जाना जाता था, जो बाढ़ और सूखे से बचावकर्ता के रूप में काम करता था। तीव्र शहरीकरण की प्रक्रिया ने पानी के बहाव का मार्ग बाधित किया है। बेंगलुरु में शहर नियोजन की प्रक्रिया में पहले से यहां बने झीलों का सही तरीके से समायोजन नहीं किया गया, लिहाजा बारिश होने पर इसके घातक दुष्परिणाम सामने आने लगे। शहरीकरण के मद्देनजर, जल निकायों के बीच का नेटवर्क पूरी तरह से टूट गया है, जिससे वे स्वतंत्र संस्थाएं बन चुकी हैं। नालियों के जाम होने से शहर के आवासीय क्षेत्र जलमग्न हो गए।
यह दर्शाता है कि कैसे अनियोजित, तेजी से शहरी विकास ने एक शहर में और उसके आसपास के प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र को उसकी सीमा तक फैला दिया है और प्राकृतिक बाढ़ के खतरों से आपदा को अपरिहार्य और अधिक विनाशकारी बना दिया है। इंडियन स्कूल आफ बिजनेस में अनुसंधान निदेशक डा. अंजल प्रकाश कहते हैं, ‘पूरे शहर में शहरीकरण अनियंत्रित हो रहा है और बेंगलुरु इस सब के प्रति अनुकूलन के लिए कुछ नहीं कर रहा। राजनीतिक व्यवस्था और इच्छाशक्ति जलवायु अनुकूल नीति के अनुरूप नहीं है।’
क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला कहती हैं, ‘लोग जलवायु परिवर्तन के निहितार्थों को समझ रहे हैं और जान रहे हैं कि ये घटनाएं उन्हें कैसे प्रभावित कर रही हैं। जलवायु परिवर्तन न केवल इन घटनाओं को खराब करेगा, बल्कि जटिल आपदाएं विकास को दुष्प्रभािवत कर सकती हैं। निर्णय लेने वाले यिद शहरी विकास के लिए समावेशी योजना लाने में विफल रहते हैं, तो यह न केवल जीडीपी से जुड़े विकास के लिए प्रतिकूल होगा, बल्कि जलवायु अनुकूल शहरों को विकसित करने के लिए निवेश के अवसरों से भी वंचित हो जाएगा, जिनके पास बढ़ती आबादी के सापेक्ष अनुकूल क्षमता है।’