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राफेल के हाथ सबसे बड़ा सैन्य सौदा

लंबे इंतजार के बाद आखिरकार भारत के सबसे बड़े रक्षा सौदे पर मुहर लग गई है। भारत करीब 52 हजार करोड़ रुपये में फ्रांसीसी विमानन कंपनी डसाल्ट राफेल से 126 लड़ाकू विमान खरीदेगा। रडार की पकड़ में न आने वाले ये विमान वायुसेना में उम्रदराज मिग-21 की जगह लेंगे।

By Edited By: Published: Wed, 01 Feb 2012 08:01 AM (IST)Updated: Wed, 01 Feb 2012 04:27 PM (IST)
राफेल के हाथ सबसे बड़ा सैन्य सौदा

नई दिल्ली। लंबे इंतजार के बाद आखिरकार भारत के सबसे बड़े रक्षा सौदे पर मुहर लग गई है। भारत करीब 52 हजार करोड़ रुपये में फ्रांसीसी विमानन कंपनी डसाल्ट राफेल से 126 लड़ाकू विमान खरीदेगा। रडार की पकड़ में न आने वाले ये विमान वायुसेना में उम्रदराज मिग-21 की जगह लेंगे। करार के मुताबिक डसाल्ट को 18 विमानों की पहली खेप की आपूर्ति तीन साल में करनी होगी।

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डसाल्ट ने इस सौदे की होड़ में एक अन्य यूरोपीय कंपनी ईएडीएस कासेडियन को पीछे छोड़ा। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार फ्रांसीसी कंपनी की निविदा यूरोफाइटर विमान बनाने वाली यूरोपीय प्रतिद्वंद्वी ईएडीएस से कम थी। रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने मंगलवार को कहा, 'भारत में मौजूद फ्रांसीसी कंपनी के अधिकारियों को इस प्रगति से अवगत करा दिया गया है। विमानों की अंतिम कीमत अगले 10-15 दिन में तय कर ली जाएंगी। करार पर अगले वित्ताीय वर्ष में दस्तखत किए जाएंगे।' सौदे पर मुहर लगने की खबर आते ही पेरिस स्टॉक एक्सचेंज में डसाल्ट राफेल के शेयर 22 फीसदी तक उछल गए। फ्रांस के राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि इस करार से भारत को महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण होगा। दो इंजन वाले इस विमान का निर्माण 2000 में हुआ था। फ्रांसीसी वायुसेना और नौसेना इन विमानों को इस्तेमाल कर रही है।

निविदा प्रस्ताव के अनुसार करार हासिल करने वाली कंपनी को 126 विमानों में से 18 की आपूर्ति 36 महीने में करनी होगी। बाकी विमानों का निर्माण हिंदुस्तान एयरोनॉटिकल लिमिटेड [एचएएल] की बेंगलूर इकाई में होगा। शुरू में इस सौदे की होड़ में अमेरिका की बोइंग व लॉकहीड मार्टिन, रूस की यूनाइडेट एयरक्राफ्ट और स्वीडन की साब भी शामिल थीं। लेकिन, पिछले साल अप्रैल में रक्षा मंत्रालय ने अमेरिका, रूस और स्वीडन की कंपनियों को होड़ से बाहर कर दिया था। अमेरिकी कंपनी के होड़ से बाहर होने को भारत में अमेरिका के तत्कालीन राजदूत टिमोथी रोएमर के इस्तीफे से भी जोड़कर देखा गया था।

अहम पड़ाव

2001 - वायुसेना ने 126 लड़ाकू विमान खरीदने की इच्छा जताई

2005 - रक्षा मंत्रालय ने टेंडर जारी करने के तुरंत बाद वापस लिया

अगस्त, 2007 - भारत ने दोबारा टेंडर जारी किया

फरवरी, 2008 - दुनिया की छह बड़ी विमानन कंपनियों ने निविदा भरी

अप्रैल, 2010 - भारतीय नौसेना ने इन निविदाओं को 643 पैमानों पर परखा

अप्रैल, 2011 - डसाल्ट और ईएडीएस का अंतिम होड़ के लिए चुनाव

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