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नशे में 'उड़ता पंजाब', अमरिंदर की कोशिशों पर बट्टा लगा रहे नेता और सरकारी अफसर

नशे के चंगुल में फंसा पंजाब का युवा भले चार कदम चल न पाए, लेकिन नशे में उसकी बेफिक्री की उड़ान चौंकाने वाली है।

By Digpal SinghEdited By: Published: Wed, 11 Jul 2018 04:29 PM (IST)Updated: Wed, 11 Jul 2018 04:55 PM (IST)
नशे में 'उड़ता पंजाब', अमरिंदर की कोशिशों पर बट्टा लगा रहे नेता और सरकारी अफसर
नशे में 'उड़ता पंजाब', अमरिंदर की कोशिशों पर बट्टा लगा रहे नेता और सरकारी अफसर

जालंधर, [जागरण स्पेशल]। पंजाब में नशे का कारोबार लंबे वक्त से फल-फूल रहा है। राज्य के युवा नशे के चंगुल में फंसकर न सिर्फ अपनी जवानी बर्बाद कर रहे हैं, बल्कि देश का भी नुकसान कर रहे हैं। अगर वे नशे के आदी न बनें तो उनकी जवानी देश के काम आ सकती है। लेकिन दुखद बात यह है कि नशा पंजाब के युवाओं की रगों में दौड़ रहा है। शायद यही कारण है कि बॉलीवुड को भी इसमें मसाला दिखा और 'उड़ता पंजाब' जैसे सफल फिल्म बन गई। नशे के चंगुल में फंसा पंजाब का युवा भले चार कदम चल न पाए, लेकिन नशे में उसकी बेफिक्री की उड़ान चौंकाने वाली है।

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नशे से हो रही युवाओं की मौतों के मामले पर चौतरफा घिरने के बाद राज्य सरकार एक के बाद एक कड़े कदम उठा रही है। सबसे पहले सरकार ने नशा तस्करों को पहली ही बार में दोषी पाए जाने पर फांसी की सजा का प्रस्ताव कैबिनेट में पास कर केंद्र सरकार को भेजा। इसके बाद नशे से होने वाली हर मौत पर गैर इरादतन हत्या की धारा जोड़ने का फैसला लिया गया। मौत के फैसले पर अभी बहस चल ही रही थी कि सरकार ने एक और बड़ा फैसला लिया कि प्रदेश के सभी कर्मचरियों का डोप टेस्ट करवाया जाएगा।

नशेड़ियों के लिए अमरिंदर ने बिछाया जाल
नशे को खत्म करने के लिए पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने सभी सांसदों, विधायकों और नेताओं के डोप टेस्ट कराने की अपील की थी। लेकिन यह अपील करते हुए शायद ही उन्हें इल्म हो कि इसमें उनके अपने ही विधायक फंस जाएंगे। जालंधर के कांग्रेसी विधायक का ही डोप टेस्ट पॉजीटिव पाया गया है।

 

कांग्रेस विधायक डोप टेस्ट में फेल
दरअसल जालंधर जिले के करतारपुर विधानसभा हलके से कांग्रेसी विधायक चौधरी सुरिंदर सिंह के डोप टेस्ट की रिपोर्ट पॉजीटिव पाई गई है। जांच के दौरान डॉक्टरों ने जो रिपोर्ट तैयार की है, उसमें विधायक के यूरिन सैंपल में दिमाग के रसायनों को कंट्रोल करने वाली दवा बेंजोडाइजेपिन की मात्रा पाई गई है। डॉक्टरों के अनुसार यह दवा नींद नहीं आने की स्थिति में ली जाती है।

नींद की दवा और डोप टेस्ट
विधायक सुरिंदर चौधरी ने डोप टेस्ट फार्म भरते समय जिक्र किया था कि वे डिप्रेशन और नींद नहीं आने की समस्या के चलते इसी दवा का सेवन करते आ रहे हैं। इस पर उनका यूरिन का सैंपल लिया गया, जांच के बाद रिपोर्ट में डिप्रेशन और नींद की समस्या को दूर करने के लिए ली जाने वाली दवा की पुष्टि हुई है। सिविल अस्पताल के एसएमओ तरलोचन सिंह का कहना है कि अगर कोई भी डिप्रेशन को दूर करने के लिए इस तरह की दवा का सेवन करता है तो उसका डोप टेस्ट पॉजीटिव आएगा। उन्होंने बताया कि इनके साथ ही सांसद संतोख सिंह चौधरी, विधायक राजिंदर बेरी और बावा हैनरी का डोप टेस्ट हुआ था, जो नेगेटिव पाया गया। इस बारे में विधायक सुरिंद चौधरी का कहना है कि वे डिप्रेशन की वजह से नींद नहीं आने से इसी दवा लेते आ रहे हैं, इसकी जानकारी डॉक्टरों को दी गई थी। डॉक्टरों ने उनको डिप्रेशन के इलाज के लिए रेस्टिल की दवा लेने के बारे में लिखा था, जिसका वे सेवन करते आ रहे हैं।  

यहां और विवादों में फंस गई सरकार
सभी कर्मचारियों के डोप टेस्ट की बात हुई तो इनमें सभी पुलिसकर्मी भी शामिल हैं। हालांकि इससे पहले पूर्व अकाली-भाजपा सरकार ने भी पुलिस भर्ती से पहले डोप टेस्ट अनिवार्य किया था, लेकिन इस बार डोप टेस्ट पर काफी विवाद हो रहा है। सरकार के फैसले पर सवाल उठ रहे हैं। कर्मचारी इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह उन पर शक करने जैसा है। साथ ही इस पर होने वाले 1500 रुपये के खर्चे को लेकर भी विवाद है। हालांकि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा, पॉजीटिव पाए जाने वाले कर्मचारियों पर कार्रवाई नहीं की जाएगा। सरकार उनका इलाज करवाएगी और उनके नाम गुप्त रखे जाएंगे। नशा छोड़ने वाले युवाओं को सरकार रोजगार भी मुहैया करवाएगी।

क्या डोप टेस्ट ड्रग्स की समस्या का समाधान है?
वहीं, विपक्ष इसे ड्रामेबाजी बता रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल व आप नेता बलबीर सिंह समेत कई नेताओं ने इसका समर्थन भी किया, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि कर्मचारियों के डोप टेस्ट से समस्या का समाधान नहीं होगा। मुख्यमंत्री की ओर से डोप टेस्ट की घोषणा के बाद राज्य में टेस्ट करवाने की होड़ लग गई। कांग्रेस के मंत्रियों व विधायकों ने टेस्ट करवाए, तो आप नेता भी बीच में कूद गए। आप नेता अमन अरोड़ा समेत कई विधायकों ने टेस्ट करवाए। कैप्टन ने भी कहा कि उन्हें अपना डोप टेस्ट करवाने से कोई आपत्ति नहीं है। राजनेता जहां धड़ाधड़ डोप टेस्ट करवा रहे हैं, वहीं सरकारी मुलाजिम खासे आशंकित हैं। मुलाजिमों की आशंका डोप टेस्ट को लेकर नहीं, बल्कि इस बात को लेकर है कि उन्हें सरकार के सामने यह साबित करना होगा कि वह नशेड़ी नहीं हैं। वहीं, सरकार के इस फैसले पर सवाल भी उठने लगे हैं कि डोप टेस्ट क्या ड्रग्स की समस्या का समाधान कर सकता है? 

अपने की विधायक ने उठाए सवाल 
पंजाब सरकार डोप टेस्ट के फैसले पर अडिग है, लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि आखिर इस प्रकार के डोप टेस्ट के क्या परिणाम निकलेंगे, जिसमें मुलाजिम को पहले ही पता होगा कि उन्हें कब डोप टेस्ट देना है। पूर्व मंत्री राणा गुरजीत सिंह ने भी यही मुद्दा उठाया है। उनका कहना है कि डोप टेस्ट अचानक होना चाहिए। क्योंकि हर ड्रग्स की अलग-अलग मियाद है। जैसे कोकीन लेने वाले व्यक्ति के खून में ड्रग्स 2 से लेकर 10 दिनों तक रहती है, लेकिन वह भी मात्रा पर निर्भर करता है। इसी प्रकार मिथाडॉन 2 से 7 दिनों तक ही खून में रहेगी। सवाल उठने लगे हैं कि होड तो ड्रग्स को खत्म करने के लिए डोप टेस्ट करवाने की है, लेकिन अभी तक सरकार की तरफ से यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि सरकार कौन से ड्रग्स का डोप टेस्ट करवाना चाहती है। अफीम, कोकीन, भुक्की, स्मैक या अन्य।

आनन-फानन में लिया गया फैसला 
डोप टेस्ट में 10 प्रकार के टेस्ट लिए जाते हैं। बाबा फरीद यूनिवर्सिटी के पूर्व रजिस्ट्रार डॉ. प्यारे लाल गर्ग कहते हैं, यह हैरानीजनक है कि सभी भेड़ चाल में चलने लगते हैं। आखिर पहले सरकार यह तो तय कर ले कि उसे कौन सी ड्रग्स का टेस्ट करवाना है। सरकार डोप टेस्ट करवाकर किस तरह से नशे पर कंट्रोल करना चाहती है। क्योंकि अगर सभी सरकारी मुलाजिमों का डोप टेस्ट होता है, तो पंजाब देश का संभवत: एक मात्र ऐसा राज्य होगा जो यह कदम उठाने जा रहा है। वहीं, पंजाब सरकार ने सरकारी मुलाजिमों का डोप टेस्ट करवाने का फैसला तो कर लिया है, लेकिन अभी यह ही तय नहीं हो पाया है कि डोप टेस्ट का खर्च कौन उठाएगा। क्योंकि डोप टेस्ट करवाने की सरकारी फीस 1500 रुपये है। पंजाब में अभी 4.20 लाख के करीब सरकारी मुलाजिम काम कर रहे हैं। अत: इस पर करीब 70 करोड़ रुपये का खर्च आ सकता है। जाहिर सी बात है कि मुलाजिम अपनी जेब से पैसा खर्च करवाकर तो डोप टेस्ट करवाएगा नहीं। अत: सरकार को ही इसका खर्च उठाना पड़ेगा। सरकार के ही एक वरिष्ठ नेता कहते हैं, सरकार को आनन-फानन में इस तरह के कदम नहीं उठाने चाहिए। क्योंकि एक तरफ आपने सभी सरकारी मुलाजिमों को संदेह के घेरे में खड़ा कर दिया और डोप टेस्ट पर कई करोड़ रुपये भी खर्च कर देंगे। इसके बावजूद अगर सरकार के हाथ खाली रह गए, तो इससे सरकार की साख दांव पर लग जाएगी। क्योंकि अगर कोई मुलाजिम ड्रग्स लेता भी है और उसे पता है कि उसका टेस्ट कब होना है। ऐसे में वह पहले से ही उसकी युक्ति सोच लेगा। संभवत: शराब का सहारा लेकर वह अपने डोप को पाजीटिव होने से बचा ले। क्योंकि सरकार शराब का टेस्ट नहीं करवा रही है। 

रोजगार न मिलने पर नशा कर रहे युवक
बठिंडा में हेल्थ चेकअप के लिए पहुंचे पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल ने कहा कि नशा करने का मुख्य कारण फ्रस्ट्रेशन है। रोजगार न मिलने के कारण युवक ऐसा कर रहे हैं। इसको दूर करने के लिए सख्त कदम उठाए जाने की जरूरत है। सरकारी मुलाजिमों के साथ-साथ मंत्रियों व विधायकों का भी डोप टेस्ट किया जाना चाहिए। कैप्टन शोशेबाजी कर रहे हैं। सरकार एक फीसद मुलाजिमों की बजाय 99 फीसद लोगों पर काम करे। 

प्रत्याशी के हलफनामे के साथ अटैच हो डोप टेस्ट की रिपोर्ट
लुधियाना में लोक इंसाफ पार्टी के विधायक सिमरजीत बैंस ने कहा कि चुनाव के दौरान प्रत्याशी के हलफनामे के साथ उसकी डोप टेस्ट रिपोर्ट भी अटैच की जाए। आनंदपुर साहिब से सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा ने डोप टेस्ट के फरमान पर कहा कि यह सरकार का कर्मचारियों पर भरोसा न होना साबित करता है। पुलिस व ड्रग्स माफिया के नेक्सस को तोड़ने की जरूरत है। ये क्या शर्त है कि विपक्ष के लोग भी अपना डोप टेस्ट करवाएं। 

मुख्यमंत्री अपना टेस्ट करवाकर पेश करें उदाहरण
मोहाली में डोप टेस्ट करवाने पहुंचे आम आदमी पार्टी के विधायक अमन अरोड़ा ने कहा कि लंबे समय से राजनेताओं को बदनाम किया जा रहा है कि ये भी ड्रग्स के मामलों में शामिल हैं। नशे के नेक्सस को तोड़ना जरूरी है, इसलिए आज वो खुद अपना डोप टेस्ट करवाने के लिए आए हैं। मुख्यमंत्री अपना टेस्ट करवाकर उदाहरण पेश करें। 

खेलों में डोप का डंक 
डोपिंग का इतिहास काफी पुराना है। 1904 ओलंपिक में सबसे पहले डोपिंग का मामला सामने आया था, लेकिन इस संबंध में प्रयास 1920 से शुरू हुए। शक्तिवर्धक दवाओं के इस्तेमाल करने वाले खिलाड़ियों पर नकेल कसने के लिए सबसे पहला प्रयास अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स महासंघ ने किया और 1928 में डोपिंग के नियम बनाए गए। 1968 ओलंपिक में पहली बार डोप टेस्ट अमल में लाया गया और धीरे-धीरे ऐसा करने वाले खिलाड़ियों पर शिकंजा कसना शुरू हो गया। अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने 1999 में विश्व एंटी डोपिंग संस्था (वाडा) की स्थापना की। इसके बाद प्रत्येक देश की ओर से राष्ट्रीय स्तर पर डोपिंग रोधी संस्था (नाडा) की स्थापना की गई।

हथियार लाइसेंस के लिए भी डोप टेस्ट जरूरी 
पंजाब सरकार ने हथियार का लाइसेंस लेने के लिए लोगों को डोप टेस्ट करवाना भी जरूरी कर दिया था। सरकार का उद्देश्य यह पता लगाना था कि हथियार का लाइसेंस लेने वाले कहीं कोई नशा तो नहीं करते। पंजाब सरकार की तरफ से ये भी कहा गया था कि अगर डोप टेस्ट में नशे की मात्रा पाई गई, तो पंजाब में जीवन भर हथियार के लाइसेंस से वंचित रहना पड़ेगा।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट
माइक्रोबायोलॉजिस्ट डॉ. डीके बिमरा का कहना है कि ड्रग्स लेने पर वह आपके खून में मिल जाता है। अलग-अलग ड्रग्स की खून में रहने की अलग-अलग सीमा है, जिसके बाद वह यूरिन के माध्यम से निकल जाता है। ड्रग्स लेने वाले के खून से जैसे-जैसे ड्रग की मात्रा कम होने लगती है, उसे ड्रग लेने की जरूरत महसूस होने लगती है, लेकिन हर ड्रग्स की खून में रहने की अलग-अलग समय सीमा है। 

बाबा फरीद यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस के पूर्व रजिस्ट्रार डॉ. प्यारे लाल गर्ग कहते हैं- डोप टेस्ट इस समस्या का समाधान नहीं है। ड्रग्स की लड़ाई तब तक नहीं लड़ी जा सकती, जब तक इसे घर से न शुरू किया जाए। घर में लड़की देर से आती है, तो मां-बाप को चिंता हो जाती है। यह चिंता तब भी होनी चाहिए, जब बेटा देर से आता है। आज चर्चा इस बात की भी है कि ऑर्गेनिक ड्रग्स को छूट दी जाए। हकीकत यह है कि अमेरिका इसका भी प्रयोग कर चुका है। तब भी वहां 65000 मौतें हो गई थीं। जागरुकता ही इसका सही हल है।


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