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जलापूर्ति व्यवस्था का मॉडल बना छत्तीसगढ़, इस गांव में बच्चा-बच्चा समझता है पानी का मोल

महासमुंद जिले के बांसकुढ़ा गांव में लोगों को भरपूर पानी मिल रहा है। ग्राम जल सुरक्षा समिति के अंतर्गत पानी का का उपयोग किया जा रहा है। गांव के सभी लोग सार्वजनिक रूप से पानी भर रहे।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Sat, 18 May 2019 08:05 PM (IST)Updated: Sat, 18 May 2019 08:05 PM (IST)
जलापूर्ति व्यवस्था का मॉडल बना छत्तीसगढ़, इस गांव में बच्चा-बच्चा समझता है पानी का मोल
जलापूर्ति व्यवस्था का मॉडल बना छत्तीसगढ़, इस गांव में बच्चा-बच्चा समझता है पानी का मोल

महासमुंद, [आनंदराम साहू]। छत्तीसगढ़ के कई इलाकों में पानी की बहुत ज्यादा किल्लत है। राज्य की कई नदियां सूख गई हैं। महासमुंद जिले की पथरीली जमीन पर बसे अंदरूनी गांव बांसकुढ़ा में लोगों को भरपूर पानी मिल रहा है। तालाब में करीब पांच फीट पानी है। यह सबकुछ हो रहा है ग्राम जल सुरक्षा समिति की बदौलत। गांव का बच्चा-बच्चा पानी का मोल समझता है। खास बात यह कि गांव के किसी भी व्यक्ति को नल का निजी कनेक्शन नहीं दिया गया है। अमीर हो या गरीब, सभी सार्वजनिक नल से पानी भरते हैं। इतना ही नहीं, ग्रामीण खुद तय समय में पानी का टैक्स समिति में जमा कर देते हैं। आज यह गांव जलापूर्ति व्यवस्था का मॉडल बन गया है।

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पथरीली जमीन और जंगल के भीतर बसे बांसकुढ़ा के लोगों ने वर्षों तक भीषण जलसंकट झेला है। करीब छह सौ की आबादी वाले इस गांव के लोगों को ढाई-तीन किलोमीटर दूर स्थित गांवों पर आश्रित रहना पड़ता था। यह जिले के सबसे ज्यादा जलसंकट वाला गांव था। वर्ष 2007-08 में दिल्ली की टीम यहां पहुंची। पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि बीआरजीएफ से बांसकुढ़ा के आश्रित गांव कुहरी में जिला पंचायत के माध्यम से नल-जल की स्वीकृति दिलाई। दोनों गांवों के बीच करीब तीन किमी लंबी पाइप लाइन बिछाई गई। फिर भी समस्या खत्म नहीं हुई।

जल क्रांति अभियान ने दी दिशा

पांच जून 2015 में केंद्र सरकार ने देश भर में जल क्रांति अभियान की शुरुआत की। इसमें सभी जिलों के सबसे ज्यादा जलसंकट ग्रस्त दो गांवों का चयन किया गया। महासमुंद जिले के बांसकुढ़ा का चयन हुआ। वर्ष 2016 में ग्राम जल सुरक्षा समिति गठित हुई। यहां से शुरू हुई सफलता की कहानी। संचालन और संधारण के प्रति गंभीरता नहीं दिखाने के चलते ज्यादातर गांवों में जहां जल क्रांति अभियान आज असफल हो चुका है, बांसगुढ़ा गांव मॉडल बन गया है।

इस तरह की व्यवस्था

सचिव शिवकुमार पटेल ने बताया कि गांव में दो बोर कराए गए। कुहरी गांव में पहले से ही बोर हुआ था। इस तरह तीनों बोर के पाइप लाइन को जोड़ा है। गांव में 14 स्थानों पर सार्वजनिक नल लगाए गए हैं। सभी नलों में टोटियां लगी हैं। गांव के किसी भी व्यक्ति को नल कनेक्शन नहीं दिया गया है, जिससे पंप के जरिए पानी खींच लेने जैसी स्थिति भी नहीं है। तय समय पर पानी की आपूर्ति की जाती है। पानी की टंकियां भी बना बनाई गई हैं, जिनमें सोलर सिस्टम लगा है। यानी बिजली न भी रहे तो भी पानी मिलेगा। पाइप लाइन के जरिए गांव के तालाब तक पानी पहुंचाया जाता है।

दिन नहीं, एक समय भी जलापूर्ति बाधित नहीं

पानी के लिए हम किसी निकाय पर निर्भर नहीं हैं। ग्राम जल सुरक्षा समिति जलापूर्ति व्यवस्था का संचालन व संधारण करती है। लोग खुद जल कर वसूलते हैं और जमा करते हैं। सामुदायिक सहभागिता से यह सब हो रहा है। एक दिन नहीं, एक समय भी जलापूर्ति बाधित नहीं होती। पाइप लाइन बदलने, नल, टोटियां, बिजली बिल, मोटर पंप आदि सब का संधारण समिति करती है। तीनों बोर की पाइप जोड़ देने से कोई पंप बिगड़ता है, तो भी पानी मिलता है।

- नंदनी यादव, सरपंच बांसकुढ़ा  

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