हिमाचल में पानी में पीलिया का वायरस जांचने की कोई व्यवस्था नहीं, पुणे भेजा जाता है सैंपल
लोगों को पीने के लिए शुद्ध पानी की आपूर्ति का दंभ भरने वाले हिमाचल में पानी में पीलिया का वायरस जांचने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। पानी में पीलिया के वायरस को जांचने के लिए प्रदेश से सैंपलों को पुणे भेजा जाता है।
शिमला [यादवेन्द्र शर्मा] लोगों को पीने के लिए शुद्ध पानी की आपूर्ति का दंभ भरने वाले हिमाचल में पानी में पीलिया का वायरस जांचने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। पानी में पीलिया के वायरस को जांचने के लिए प्रदेश से सैंपलों को पुणे भेजा जाता है और वहां से 15-20 दिनों के बाद रिपोर्ट आती है कि पानी में पीलिया का वायरस है। पुणे में पीलिया के वायरस की जांच को एक टैस्ट के तीन हजार रुपये लिए जाते हैं जबकि हर सप्ताह जांच को सैंपल भेजे जा रहे हैं। पीलिया के अलावा पानी के सैंपल प्रदेश में पास हो रहे पुणे लैब में उनमें से कुछ सैंपल फेल हो रहे हैं।
पीलिया से मौत
हिमाचल प्रदेश में हर वर्ष सैकड़ों लोगों को पीलिया हो रहा है और पीलिया से मौत भी हो रही है। सैंकड़ों मामले पानी में पीलिया के वायरस के कारण हो रहे हैं यह खुलासा पुणे से आने वाली रिपोर्ट में हो रही है। इस सबके बावजूद प्रदेश में पानी में पीलिया वायरस को जांचने के लिए कोई व्यवस्था ही नहीं है। हिमाचल प्रदेश के पांच जिले पीलिया के लिए संवेदनशील हैं जिनमें शिमला, सोलन, सिरमौर, मंडी और कांगड़ा शामिल है। हर वर्ष इन जिलों से काफी तादाद में हेपेटाइटिस ए और ई से पीडि़त मरीज आते हैं। प्रदेश में करीब 50 सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट हैं। इन सीवरेज प्लांट की स्थिति कई स्थानों पर ठीक नहीं है जिसके कारण पीलिया फैल जाता है।
2015-16 में हुई थी तीस के करीब मौतें
वर्ष 2015-16 में पीलिया के कारण करीब तीस मौतें हुई थी और इसके बाद अश्वनी खडड से आपूर्ति होने वाले पीने के पानी को पूरी तरह से बंद कर दिया गया था। प्रदेश उच्च न्यायालय के निर्देशों के तहत एसआईटी का गठन किया गया था और प्रदेश में पहली बार पीलिया फैलने पर पुलिस थाना में मामला दर्ज किया गया था और पांच के करीब अधिकारियों व ठेकेदार सहित अन्यों को गिरफ्तार किया गया था। सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों पर भी नुकेल कसी गई थी। पीलिया फैलाने का प्रमुख कारण सीवरेज के पानी की पीने के पानी में मिलावट का होना है। प्रदेश में सत्तर फीसदी पीने के पानी की पाइपें सीवरेज की लाइनों की साथ बिछी हुई हैं और इसके कारण पीलिया का वायरस फैल रहा है।
आईपीएच की पानी की जांच को 42 प्रयोगशालाएं
प्रदेश में पानी की जांच के लिए करीब 42 प्रयोगशालाएं हैं। इन प्रयोगशालाओं में पांच से छह मानकों और कुछ में दस से बारह मानकों की जांच की जा रही है जबकि पानी की जांच के लिए करीब 45 मानक हैं। प्रदेश में होने वाली पीने के पानी की जांच में पानी की टर्बिडिटी यानि पानी में मैलापन को देखा जाता है। पानी में खारापन जांचने को क्लोराइड टैस्ट, बायोलॉजिकल टैस्ट से पानी में बैक्टिरिया, पीएच मान, पानी में क्लोरिन की मात्रा को जांचा जाता है।
आखिर क्या है शुद्ध पेयजल
शुद्ध पेयजल में 4 गुण होना लाजमी माना जाता है। इसमें जल में आंखों से दिखने वाले कण, जीव व वनस्पति न हों, स्वास्थ्य को हानि पहुंचाने वाले सुक्ष्म जीव या कण न हों, जल का पीएच मान संतुलित हो यानि न वह एसिडिक और न ही एल्काईन हो और चौथा जल में पर्याप्त मात्र में क्लोरिनेशन हो। वैसे शुद्ध पेयजल के 45 मानक निर्धारित हैं। आम तौर पर क्लोरीन और आयोडीन का इस्तेमाल जल को शुद्ध करने के लिए होता है और इसके लिए शुद्ध रसायनिक दवाओं को इस्तेमाल जरुरी है।
प्रदेश में पानी की जांच के लिए 42 प्रयोगशालाएं हैं जिनमें पानी की जांच की जाती है। पानी में पीलिया का वायरस जांचने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। इसके लिए सैंपलों को पुणे भेजा जाता है। पीने के लिए शुद्ध पानी उपलब्ध हो इस लिए फिल्टर बैड सहित लगातार पानी के सैंपल लिए जाते हैं।
-अनिल कुमार बाहरी, अभियंता प्रमुख, सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य विभाग
चार माह में हेपेटाइटिस के 113 मामले
प्रदेश में पीलिया की जांच को चार माह के दौरान हेपेटाइटिस ए और ई के 693 सैंपल लिए। इसमें से 113 पॉजिटिव आए हैं। इस साल दो मौतें हो चुकी हैं।