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भारत के अघोषित मार्गदर्शक थे मिसाइलमैन डा. एपीजे अब्दुल कलाम

सामरिक दृष्टि से अहम मिसाइलों के निर्माण के लिए जुलाई 1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक परियोजना की आधारशिला रखी जिसकी कमान कलाम को सौंपी गई। कलाम और उनके साथियों ने छह साल से भी कम अवधि में पांच मिसाइलों-पृथ्वी अग्नि और नाग आदि का विकास कर दिखाया।

By TilakrajEdited By: Published: Fri, 15 Oct 2021 09:39 AM (IST)Updated: Fri, 15 Oct 2021 09:39 AM (IST)
भारत के अघोषित मार्गदर्शक थे मिसाइलमैन डा. एपीजे अब्दुल कलाम
कलाम पूरी दुनिया में भारत के ‘मिसाइलमैन’ के रूप में प्रसिद्ध हो गए

प्रदीप। किसी व्यक्ति के काम, गुण और स्वभाव चुंबक की तरह होते हैं। ऐसे व्यक्तित्व के प्रभाव का दायरा भी अत्यंत व्यापक हो जाता है। इस धरा को छोड़ने के बाद भी उनकी विरासत सदा उनके नाम को प्रकाशमान बनाए रखती है। महान स्वप्नद्रष्टा, विलक्षण विज्ञानी और अनुकरणीय शिक्षक पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम ऐसी ही एक शख्सीयत थे। अपने जीवनकाल में किंवदंती की उपाधि विरलों को ही नसीब होती है, लेकिन यह पदवी कलाम के नाम उनके जीवनकाल में ही हो गई।

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वास्तव में वह भारत के अघोषित मार्गदर्शक थे। देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम तथा राष्ट्रीय सुरक्षा में उनका योगदान अविस्मरणीय है। देश के विकास को लेकर उनके पास एक स्पष्ट और समग्र दृष्टि वाला ‘इंडिया 2020’ विजन था, जिसका तानाबाना विज्ञान और प्रौद्योगिकी के इर्दगिर्द बुना गया था।

रामेश्वरम के एक बेहद गरीब परिवार में 15 अक्टूबर, 1931 को जन्मे कलाम ने तमाम बाधाओं को दूर कर अपने लिए शिखर पर जगह बनाई। उनका जीवन अपने सपनों को साकार करने की मिसाल बना। वह कहते थे कि, ‘सपने वे नहीं होते जो हमें सोने के दौरान आते हैं, बल्कि सपने वे होते हैं जो हमें सोने नहीं देते।’

इससे उनका आशय सपनों को पूरा करने के संकल्प और उसका बार-बार स्मरण कराने से था। उनका मानना था कि देश के युवा अपनी नई सोच, जोश और ऊर्जा से देश के भविष्य को संवार सकते हैं। इसीलिए वह अपनी अंतिम सांस तक युवाओं को राष्ट्र के प्रति समर्पण के लिए उत्साहित और प्रेरित करते रहे।

सैटेलाइट लांच व्हीकल टेक्नोलाजी के विकास तथा नियंत्रण, प्रणोदन और वायुगतिकी में विशेषज्ञता हासिल करने में डा. कलाम की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। 17 अप्रैल, 1983 को एसएलवी-3 के सहारे एक कृत्रिम उपग्रह ‘रोहिणी-आरएसडी2’ को पृथ्वी की कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया। इसी के साथ भारत स्पेस क्लब का छठा सदस्य राष्ट्र बन गया। यह भारत के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी।

सामरिक दृष्टि से अहम मिसाइलों के निर्माण के लिए जुलाई 1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक परियोजना की आधारशिला रखी, जिसकी कमान कलाम को सौंपी गई। कलाम और उनके साथियों ने छह साल से भी कम अवधि में पांच मिसाइलों-पृथ्वी, अग्नि और नाग आदि का विकास कर दिखाया।

इसके साथ ही कलाम पूरी दुनिया में भारत के ‘मिसाइलमैन’ के रूप में प्रसिद्ध हो गए। 1997 में डा. कलाम को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत-रत्न’ से विभूषित किया गया। 25 जुलाई, 2002 को डा. कलाम ने भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। आज वह भले ही हमारे बीच नहीं, मगर उनके आदर्श, जीवन मूल्य और कार्य आने वाली पीढ़ियों को निरंतर प्रेरित करते रहेंगे।

(लेखक विज्ञान के जानकार हैं)


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