दहेज प्रथा को खत्म करने की मिसाल पेश करने वाले आशीष सक्सेना ने समाज को दिया ये संदेश
मध्य प्रदेश के बहुल झाबुआ क्षेत्र में वधूमूल्य प्रथा का चलन को 2 साल के कठिन प्रयास के बाद खत्म कर दिया गया है।
भोपाल, यशवंत सिंह पंवार। मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ क्षेत्र में वधूमूल्य प्रथा का चलन जोरों पर था। वर पक्ष लड़की के पिता को नियत राशि देता और लड़की का पिता राशि के लालच में कम उम्र में ही बेटी की शादी कर देता। 2016 से दिसंबर 2018 तक झाबुआ कलेक्टर रहे आशीष सक्सेना को सदियों पुरानी इस कुप्रथा पर अंकुश लगाने का श्रेय दिया जा रहा है। सक्सेना वर्तमान में बतौर अपर आयुक्त, नगरीय प्रशासन व विकास संचालनालय, भोपाल में पदस्थ हैं, लेकिन झाबुआ में अपने 28 महीनों के कार्यकाल में उन्होंने दहेज दापा के कलंक से हजारों बालिकाओं को मुक्ति दिलाने का सराहनीय काम कर दिखाया। आशीष बताते हैं कि झाबुआ की 13 वर्षीय एक आदिवासी लड़की रेखा की पीड़ा ने उन्हें स्थिति की विकरालता से रूबरू कराया।
आशीष सक्सेना ने दहेज प्रथा पर की बातचीत
तलावली इलाके की 13 वर्षीय रेखा भूरिया जब तमिलनाडु में आयोजित राष्ट्रीय योग प्रतियोगिता में पदक जीतकर लौटी औरअपने प्रशिक्षक के साथ वह कलेक्टर से मिलने कलेक्ट्रेट पहुंची तो आशीष ने उससे उसके भविष्य के बारे में कुछ बातें कीं। आशीष ने पूछा कि बड़ी होकर क्या बनना चाहती हो, इस पर उसकी आंख नम हो गईं। तब प्रशिक्षक जितेंद्र सिंह सोलंकी ने बताया कि रेखा की शादी तय कर दी गई है, इसलिए वह दुखी है। आशीष ने तब दहेज दापा के बारे में विस्तार से अध्ययन किया। रेखा के मामले में वह उसके परिजनों से मिले और उसकी शादी के शगुन के रूप में पिता ने जो राशि वर पक्ष से ली थी, वह लौटाने के लिए उन्हें राजी किया। इतना ही नहीं, रेखा को छात्रवास में भर्ती करवाया गया। रेखा ने आगे की पढ़ाई शुरू कर दी। बस यहीं से कलेक्टर सक्सेना ने दहेज दापा के खिलाफ कमर कस ली। इसके लिए उन्हें न केवल प्रशासनिक बल्कि सामाजिक स्तर पर भी कई तरह के प्रयास करना पड़े।
दहेज की रोकथाम के लिए बनाई गई योजना
आशीष ने सबसे पहले ग्रामीण क्षेत्रों में दहेज दापे के मामले में सर्वे करवाया। सर्वे में दहेज दापे को लेकर वास्तविक स्थिति सामने आई तब इसकी रोकथाम के लिए योजना बनाई। तड़वी (मार्गदर्शक) सम्मेलन करवाए गए। समाज के बुजुर्गो को समझाया गया। किशोरी संसद के रूप में बालिकाओं के सम्मेलन आयोजित कराए गए। इसमें 39 हजार बालिकाओं ने भाग लिया। 18 वर्ष से कम उम्र में शादी नहीं करने को लेकर बालिकाओं को शपथ दिलवाई गई। अधिक से अधिक बालिकाओं को छात्रवासों में प्रवेश दिलवाया गया।
दहेज प्रथा के खिलाफ पास करवाया प्रस्ताव
आशीष सक्सेना ने बताया कि उन्होंने ग्रामसभा में दहेज दापा के खिलाफ प्रस्ताव पारित करवा दिया था, हालांकि उसका लोगों पर कोई फर्क नहीं पड़ा, क्योंकि यहां तो भील पंचायत चलती है। ऐसे में उन्होंने समाज के सम्मानित लोगों (तड़वियों) से सीधा संपर्क करना शुरू किया। मुख्य समस्या यह थी कि भांजगड़िये यानी दलाल शादियां करवाने में दोनों पक्ष से पैसा लेते थे। कानूनी कार्रवाई से ज्यादा बात नहीं बनती थी। ऐसे में पुलिस के साथ मिलकर ऐसे सभी लोगों को चाय पर चर्चा के लिए बुलाया। काउंसलिंग भी की गई। नतीजा यह निकला कि लिए हुए पैसे भी उन्होंने बालिकाओं के बैंक खातों में वापस जमा करवाए। गांव-गांव में जाकर दहेज दापे की राशि को नहीं लेने या एकदम ही कम करने पर जोर दिया गया। इससे सकारात्मक माहौल उत्पन्न हुआ। इसे भी पढ़ें।
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