प्राइम टीम, नई दिल्ली। देश के सबसे बड़े शेयर बाजार नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) में सूचीबद्ध कंपनियों में घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई), रिटेल निवेशकों और हाई नेट-वर्थ इंडिविजुअल (HNI) की हिस्सेदारी बीते 31 मार्च को 25.72 फीसदी के नए उच्च स्तर पर पहुंच गई। इनकी हिस्सेदारी 31 दिसंबर को 24.44 फीसदी थी। प्राइम इन्फोबेस ने यह डेटा जारी किया है। पिछले डेढ़ साल से तिमाही दर तिमाही घरेलू निवेशक भारतीय पूंजी बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाते जा रहे हैं। जानकार इसे भारतीय बाजारों का आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ता कदम भी मानते हैं।

प्राइम डेटाबेस ग्रुप के प्रबंध निदेशक प्रणव हल्दिया कहते हैं, बीती तिमाही डीआईआई ने भारतीय बाजार में 83,200 करोड़ रुपए का शुद्ध निवेश किया। लगातार छठी तिमाही घरेलू निवेशकों की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई। पहली बार घरेलू निवेशकों की हिस्सेदारी 25 फीसदी या एक-चौथाई के आंकड़े के पार गई है। इसे देखते हुए हम कह सकते हैं कि भारतीय पूंजी बाजार आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है।

आंकड़े बताते हैं, बीती तिमाही विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) ने भारतीय बाजार से 26,211 करोड़ रुपए की शुद्ध बिकवाली की। हालांकि इसके बावजूद बीती तिमाही भारतीय पूंजी बाजार में उनकी हिस्सेदारी मामूली बढ़कर 20.56 प्रतिशत हो गई, जो 31 दिसंबर 2022 को 20.24 फीसदी थी। एफआईआई ने तिमाही के दौरान तेल, गैस और वित्तीय सेवा क्षेत्र से 35,048 करोड़ रुपए निकाले, जबकि सेवा और पूंजीगत सामान क्षेत्र में 12,994 करोड़ रुपए का निवेश किया।

हल्दिया के अनुसार, पिछले 8 वर्षों में भारतीय बाजार में विदेशी और घरेलू निवेशकों के संबंधों में एक संरचनात्मक बदलाव आया है। 31 मार्च 2015 तक भारतीय पूंजी बाजार में एफआईआई की हिस्सेदारी 23.30 फीसदी थी, जबकि डीआईआई, रिटेल और एचएनआई की संयुक्त हिस्सेदारी सिर्फ 18.47 फीसदी थी।

बीती तिमाही में एफआईआई और डीआईआई होल्डिंग के बीच का अंतर अब तक के सबसे निचले स्तर पर आ गया है। डीआईआई की होल्डिंग अब एफआईआई होल्डिंग की तुलना में सिर्फ 20.46 फीसदी कम है। इससे पहले 31 दिसंबर को समाप्त तिमाही में डीआईआई की होल्डिंग एफआईआई की होल्डिंग से 24.30 फीसदी कम थी। इसकी तुलना में, 31 मार्च 2015 को समाप्त तिमाही में डीआईआई होल्डिंग एफआईआई होल्डिंग से 55.45 फीसदी कम थी।

इस बीच, भारतीय शेयर बाजारों में संस्थागत निवेशकों (एफआईआई और डीआईआई) की कुल हिस्सेदारी भी 31 मार्च को समाप्त तिमाही में 36.91 फीसदी के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गई, जो 31 दिसंबर को समाप्त तिमाही में 35.56 फीसदी थी। डीआईआई की हिस्सेदारी 31 दिसंबर, 2022 के 15.32 फीसदी से बढ़कर 31 मार्च, 2023 तक 16.35 प्रतिशत के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गई।

घरेलू म्यूचुअल फंड की हिस्सेदारी लगातार सातवीं तिमाही में बढ़ी और 31 मार्च 2023 को 8.74 फीसदी के नए उच्च स्तर पर पहुंच गई। 31 दिसंबर 2022 को इनकी हिस्सेदारी 8.09 फीसदी थी। तिमाही के दौरान घरेलू म्यूचुअल फंडों द्वारा 54,942 करोड़ रुपए के शुद्ध प्रवाह के कारण उनकी हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है। म्यूचुअल फंड्स ने इस दौरान डायवर्सिफाइड और एफएमसीजी में एक्सपोजर को कम करते हुए फाइनेंशियल सर्विसेज और इंडस्ट्रियल सेक्टर्स में अपना एक्सपोजर बढ़ाया।

म्यूचुअल फंड्स को रफ्तार देने में मिलेनियल्स (1981 से 1996 के बीच जन्म लेने वाले) ने बड़ी भूमिका निभाई है। उद्योग संगठन सीआईआई और कैम्स की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले पांच साल में म्यूचुअल फंड में प्रवेश करने वाले नए निवेशकों में मिलेनियल्स का दबदबा रहा है। वित्त वर्ष 2020 में यह 57% तक पहुंच गया। कोविड महामारी की अवधि में 25 लाख से अधिक मिलेनियल्स ने पहली बार म्यूचुअल फंड में निवेश किया। वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान बाजार में उतार-चढ़ाव और अनिश्चितता के बावजूद निवेशकों का म्यूचुअल फंड में विश्वास बना रहा और मिलेनियल्स ने म्यूचुअल फंड को अपने निवेश का विकल्प बनाए रखा।

आनंद राठी समूह के एसोसिएट डायरेक्टर और प्राइवेट क्लाइंट बिजनेस के प्रमुख राजेश कुमार जैन कहते हैं, भारतीय बाजारों के लिए यह सकारात्मक बात है कि बीते वित्त वर्ष शुद्ध विक्रेता रहे विदेशी संस्थागत निवेशक चालू वित्त वर्ष में फिर से शुद्ध खरीदार बन गए हैं। अप्रैल में और मई में अब तक वे शुद्ध खरीदार रहे हैं। घरेलू संस्थागत निवेशकों को भी एसआईपी रूट से भारी आमदनी हो रही है। 2022-23 में हमने एसआईपी में ₹141,696 करोड़ रुपए का प्रवाह देखा है।

प्राइम इन्फोबेस के डेटा के मुताबिक, भारतीय पूंजी बाजार में बीमा कंपनियों की हिस्सेदारी भी 31 मार्च, 2023 को 6 साल के उच्च स्तर 5.87 फीसदी तक बढ़ गई, जो 31 दिसंबर, 2022 को 5.65 फीसदी थी। इसमें भी 68 फीसदी या 10.05 लाख करोड़ के निवेश के साथ सबसे बड़ी हिस्सेदारी एलआईसी की रही। एलआईसी की हिस्सेदारी (273 कंपनियों में जहां इसकी हिस्सेदारी 1 प्रतिशत से अधिक है) 31 मार्च, 2023 को बढ़कर 3.99 फीसदी हो गई, जो 31 दिसंबर, 2022 को 3.95 फीसदी थी। बीमा कंपनियों ने ऊर्जा और एफएमसीजी क्षेत्रों में अपना निवेश बढ़ाया, जबकि डायवर्सिफाइड और कंज्यूमर डिस्क्रिशनरी में अपने एक्सपोजर को कम किया।

रिटेल निवेशकों की हिस्सेदारी भी 31 मार्च 2023 को बढ़कर 7.48 फीसदी के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गई। 31 दिसंबर 2022 को यह 7.23 फीसदी थी। रिटेल निवेशक ऐसे निवेशकाें को कहते हैं जिनका किसी कंपनी में दो लाख रुपए से ज्यादा निवेश न हो। इसी तरह, हाई नेटवर्थ निवेशकों की हिस्सेदारी 31 मार्च 2023 को मामूली रूप से घटकर 1.88 फीसदी रह गई, जो 31 दिसंबर 2022 को 1.89 फीसदी थी। हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स (HNIs) ऐसे निवेशकों को कहते हैं जिनकी किसी कंपनी में 2 लाख रुपए से अधिक की शेयरहोल्डिंग हो।

एनएसई पर सूचीबद्ध कंपनियों में प्रमोटर के रूप में सरकार की हिस्सेदारी बीती तिमाही घटकर 7.75 फीसदी हो गई, जो 31 दिसंबर, 2022 को 7.99 फीसदी थी। सरकार के विनिवेश कार्यक्रम, पर्याप्त नई लिस्टिंग नहीं होने और कई सीपीएसई के कमजोर प्रदर्शन के कारण बीते 13 साल से बतौर प्रमोटर सरकार की हिस्सेदारी में कमी आ रही है।

एनएसई में सूचीबद्ध कंपनियों में निजी प्रवर्तकों की हिस्सेदारी की बात करें तो बीमी तिमाही यह घटकर 3 साल के निचले स्तर 41.97 फीसदी पर आ गई, जो बीती दिसंबर तिमाही में 43.25 फीसदी थी। 13 साल की अवधि में निजी प्रमोटरों की हिस्सेदारी लगातार बढ़ी है।

जैन कहते हैं, कच्चे माल की कीमतों में नरमी, वॉल्यूम ग्रोथ, कम मुद्रास्फीति, उच्च मांग कुछ ऐसे कारण रहे हैं, जिनकी वजह से भारतीय कंपनियां अच्छे नंबर लेकर आ रही हैं। भारतीय व्यवसायों में विदेशी निवेशकों की फिर से लौटी रूचि पीएलआई, आत्मनिर्भर भारत, मेड इन इंडिया, डीबीटी आदि की सरकार की नीतियों पर उनके विश्वास को दर्शाती है।