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क्या खुद को भगवान समझता है पेट्रोलियम मंत्रालय? लापरवाही से सुप्रीम कोर्ट नाराज

पेट्रोलियम मंत्रालय क्या खुद को भगवान समझता है या सर्वोच्च सत्ता मानता है। उसकी नजर में खाली बैठे न्यायाधीश उसकी मर्जी के अनुसार काम करेंगे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 10 Jul 2018 02:25 PM (IST)Updated: Tue, 10 Jul 2018 04:54 PM (IST)
क्या खुद को भगवान समझता है पेट्रोलियम मंत्रालय? लापरवाही से सुप्रीम कोर्ट नाराज
क्या खुद को भगवान समझता है पेट्रोलियम मंत्रालय? लापरवाही से सुप्रीम कोर्ट नाराज

नई दिल्ली [प्रेट्र]। पेट्रोलियम मंत्रालय क्या खुद को भगवान समझता है या सर्वोच्च सत्ता मानता है। उसकी नजर में खाली बैठे न्यायाधीश उसकी मर्जी के अनुसार काम करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने यह तल्ख टिप्पणी पेट कोक पर प्रतिबंध लगाने के मामले में सुनवाई के दौरान की। नाराज शीर्ष अदालत ने पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय पर 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। साथ ही कई इलाकों की यातायात व्यवस्था को लेकर स्टेटस रिपोर्ट नहीं देने के कारण दिल्ली सरकार पर एक लाख रुपये का हर्जाना लगाया गया है।

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जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने यह तल्ख टिप्पणी और जुर्माना यह जानने के बाद लगाया कि पेट्रोलियम मंत्रालय ने आठ जुलाई को पर्यावरण और वन मंत्रालय को पेट कोक के आयात पर रोक लगाने की जानकारी दी है। तेल शोधन के दौरान पैदा होने वाला पेट कोक कई उद्योगों में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है। इससे बड़ी मात्रा में ऊर्जा पैदा होती है, लेकिन यह पर्यावरण को भी गंभीर नुकसान पहुंचाता है।

दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के वायु प्रदूषण पर सुनवाई कर रही शीर्ष अदालत की पीठ ने देर से सूचना देने के लिए पेट्रोलियम मंत्रालय पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाया, जबकि दिल्ली सरकार पर कई इलाकों की यातायात व्यवस्था पर स्टेटस रिपोर्ट न देने के लिए एक लाख रुपये का हर्जाना लगाया गया है। केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त महाधिवक्ता एएनएस नाडकर्णी से पीठ ने पेट्रोलियम मंत्रालय के रुख पर कड़ी नाराजगी जताई।

नाडकर्णी ने जब मंत्रालय की ओर से शपथ पत्र तैयार होने की बात कही तो पीठ ने कहा कि पेट्रोलियम मंत्रालय खुद को क्या समझता है। वह आदेश का पालन नहीं करेगा और शपथ देकर समय ले लेगा। क्या वह न्यायाधीशों को खाली समझता है, जो उसके अनुसार कार्य करेंगे। पीठ 16 जुलाई को फिर मामले की सुनवाई करेगी।

फैक्ट्रियों को स्थानांतरित न करने से कोर्ट नाराज
17 साल पहले भूखंड के आवंटन के बावजूद बवाना में औद्योगिक क्षेत्र में फैक्ट्रियों के स्थानांतरित न किए जाने पर हाई कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए इसे सरकारी विभाग की नाकामी करार दिया है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल व न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की पीठ ने इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों को फटकार लगाते हुए कहा कि वे 17 साल में भी औद्योगिक कांप्लेक्स का निर्माण कार्य सुनिश्चित नहीं कर सके।

पीठ ने इस दौरान दिल्ली स्टेट इंडस्ट्रियल एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कारपोरेशन लिमिटेड (डीएसआइआइडीसी) को प्रगति रिपोर्ट पेश करने के साथ ही 1706 इकाईयों के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए, जो अब तक उन्हें आवंटित किए गए स्थान पर स्थानांतरित नहीं हुई हैं। साथ ही पीठ ने चेतावनी दी कि अगर आदेश का अनुपालन नहीं किया गया तो वह डीएसआइआइडीसी के मुख्य प्रबंध निदेशक को पेश होने का आदेश देगी। मामले में अगली सुनवाई 30 जुलाई को होगी। कोर्ट ने सवाल उठाया कि जमीन का आवंटन 2001 में करने के बावजूद भी आप कितने रुपये बवाना कांप्लेक्स के रखरखाव करने में खर्च कर रहे हैं।

कोर्ट ने कहा कि सरकारी विभाग की विफलता के कारण औद्योगिक इकाइयों को स्थानांतरित नहीं किया जा सका। इस दौरान डीएसआइआइडीसी के वकील ने अदालत को बताया कि जिन्होंने अब तक इकाइयों का निर्माण कार्य पूरा नहीं किया है उनका आवंटन रद करने के लिए उपराज्यपाल को कहा गया है। ज्ञात हो कि बवाना फैक्ट्री वेलफेयर एसोसिएशन ने जनहित याचिका दायर कर कहा कि अधिकारी आवासीय क्षेत्र से औद्योगिक इकाइयों को स्थानांतरित कराने में पूरी तरह से विफल हैं।  


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