नई दिल्ली, ऑनलाइन डिजिटल डेस्क। विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत के राष्ट्रपति के साथ मौजूद रहने वाले अंगरक्षकों को तो आप सभी ने देखा ही है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इनका इतिहास 250 वर्षों से भी ज्यादा पुराना है। ऐसे में हम आपको राष्ट्रपति के साथ-साथ चलने वाले अंगरक्षकों से जुड़े हुए तमाम सवालों का जवाब देंगे और आपको यह भी बताएंगे कि आखिर राष्ट्रपति अंगरक्षकों का चयन कैसे होता है? और टुकड़ी में कौन-कौन शामिल होता है।

प्रेसिडेंट बॉडीगार्ड
प्रेसिडेंट बॉडीगार्ड जिन्हें राष्ट्रपति के अंगरक्षक भी कहा जाता है, उनका इतिहास 250 वर्षों से भी पुराना है। साल 1773 में जब वारेन हैंस्टिंग्स को भारत का वायसराय जनरल बनाया गया तब उन्होंने अपनी सुरक्षा के लिए एक रेजिमेंट का गठन किया था। इस रेजिमेंट में युद्ध कौशल में माहिर लंबी कद-काठी वाले 50 जवानों को शामिल किया गया। अंग्रेजों की करीब 200 वर्षों की गुलामी के बाद साल 1947 में भारत आजाद हो गया और अंग्रेज हमेशा के लिए यहां से चले गए। हालांकि, ये रेजिमेंट अपनी उत्तरदायित्व निभारा रहा।
पहले इस रेजिमेंट के पास वायसराय की सुरक्षा का जिम्मा होता था, लेकिन आजाद भारत में इस टुकड़ी को हम राष्ट्रपति के अंगरक्षकों के तौर पर जानते हैं, जो पारंपरिक ड्रेस में दिखाई देते हैं। इस रेजिमेंट का अपना गौरवशाली इतिहास है। जिसमें सेना की विभिन्न टुकड़ियों से जवानों का चयन किया जाता है। मौजूदा समय में इस रेजिमेंट में शामिल तमाम जवानों को स्पेशल ट्रेनिंग दी गई है।
घुड़सवार के तौर पर अंगरक्षकों की बनी पहचान
पैरा ट्रुपिंग से लेकर दूसरे क्षेत्रों में दक्ष इस रेजिमेंट के जवानों की सबसे बड़ी पहचान इनके साथी घोड़े हैं। जिनके साथ जवानों का एक खास रिश्ता होता है। सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि लंबे कद-काठी बाले जर्मन नस्ल के घोड़ों को ही लंबे बाल रखने की इजाजत है। इनके अलावा सेना में शामिल अन्य घोड़े इनकी तरह लंबे बाल नहीं रख सकते हैं।
500 किलोग्राम वजन वाले अंगरक्षकों के घोड़े 50 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ सकते हैं और अंगरक्षकों के दिन की शुरुआत इन्हीं घोड़ों के साथ होती है। हालांकि, राष्ट्रपति के अंगरक्षकों के लिए एक दिन सबसे ज्यादा खास होता है क्योंकि उस दिन राष्ट्रपति उन्हें अपना ध्वज सौंपते हैं। दरअसल, 1923 में ब्रिटिश वायसराज ने अपने इन अंगरक्षकों को दो सिल्वर ट्रंपेट और एक बैनर सौंपा था और यह परंपरा अभी भी जारी है।
ऐसे होता है घोड़ों का चयन
राष्ट्रपति के अंगरक्षक अपने लिए सर्वश्रेष्ठ घोड़ों का चयन उत्तर प्रदेश के सहारनपुर तथा उत्तराखंड के हेमपुर में स्थित रिमाउंट ट्रेनिंग स्कूल और डिपो से करते हैं। इन घोड़ों का चयन कई मानकों पर होता है, जैसे परेड के घोड़ों की लंबाई न्यूनतम 157.5 सेमी. या 15 हाथ, रंग केवल भूरा या गहरा भूरा हों। घोड़े स्वभाव से बेहद संवेदनशील होते हैं, ऐसे में जवान का घोड़े के साथ एक विशेष रिश्ता होता है और वो उनकी पसंद-नापसंद से वाकिफ भी होते हैं।
गार्ड समारोह में बदलाव
अंगरक्षकों का दस्ते में शामिल जवान बेहतरीन घुड़सवार, सक्षम टैंककर्मी और छाताधारी सैनिक हैं। सबसे दिलचस्प बात तो यह है कि इसमें शामिल कई जवान तो तीन पीढ़ियों से अंगरक्षक की भूमिका में हैं। यह टुकड़ी नई दिल्ली में स्थित राष्ट्रपति भवन में ही रहती है।