नई दिल्ली। अनुराग मिश्रा/ विवेक तिवारी । संयुक्त राष्ट्र 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष के तौर पर मना रहा है। भारत सरकार भी लगातार मिलेट्स को प्रोत्साहित कर रही है। कई विशेषज्ञ मिलेट्स को सुपर फूड के तौर पर देख रहे हैं। ऐसे में आप सोच रहे होंगे कि अचानक हर तरफ मिलेट्स की चर्चा क्यों है। दरअसल, इनमें बदलती जलवायु, बढ़ती बीमारियों और पैदा होते खाद्यान्न संकट जैसी मुश्किलों को आसान करने की क्षमता है। दुनिया में बढ़ती कुपोषण की समस्या से निपटने में मिलेट्स अहम भूमिका निभा सकते हैं। यूनाइटेड स्टेट डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर (USDA) के मुताबिक फिंगर मिलेट या रागी में दूध की तुलना में तीन गुना तक कैल्शियम होता है। वहीं बाजरे में प्रति किलो लगभग 71 मिलीग्राम आयरन होता है जो अनार की तुलना में दोगुने से ज्यादा है। मिलेट्स के जरिए शरीर को आवश्यक पोषक तत्व प्राकृतिक तौर पर आसानी से मिल जाते हैं। दवाओं की तुलना में इनके पोषक तत्व ज्यादा पोषण प्रदान करते हैं।

दुनिया के निम्न और मध्यम अर्थव्यवस्था वाले देशों में लोगों में आयरन और जिंक की कमी के कारण कुपोषण एक गंभीर समस्या है। अकेले भारत में लगभग 80% गर्भवती महिलाएं, 52% गैर-गर्भवती महिलाएं और 6-35 महीने आयु वर्ग के लगभग 74% बच्चे आयरन की कमी से पीड़ित हैं। 5 वर्ष से कम आयु के लगभग 52% बच्चों में जिंक की कमी है।

शुष्क इलाकों में फसलों पर शोध करने वाले इंटरनेशनल क्रॉप रिसर्च इंस्टीट्यूट एशिया के रीजनल प्रोग्राम डायरेक्टर अशोक कुमार कहते हैं कि कुछ वर्षों पहले तक भारत में बड़े पैमाने पर मिलेट्स खाए जाते थे, लेकिन समय के साथ गेहूं और चावल के उत्पादन को लेकर हुए शोध और बढ़ते उत्पादन ने मिलेट्स या मोटे अनाज को थाली से दूर कर दिया। आज बदलती जलवायु के चलते पानी की कमी, बढ़ती गर्मी, स्वास्थ्य कारणों और ज्यादा पोषक तत्वों वाले अनाज के तौर पर पूरी दुनिया मे मिलेट्स की मांग तेजी से बढ़ी है।

इंटरनेशनल क्रॉप रिसर्च इंस्टीट्यूट एशिया के के डिप्टी डायरेक्ट डॉक्टर शैलेंद्र कहते हैं कि वैज्ञानिक मिलेट्स की नई प्रजातियां विकसित करने पर तेजी से काम कर रहे हैं। उन्होंने मिलेट्स की कुछ किस्मों में पोषक तत्वों की मात्रा को और बढ़ाने का काम किया है। आज हमारे पास फिंगर मिलेट या रागी की ऐसी किस्म है जिसमें दूध से तीन गुना अधिक कैल्शियम है। वहीं बाजरे की धनशक्ति किस्म में 71 मिलीग्राम/किलो आयरन और 40 मिलीग्राम/किलो जिंक होता है।

लिटिल मिलेट या कुटकी जिसे कन्नड़ में सामी, तेलुगु में सामलु और तमिलनाडु में समाई के नाम से जाना जाता है, इसमें 20 फीसदी तक प्रोटीन पाया जाता है। यह प्रोटीन का काफी अच्छा स्रोत है। आईसीआरआईएसएटी (ICRISAT) ने ज्यादा आयरन वाला मोती बाजरा (आईसीएमएच 1201) भी विकसित किया है। ये एक हाइब्रिड बीज है। इसमें 75 मिलीग्राम/किग्रा आयरन और 40 मिलीग्राम/किलो जिंक है। इसकी उपज भी काफी अच्छी है। खास बात ये है कि मिलेट्स से मिलने वाले पोषक तत्व मानव शरीर के लिए काफी अच्छे हैं। ये आसानी से शरीर में अवशोषित हो जाते हैं।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मिलेट्स रिसर्च के प्रिंसिपल साइंटिस्ट डॉक्टर डॉ. राजेंद्र आर. चापके के मुताबिक मिलेट्स पौष्टिक तत्वों से भरपूर होने के साथ ही गर्म इलाकों में भी आसानी से उगाए जा सकते हैं। जलवायु परिवर्तन के बीच खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मिलेट्स रिसर्च ने कई ज्यादा उपज वाली बायो फोर्टिफाइड किस्में भी तैयार की हैं। संस्थान की ओर से धनलक्ष्मी बाजरे की किस्म विकसित की गई है। इसमें आयरन और जिंक की मात्रा काफी अधिक है। वहीं लिटिल मिलेट की भी एक बायो फोर्टिफाइड किस्म तैयार की गई है। इसमें काफी अधिक फाइबर और प्रोटीन है। मिलेट्स की खास बात ये है कि ये बेहद कम पानी में भी आसानी से उगाए जा सकते हैं। इनके उत्पादन पर तेज गर्मी का असर नहीं होता है। 45 डिग्री सेल्सियस पर भी इनका अच्छा उत्पादन होता है।

शुष्क इलाकों में फसलों पर शोध करने वाले इंटरनेशनल क्रॉप रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रिंसिपल साइंटिस्ट एसके गुप्ता कहते हैं कि आज मिलेट्स को लेकर बढ़ी जागरूकता के साथ ही इस पर शोध भी बढ़ा है। मिलेट्स खाने से हमारी सेहत तो अच्छी होगी ही, पशुओं के लिए पौष्टिक चारे की समस्या को भी दूर किया जा सकता है। दरअसल मिलेट्स का पौधा भी पोषक तत्वों से भरपूर होता है। मिलेट्स लेने के बाद इसके पौधे को चारे के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश सहित कई जगहों पर इन्हें अब भी चारे के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। बाजरे के पौधे को जानवर जहां 40 से 45 फीसदी तक पचा लेते हैं वहीं ज्वार में ये मात्रा 50 से 55 फीसदी तक है। इसे और बढ़ाने के लिए वैज्ञानिकों की ओर से शोध किए जा रहे हैं।