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ब्रेस्ट कैंसर से ना हो परेशान, वैज्ञानिकों ने ईजाद की दवा

गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी (जीएनडीयू) के एमर्जिग लाइफ साइंस विभाग ने 12 साल की रिसर्च के बाद ब्रेस्ट कैंसर को मात देने वाली दवाई तैयार की है।

By Pooja SinghEdited By: Published: Sat, 07 Dec 2019 07:53 AM (IST)Updated: Sat, 07 Dec 2019 07:53 AM (IST)
ब्रेस्ट कैंसर से ना हो परेशान, वैज्ञानिकों ने ईजाद की दवा
ब्रेस्ट कैंसर से ना हो परेशान, वैज्ञानिकों ने ईजाद की दवा

हरीश शर्मा [अमृतसर]। गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी (जीएनडीयू) के एमर्जिग लाइफ साइंस विभाग ने 12 साल की रिसर्च के बाद ब्रेस्ट कैंसर को मात देने वाली दवाई तैयार की है। इसका चूहों पर प्रयोग सफल रहा है। अब दो तरह का कंपाउंड (दवा तैयार करने का मटीरियल व फार्मूला) अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर को भेजा गया है। अमेरिकी संस्थान ने इस पर मोहर लगा दी है। अब इसका मानव शरीर पर परीक्षण करने के लिए रिसर्च शुरू कर दी है।

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जीएनडीयू के एमर्जिग लाइफ साइंस विभाग के इंचार्ज प्रो. पलविंदर सिंह ने बताया कि यह रिसर्च 2006 में शुरू हुई थी। करीब पांच साल तक ब्रेस्ट कैंसर से पीडि़त अलग-अलग महिलाओं के केस स्टडी किए गए और उनमें कैंसर के कारणों का डाटा इकट्ठा किया। फिर चूहों में उसी तरह की बीमारी के ट्यूमर तैयार कर प्रयोग शुरू किए। सैकड़ों बाहर असफलता हाथ लगी। 2018 में करीब 12 साल की मेहनत रंग लाई और दो तरह की दवाई तैयार की। इसका चूहों पर परीक्षण किया। परिणाम अच्छा आया और चूहों से बीमारी खत्म होने लगी। फिर अमेरिकी इंस्टीट्यूट को दवाई तैयार करने का मटीरियल और फार्मूला भेजा गया। अमेरिकी इंस्टीट्यूट ने भी इस पर मोहर लगा दी है। अब दवा का मानव शरीर पर टेस्ट करने के लिए रिसर्च कर रहा है, ताकि कैंसर को खत्म किया जा सके।

भारत होगा दुनिया का पहला देश

अमेरिकी इंस्टीट्यूट अपनी रिपोर्ट जीएनडीयू के साथ साझा करेगा। अगर मनुष्य पर भी टेस्ट सफल रहा तो भारत दुनिया का पहला देश बन जाएगा, जिसने ब्रेस्ट कैंसर की दवाई की सबसे पहले खोज की।

पांच-पांच चूहों के कई ग्रुप बनाकर किया प्रयोग

प्रो. पलविंदर सिंह ने बताया कि मानव शरीर में प्रोटीन की मात्रा कम होने या बढ़ने से कई ऐसे स्टेज हैं, जिससे ब्रेस्ट कैंसर का जीवाणु पैदा होने लगता है। उन सभी कारणों को लेकर मटीरियल तैयार किया गया था। बाद में पांच-पांच चूहों के कई ग्रुप बनाकर प्रयोग शुरू किए। इसमें धीरे-धीरे सफलता मिलती गई।

जीएनडीयू ने दोनों कंपाउंड पेटेंट के लिए भेजे

जीएनडीयू की टीम ने लंबी रिसर्च के बाद यह कंपाउंड तैयार किया है, इसलिए इसका पेटेंट करवाया जा रहा है। कंपाउंड पेटेंट के लिए भेजे गए हैं। इससे कोई दूसरा देश या इंस्टीट्यूट इस पर अपना दावा नहीं कर सकेगा।


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