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Kerala Elephant Cruelty: भारतीय संविधान और कानून में पशुओं की हिफाजत के लिए ये है 15 बिंदु

Kerala Elephant Cruelty भारत में जहां हर जीव को ईश्वर के साथ जोड़कर देखा जाता है वहां सिर्फ शरारतवश किए गए कुकृत्य ने हथिनी और उसके गर्भस्थ शिशु को मौत के घाट उतार दिया।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 05 Jun 2020 09:00 AM (IST)Updated: Fri, 05 Jun 2020 11:42 AM (IST)
Kerala Elephant Cruelty: भारतीय संविधान और कानून में पशुओं की हिफाजत के लिए ये है 15 बिंदु
Kerala Elephant Cruelty: भारतीय संविधान और कानून में पशुओं की हिफाजत के लिए ये है 15 बिंदु

आरती तिवारी। Kerala Elephant Cruelty प्रकृति के साथ किए अन्याय का प्रतिफल बताया जा रहा कोरोना संक्रमण कहीं न कहीं यह उम्मीद लेकर आया कि शायद अब मानवता जीवनदायी प्रकृति और इसके सभी हिस्सेदारों के प्रति कृतज्ञ रहेगी। इसके उत्थान और सम्मान के लिए जागरूक होगी लेकिन बीते दिनों केरल में जो मामला सामने आया उससे मानवता एक बार फिर शर्मसार हो गई। भारत जैसे देश में, जहां हर जीव को ईश्वर के साथ जोड़कर देखा जाता है, वहां सिर्फ शरारतवश किए गए कुकृत्य ने हथिनी और उसके गर्भस्थ शिशु को मौत के घाट उतार दिया।

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जख्म से ज्यादा विश्वासघात का दर्द

सबसे ज्यादा शिक्षित दर वाले राज्य केरल में बीते सप्ताह लगातार तीन दिन से नदी में खड़ी हथिनी ने सभी का ध्यान खींचा। हथिनी के घायल होने की ये घटना लोगों की नजर में तब आई जब रेपिड रिस्पांस टीम के वन अधिकारी मोहन कृष्णनन ने फेसबुक पर इसके बारे में भावुक पोस्ट लिखी। उनकी पोस्ट के अनुसार, खाने की तलाश में जंगल से भटकते हुए मादा हाथी पास के गांव में पहुंची। यह देख कुछ लोगों ने उसे अन्नानास में भरे पटाखे खिला दिए। पटाखे उसके मुंह में फट गए जिससे मुंह और जीभ बुरी तरह से जख्मी हो गए। घायल हथिनी गांव से भागते हुए निकली फिर भी उसने किसी को चोट नहीं पहुंचाई।

वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, हथिनी की उम्र 14-15 साल रही होगी। घायल होने के बाद वो इतनी पीड़ा में थी कि तीन दिन तक वेलियार नदी में खड़ी रही जिसके चलते उस तक चिकित्सीय मदद पहुंचाने के सभी प्रयास नाकाम रहे। वन विभाग ने दो हाथियों की मदद से हथिनी को नदी से बाहर निकालने के प्रयास किए लेकिन मानवता का जो रूप वह पहले अनुभव कर चुकी थी, उस विश्वासघात के चलते वह टस से मस नहीं हुई। दर्द के कारण वह कुछ खा नहीं पाई और बाद में उसने दम तोड़ दिया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद यह बात सामने आई कि वह गर्भवती थी। विस्फोट के कारण उसके पूरे जबड़े को दोनों तरफ गंभीर चोट पहुंची थी और उसके दांत भी टूट गए थे।

उनके भी हैं अधिकार

इस घटना में अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कर ली गई है। दोषियों की पड़ताल जारी है। फिर भी हमें समझना होगा कि इस प्रकार जानवरों के साथ की गई हरकत को किस तरह रोका जाए। हालांकि जानवरों पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1972 में भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम पारित किया था। भारतीय दंड संहिता की धारा 428 और 429 के तहत जानवर को जहर देने, जान से मारने, निरुपयोगी करने की चेष्टा करने के लिए दो साल तक की सजा और जुर्माना या दोनों का प्रावधान है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51(ए) के मुताबिक, हर जीवित प्राणी के प्रति सहानुभूति रखना भारत के हर नागरिक का मूल कर्तव्य है। जीव-जंतु अपने अधिकारों के लिए लड़ नहीं सकते। ऐसे में यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इनके लिए आवाज उठाएं। अगर नियम अपने लिए हैं तो फिर इनके लिए भी तो हैं जिनका पालन करना हमारा कर्तव्य है।

भूल जाते हैं नैतिकता

बचपन में हम सभी पढ़ते हैं जानवरों को सताना बुरी बात होती है लेकिन बड़े होकर हम इस चीज को महत्व नहीं देते। कभी खुद ही इस तरह की शरारत का हिस्सा होते हैं या बच्चों को ऐसा करते देख हंसते रहते हैं या उन्हें इस बात के लिए न रोकने पर कहीं न कहीं प्रोत्साहित करते रहते हैं। जबकि इस तरह की छोटी-छोटी आदतें हैं जो इंसानों को बड़े सबक देने के लिए काफी होती हैं। इन्हें हम सभी ने बचपन में किताबों में बखूबी पढ़ा है मगर जिस वक्त इन बातों को अमल में लाने की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, व्यस्क होते ही हम इन्हें भूल जाते हैं। सिर्फ किताबों ही नहीं प्रत्येक धर्म व ग्रंथों में जानवरों के प्रति करुणा के ढेरों सबक मौजूद हैं। जिस देश में हाथी को ईश्वर के वाहन या प्रतिरूप की तरह देखा जाता है। ...और तो और केरल में हुए अपने ही राजकीय पशु के साथ इस तरह का व्यवहार अत्यंत निंदनीय है। साथ ही सोच में डालने वाला है कि आखिर इंसान कब अपने कृत्यों से सबक लेगा!

15 बिंदु भारतीय संविधान और कानून में पशुओं की हिफाजत के लिए...

1. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51(ए) के मुताबिक, हर जीवित प्राणी के प्रति सहानुभूति रखना भारत के हर नागरिक का मूल कर्तव्य है।

2. भारतीय दंड संहिता की धारा 428 और 429 के मुताबिक कोई भी व्यक्ति किसी जानवर को पीटेगा, ठोकर मारेगा, उस पर अत्यधिक सवारी और बोझ लादेगा, उसे यातना देगा कोई ऐसा काम करेगा जिससे उसे दर्द हो, दंडनीय अपराध है।

3. पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के पास जानवरों पर अनावश्यक दर्द या पीड़ा रोकने के लिए और पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम के लिए पशु क्रूरता निवारण (पीसीए) अधिनियम, 1960 लागू करने का अधिकार है।

4. पशु क्रूरता निवारण अधिनियम में इस बात का उल्लेख है कि कोई भी पशु (मुर्गी समेत) सिर्फ बूचडख़ाने में ही काटा जाएगा। बीमार और गर्भधारण कर चुके पशु को मारा नहीं जाएगा। अगर कोई व्यक्ति किसी पशु को आवारा छोड़कर जाता है तो उसको तीन महीने की सजा हो सकती है।

5. बंदरों से नुमाइश करवाना या उन्हें कैद में रखना गैरकानूनी है। वाइल्डलाइफ एक्ट के तहत बंदरों को कानूनी सुरक्षा दी गई है।

6. अगर किसी क्षेत्र में कुत्तों की संख्या ज्यादा है तो कोई भी व्यक्ति या स्थानीय प्रशासन पशु कल्याण संस्था के सहयोग से आवारा कुत्तों का बर्थ कंट्रोल ऑपरेशन कर सकती है, लेकिन मार नहीं सकता क्योंकि उन्हें मारना गैरकानूनी है।

7. पशुओं को लडऩे के लिए भड़काना, ऐसी लड़ाई का आयोजन करना या उसमें हिस्सा लेना संज्ञेय अपराध है।

8. चिडिय़ाघर और उसके परिसर में जानवरों को चिढ़ाना, खाना देना या तंग करना दंडनीय अपराध है। पीसीए के तहत ऐसा करने वाले को तीन साल की सजा, 25 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। पशुओं को असुविधा में रखकर, दर्द पहुंचाकर या परेशान करते हुए किसी भी गाड़ी में एक जगह से दूसरी जगह ले जाना मोटर व्हीकल एक्ट और पीसीए एक्ट के तहत दंडनीय अपराध है।

9. पीसीए एक्ट के सेक्शन 22(2) के मुताबिक भालू, बंदर, बाघ, तेंदुए, शेर और बैल को मनोरंजन के लिए ट्रेंड करना और इस्तेमाल करना गैरकानूनी है। पक्षी या सरीसृप के अंडों को नष्ट करना या उनसे छेड़छाड़ करना या फिर उनके घोंसले वाले पेड़ को काटना या काटने की कोशिश करना शिकार कहलाएगा। इसके दोषी को सात साल की सजा या 25 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। किसी भी जंगली जानवर को पकडऩा, मारना दंडनीय अपराध है। इसके दोषी को सात साल की सजा या 25 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं

10. प्रिवेंशन ऑन क्रूशियल एनिमल एक्ट 1960 की धारा 11 (1) कहती है कि पालतू जानवर को छोडऩे, उसे भूखा रखने, कष्ट पहुंचाने, भूख और प्यास से जानवर के मरने पर आपके खिलाफ केस दर्ज हो सकता है।

11. भारतीय दंड संहिता की धारा 428 और 429 के तहत अगर किसी ने जानवर को जहर दिया, जान से मारा, कष्ट दिया तो उसे दो साल तक की सजा हो सकती है।

12. भारत सरकार के एनिमल बर्थ कंट्रोल रूल 2001 की धारा 38 के अनुसार किसी पालतू कुत्ते को स्थानांतरित करने के लिए चाहिए कि उसकी उम्र चार माह पूरी हो चुकी हो। इसके पहले उसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना अपराध है।

13. प्रिवेंशन ऑन क्रूशियल एनिमल एक्ट 1960 की धारा 11 (1) के तहत अगर किसी गोशाला, कांजीहाउस, किसी के घर में जानवर या उसके बच्चे को खाना और पानी नहीं दिया जा रहा तो यह अपराध है। जानवरों को लंबे समय तक लोहे की जंजीर या फिर भारी रस्सी से बांधकर रखना अपराध की श्रेणी में आता है। अगर आप जानवर को घर के बाहर नहीं निकालते तो यह भी कैद माना जाता है। ऐसे अपराध में तीन माह की जेल और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

14. जानवरों पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए भारत सरकार ने 1972 में भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम पारित किया था। इसका मकसद वन्य जीवों के अवैध शिकार, मांस और खाल के व्यापार पर रोक लगाना था। इसमें 2003 में संशोधन किया गया। इसमें दंड और जुर्माना को और भी कठोर कर दिया गया है।

15. ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक रूल्स 1945 के मुताबिक जानवरों पर कॉस्मेटिक्स का परीक्षण करना और जानवरों पर टेस्ट किये जा चुके कॉस्मेटिक्स का आयात करना प्रतिबंधित है।


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