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पीएमओ तक पहुंची वंदे भारत के विवाद की आंच, टेंडर में गड़बड़ी की फाइलें तलब

रेलवे बोर्ड के अतिरिक्त सदस्य की अध्यक्षता वाली समिति ने भी वंदे भारत की मौजूदा रेक में अनेक खामियां पाई हैं]

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Mon, 09 Dec 2019 08:04 PM (IST)Updated: Mon, 09 Dec 2019 08:04 PM (IST)
पीएमओ तक पहुंची वंदे भारत के विवाद की आंच, टेंडर में गड़बड़ी की फाइलें तलब
पीएमओ तक पहुंची वंदे भारत के विवाद की आंच, टेंडर में गड़बड़ी की फाइलें तलब

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। वंदे भारत से जुड़े विवादों की आंच पीएमओ तक पहुंच गई है। पहली वंदे भारत के निर्माण से जुड़े नौ अफसरों के खिलाफ विजिलेंस जांच के कारण अगली ट्रेनों के निर्माण में हो रहे विलंब से नाराज पीएमओ ने रेलवे बोर्ड से पूरे मामले की फाइलें तलब कर ली हैं।

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आइसीएफ के अफसरों ने की नियमों की अनदेखी

बोर्ड के अधिकारियों को भरोसा है कि फाइलें देखने पर पीएमओ को भरोसा हो जाएगा कि आइसीएफ के अफसरों ने वंदे भारत ही नहीं, बल्कि ईएमयू और मेमू की खरीद में भी नियमों की अनदेखी की। परिणामत: पहली वंदे भारत में कई खामियां देखने को मिलीं। जांच में सच्चाई सामने आने से अगली ट्रेनों को विश्वस्तरीय बनाने में मदद मिलेगी।

पहली वंदे भारत का निर्माण चेन्नई की इंटीग्रल कोच फैक्ट्री आइसीएफ ने किया था। परंतु इसमें शुरू में ही कई खामियां देखने को मिलीं, जिससे बोर्ड की बड़ी किरकिरी हुई। बोर्ड का कहना है कि दरअसल एक ही कंपनी मेधा को ट्रेन के अधिकांश उपस्करों की आपूर्ति का ठेका देने के कारण ये स्थिति पैदा हुई। दूसरी कंपनियों ने टेंडर के वक्त ही इस ओर इशारा किया था और औद्योगिक संव‌र्द्धन विभाग (डीआइपीपी) से इसकी शिकायत की थी।

रेलवे बोर्ड के दिशानिर्देश ताक पर

डीआइपीपी के कहने पर ही रेलवे बोर्ड ने मामले की विजिलेंस जांच शुरू कराई। साथ ही अतिरिक्त सदस्य की अध्यक्षता में गठित कमेटी से वंदे भारत की खामियों का पता लगाने को कहा। अब तक की विजिलेंस जांच से पता चला है कि आइसीएफ के अधिकारियों ने न केवल वंदे भारत, बल्कि उससे पहले ईएमयू और मेमू के उपकरणों की खरीद में भी रेलवे बोर्ड द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों को ताक पर रखा था। इसकी शुरुआत दिसंबर, 2016 में ही हो गई थी। तबसे लेकर अगस्त, 2017 तक आइसीएफ ने ईएमयू मेमू की आपूर्ति के लिए चार बार टेंडर आमंत्रित किए।

चीनी फर्म झुझोऊ, सरकारी कंपनी बीएचईएल और बीईएमएल की हुई उपेक्षा

इन सबमें पात्रता की ऐसी शर्ते रखी गई कि जिससे दो बार मेधा और दो बार बंबार्डियर को अनुबंध प्राप्त हुए। जबकि कम बोली के बावजूद अन्य फर्मो जिनमें चीनी फर्म झुझोऊ के अलावा सरकारी कंपनी बीएचईएल और बीईएमएल भी शामिल थीं, की उपेक्षा की गई। उदाहरण के लिए एक टेंडर में ये शर्त रखी गई कि बिडर के पास आइसीएफ के निकट अपना गोदाम होना चाहिए। जबकि इस प्रकार का गोदाम सिर्फ मेधा के पास था।

उपस्करों की खरीद के सर्वाधिक आर्डर मेधा को मिले

दिसंबर, 2016 से लेकर नवंबर, 2018 तक आइसीएफ ने कुल 3854 करोड़ रुपये के उपस्करों की खरीद के आर्डर दिए। इनमें 2262 करोड़ (59 फीसद) के आर्डर अकेले मेधा को मिले। जबकि बंबार्डियर को 816 करोड़, बीएचईएल को 565 करोड़, सीजी पावर को 98 करोड़, टीटागढ़ को 74 करोड़ तथा सीएएफ को मात्र 40 करोड़ रुपये के आर्डर प्राप्त हुए।

सिंगल टेंडर को ही फाइनल कर दिया

फरवरी, 2018 में आइसीएफ ने अपनी अधिकार सीमा से बाहर जाकर वंदे भारत के प्रॉपल्शन सिस्टम की आपूर्ति के लिए टेंडर मांगे और जल्दबाजी में सिंगल टेंडर को ही फाइनल कर दिया। न तो आरडीएसओ के मानकों का पालन किया गया और न ही रेक की आपूर्ति के बाद आरडीएसओ से जांच कराई गई। यहां तक कि आपूर्ति में विलंब के बावजूद कंपनी पर पेनाल्टी लगाना भी जरूरी नहीं समझा गया।

वंदे भारत की मौजूदा रेक में अनेक खामियां

रेलवे बोर्ड के अतिरिक्त सदस्य की अध्यक्षता वाली समिति ने भी वंदे भारत की मौजूदा रेक में अनेक खामियां पाई हैं। समिति के अनुसार वंदे भारत में प्रयुक्त बोगी मेनलाइन के बजाय केवल ईएमयू के लिए उपयुक्त है। इसकी राइडिंग क्वालिटी आरडीएसओ के मानकों पर खरी नहीं उतरती। इसके ऑटोमैटिक दरवाजों और ब्रेक सिस्टम में शुरू में जो खराबी देखने को मिली उसका कारण मानकों के बगैर इनकी आपूर्ति थी।


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