JLF 2020: मीडिया पर हुई चर्चा, पीएम को कोई भी अपशब्द कह रहा है और कितनी चाहिए आजादी
सोशल मीडिया व मुख्य धारा के मीडिया को लेकर चर्चा में कहा गया कि सोशल मीडिया अराजक हो गया है क्योंकि इस पर गलत जानकारियां और अफवाहें चल रही हैं।
जयपुर, जेएनएन। यह झूठ है कि वर्तमान दौर में आम जनता या मीडिया की आजादी छीनी जा रही है। आज कोई भी मुंह उठाकर सीधे प्रधानमंत्री को अपशब्द कह देता है और इसे अभिव्यक्ति की आजादी बताने लगता है। यह आजादी नहीं है तो फिर क्या है! सच तो यह है कि मीडिया हो चाहे आम जनता, जितनी आजादी इस दौर में सबको मिली हुई है, उतनी पहले कभी नहीं मिली। जिन्हें आजादी महसूस नहीं होती, वे आपातकाल का दौर याद कर लें, जब प्रेस, विपक्षी नेता, कलाकार से लेकर जनता तक को कुछ भी कह सकने की स्वतंत्रता नहीं थी। बोलते ही जेल में डाल दिया जाता था, इसलिए सबको इस आजादी का सम्मान करना सीखना होगा।
यह बात जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में सोमवार को आयोजित सत्र 'चौथा स्तंभ: द फोर्थ एस्टेट' में कही गई। सत्र में वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी, दैनिक जागरण के एसोसिएट एडिटर अनंत विजय, पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर और अतुल चौरसिया ने मॉडरेटर अनु सिंह चौधरी से बातचीत की।
सत्र में मीडिया के दक्षिण और वामपंथ के खेमे में बंट जाने पर गरमागरम बहस हुई। थानवी ने कहा- 'आज का मीडिया गोदी मीडिया हो गया है।' प्रत्युत्तर में हितेश शंकर और अनंत विजय ने इसका जोरदार खंडन करते हुए कहा- 'मोदी को अपशब्द कह देने से मीडिया की दुकान चलती है। इसलिए कुछ खास एजेंडे वाला मीडिया दिनभर मोदी को कोसता रहता है। सच तो यह है कि इसके बिना उनका काम ही नहीं चल पाता।'
थानवी ने दी गलत जानकारी
सत्र में थानवी ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि '2014 के बाद से चैनल रिपब्लिक के अलावा किसी नए चैनल को लाइसेंस नहीं दिया गया। यह मीडिया का गला घोंटने जैसा है।' इस पर हितेश शंकर ने तर्क के जरिये साबित किया कि थानवी झूठ बोल रहे हैं। शंकर ने बताया कि मोदी सरकार के दौरान चार नए न्यूज चैनल, 16 मनोरंजन चैनल के लाइसेंस दिए गए हैं।
सोशल मीडिया सच सामने ला रहा
सोशल मीडिया व मुख्य धारा के मीडिया को लेकर चर्चा में कहा गया कि 'सोशल मीडिया अराजक हो गया है, क्योंकि इस पर गलत जानकारियां और अफवाहें चल रही हैं।' इसके जवाब में अनंत विजय और हितेश शंकर ने तर्क देते हुए प्रतिकार किया कि 'कल तक मीडिया की ताकत कुछ चंद लोगों के हाथ में थी, किंतु आज हर हाथ में मोबाइल है और हर व्यक्ति रिपोर्टर या संपादक है। पहले मीडिया खास विचारधारा के समर्थन में एजेंडा चलाता था, लेकिन अब संभव नहीं, क्योंकि सोशल मीडिया ने हर व्यक्ति को सच बताना शुरू कर दिया है। इसलिए बरसों से मीडिया में पांव जमाकर अपना एजेंडा चला रहे लोगों के पांव उखड़ रहे हैं, इसलिए वे सोशल मीडिया को अराजक बता रहे हैं।' यह इशारा वामपंथ का एजेंडा चलाने वाले मीडिया की ओर था।