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छह वर्ष के अथक प्रयास से खोज डाली हड़प्पा काल की संगीत शैली

4000 साल पुराने वाद्य यंत्रों की खोज, 40 यंत्रों की तलाश कर चुके हैं म्यूजिक कंपोजर शैल व्यास, 14 यंत्र पुनर्जीवित किए जा चुके...

By Srishti VermaEdited By: Published: Tue, 19 Sep 2017 09:38 AM (IST)Updated: Tue, 19 Sep 2017 09:38 AM (IST)
छह वर्ष के अथक प्रयास से खोज डाली हड़प्पा काल की संगीत शैली
छह वर्ष के अथक प्रयास से खोज डाली हड़प्पा काल की संगीत शैली

नई दिल्ली (मनु त्यागी)। महफिल सजी है। संगीत का माहौल है। राजा दरबार में नर्तकी की हर अदा पर मुग्ध है, तो प्रजा दरबार के बाहर ही उस महफिल की कल्पनाशील अनुभूति से रोमांचित है, गुदगुदा रही है, फुसफुसा रही है। राजा और दरबारी, आंखें मूंदे डूबे हैं मन मोहित कर देने वाले वाद्य यंत्रों की धुनों में। कुछ ऐसे ही दृश्य रहे होंगे न जब हड़प्पा काल में संगीत की महफिल सजती होगी। हमें भी इसी चार हजार साल पुराने दृश्यों के फ्लैशबैक में ले जाती है म्यूजिक कंपोजर शैल व्यास की खोज।

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अतीत का यह संगीत खोलता है हड़प्पा काल के रहस्यों को। उस वक्त के माहौल को। जबराजा-प्रजा आमजन भी ऐसे ही संगीत काशौक रखते रहे होंगे। छह बरस के अथक खोजपूर्ण अभियान में शैल कई विशेषज्ञों के सहयोग से 40 वाद्य यंत्रों की पहचान कर चुके हैं। उनमें से 14 को पुनर्जीवित भी कर चुके हैं। संगीत की दुनिया के सरताज संगीतज्ञों से प्रशंसा हासिल कर चुके शैल के इस प्रोजेक्ट को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सराहा भी है और सहयोग के लिए आश्वस्त भी किया है।

यूं शुरू हुआ सफर
अब तक यामाहा, आइसीआइसीआइ जैसी कई बड़ी कंपनियों के विज्ञापन का म्यूजिक कंपोज कर चुके शैल को खोजी दुनिया का खासा शौक रहा है। शैल बताते हैं कि मैं एक दिन कहानी पढ़ रहा था। यह कहानी 300 बीसी की रही होगी। जिसमें एक राजा के समक्ष संगीतज्ञ गायन कर रहा था। उसके हाथ में एक वाद्ययंत्र था, जिसे देखकर मैंने सोचा कि पहले कैसे वाद्ययंत्र रहे होंगे जिनसे मधुर संगीत निकलता होगा? यहीं से मेरा हजारों वर्ष पुराने संगीत की तलाश का सफर शुरू हो गया।

संगीत को संजोया ही नहीं
वर्ष 2011 में जब मैं संगीत के शोध सफर पर निकला तो पता चला कि देश में करीब 800 से 1000 साल तक के वाद्ययंत्र की ही जानकारी है। पुरातत्व विभाग को भी कभी खोदाई में संगीत यंत्र नहीं मिले। संगीत के रहस्य में जितना आगे बढ़ा तो पुरातत्व विशेषज्ञों से यही पता चला कि वाद्य यंत्र लकड़ी या फिर ऐसी धातु के बने होते थे जिनका हजारों साल तक जीवित रहना मुश्किल होता होगा।

तैयार की एडवाइजरी
शैल बताते हैं कि चूंकि मैं एक बड़े संगीत की दुनिया में ऐसे सफर पर निकला था जिस पर कभी काम ही नहीं हुआ तो मुझे ऐसे विशेषज्ञों की भी जरूरत थी जो इस शोध में सहयोग कर सकें। इसके लिए भारतीय पुरातत्व विभाग के ज्वाइंट डायरेक्टर जनरल डॉ. आरएस बिष्ट, नेशनल म्यूजियम के पूर्व डायरेक्टर जनरल डॉ. बीआर मणि सहित संगीत दुनिया के विशेषज्ञों के साथ दस लोगों की टीम बनाई।

सांग्स ऑफ मिस्ट्री बनी मिसाल
शैल का सबसे हिट म्यूजिक वीडियो ‘सांग्स ऑफ मिस्ट्री’ रहा। तीन मिनट के इस वीडियो में हड़प्पा काल पुनर्जीवित किए गए सभी यंत्रों का इस्तेमाल किया गया है। यह वीडियो संगीत प्रेमियों के बीच बहुत पसंद किया जा रहा है। इस वीडियो को देखकर यह भी एहसास होगा कि हजारों साल पुराने ये यंत्र आज के यंत्रों के साथ ऐसे घुलमिल गए हैं, मानों संगीत की संपूर्णता के लिए इन्हीं यंत्रों की तलाश थी। म्यूजिक इंडस्ट्री में शंकर महादेवन और पंडित रोनू मजूमदार जैसे संगीतज्ञ भी शैल के कार्यों की सराहना कर चुके हैं।

पुनर्जीवित हो चुके यंत्र वीणा
यह नंदी (बैल) की आकृति जैसा यंत्र है। पुरातत्व विभाग द्वारा जुटाई गई सील में इसके प्रमाण मिलते हैं। आज के संगीत यंत्रों में इस तरह का कोई यंत्र नहीं है। हड़प्पा काल के इस संगीत यंत्र में नंदी
के सिर वाला हिस्सा सोने का होता था।

कुंभ तरंगिणी
यह धातु के पात्र का है। पुरातत्व विभाग के पास यह यंत्र मिलता है, लेकिन उन्हें इसके इस्तेमाल के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। इस पात्र को अकेले भी बजाया जा सकता है या फिर तीन-चार पात्र एक साथ स्टैंड पर लगाकर भी बजाए जा सकते हैं। इस तरह का यंत्र के आज नहीं पाए जाते।

बांसुरी
यह सबसे पुराने वाद्य यंत्रों में से एक है। चार-पांच हजार साल पहले भी संगीतज्ञ बांसुरी का इस्तेमाल करते
रहे हैं। चीन में तो 9000 हजार साल पुरानी बांसुरी के भी प्रमाण मिलते हैं और सबसे खास बात यह है कि यह यंत्र हमेशा ही आज जैसी आकृति में ही रहा है।

अनवद्य वाद्य
यह लंबा और चौड़ा आज के भारतीय संगीत यंत्र ढोल जैसी आकृति का ही होता है। डफली, नगाड़ा इसी से मिलते जुलते यंत्र माने जा सकते हैं।

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