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मुख्य न्यायाधीश का दफ्तर आरटीआइ में लाने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता होगी प्रभावित

वेणुगोपाल ने हाईकोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति की आजादी दी गई है लेकिन अनुच्छेद 19(2) के तहत इस पर तर्कसंगत नियंत्रण लगाया जा सकता है।

By Prateek KumarEdited By: Published: Wed, 03 Apr 2019 11:01 PM (IST)Updated: Wed, 03 Apr 2019 11:01 PM (IST)
मुख्य न्यायाधीश का दफ्तर आरटीआइ में लाने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता होगी प्रभावित
मुख्य न्यायाधीश का दफ्तर आरटीआइ में लाने से न्यायपालिका की स्वतंत्रता होगी प्रभावित

नई दिल्ली[जागरण ब्यूरो]। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के दफ्तर में सूचना कानून लागू करने और सूचनाएं देने के हाईकोर्ट और केन्द्रीय सूचना आयोग (सीआइसी) के फैसलों का विरोध करते हुए बुधवार को अटार्नी जनरल वेणुगोपाल ने कहा कि इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है। स्वतंत्र न्यायपालिका संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि कोलीजियम के फैसले और सिफारिशों की जानकारी व अन्य सूचनाएं सार्वजनिक करना जनहित में नहीं है।

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अटार्नी जनरल ने ये दलीलें पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ में सीजेआइ के दफ्तर को आरटीआइ के दायरे में लाने के मुद्दे पर शुरू हुई बहस के दौरान सुप्रीम कोर्ट प्रशासन की ओर से पक्ष रखते हुए दीं। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने बुधवार से इस मामले पर सुनवाई शुरू की।

वेणुगोपाल ने हाईकोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए कहा कि अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति की आजादी दी गई है लेकिन अनुच्छेद 19(2) के तहत इस पर तर्कसंगत नियंत्रण लगाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि आरटीआई कानून में भी ऐसी सूचनाएं सार्वजनिक न करने की छूट दी गई है।

उन्होंने कहा कि अगर कोलीजियम के फैसले आरटीआइ में सार्वजनिक किये जाएंगे तो उससे प्रत्येक जज की नियुक्ति और प्रोन्नति पब्लिक डिबेट बन जाएगी जो कि न्यायपालिका संस्था के लिए अच्छा नहीं होगा। कोई भी सूचना जनहित को ध्यान में रखकर सार्वजनिक की जा सकती है लेकिन यह बताना कि कोलीजियम ने क्यों वरिष्ठ न्यायाधीशों की अनदेखी कर कनिष्ठ न्यायाधीशों की प्रोन्नति की सिफारिश की है, जैसा की आरटीआई में सूचना मांगी गई थी, को सार्वजनिक करना जनहित का मुद्दा नहीं है।

ऐसी सूचना सार्वजनिक नहीं की जा सकती। ऐसा होने से कोलीजियम स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर पायेगी। इस सूचना के सार्वजनिक होने से किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा और कैरियर पर भी असर पड़ेगा। न्यायाधीशों की संपत्ति घोषणा को सार्वजनिक करने के मुद्दे पर भी उन्होंने कहा कि यह न्यायाधीशों की निजता से जुड़ा मुद्दा है।

पीठ ने वेणुगोपाल से कहा कि कोर्ट के सामने विचार का वृह्द सवाल यह है कि क्या ऐसी सूचनाएं सार्वजनिक करने से न्यायपालिका की स्वायत्ता प्रभावित होगी। अगर आप यह कह रहे हैं कि सूचना कानून में ऐसी सूचनाएं न देने के प्रावधान दिये गए हैं तो उन प्रावधानों के साथ उस प्रावधान को भी देखा जाना चाहिए जो सूचना सार्वजनिक करने की बात करते हैं क्योंकि जिस बारे में सूचना मांगी जा रही है उसकी नियुक्ति अंतत: पब्लिक आफिस में ही होनी है।

मालूम हो कि सुप्रीमकोर्ट के सूचना विभाग ने मुख्य न्यायाधीश के दफ्तर को आरटीआइ के दायरे में बताने वाले दिल्ली हाईकोर्ट और न्यायाधीशों के स्थानांतरण और नियुक्ति का ब्योरा आरटीआई में बताने के सीआईसी के फैसले के खिलाफ अपने ही यहां यानी सुप्रीमकोर्ट में अपील दाखिल कर रखी है।

इन अपीलों पर सुनवाई करते हुए शुरू में ही कोर्ट ने हाईकोर्ट और सीआईसी के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी। सुप्रीमकोर्ट में ये अपीलें 2010 से लंबित हैं। दिल्ली हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने 12 जनवरी 2010 को दिये गये फैसले में कहा था कि मुख्य न्यायाधीश का दफ्तर सूचना कानून के दायरे में आता है।

हाईकोर्ट ने न्यायाधीशों की संपत्ति के ब्योरे से संबंधित सूचना देने का निर्देश दिया था। दूसरी अपील में सुप्रीमकोर्ट ने न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित ब्योरा सार्वजनिक करने के केन्द्रीय सूचना आयोग के फैसले को चुनौती दी है। 17 अगस्त 2016 को तीन न्यायाधीशों की पीठ ने यह मामला विचार के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेज दिया था।


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