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इन मामलों में नेहरू-पटेल का था छत्‍तीस का आंकड़ा, गुटबाजी में किसकी होती थी जय

1950 में नासिक अधिवेशन के पूर्व दोनों नेताओं के बीच मतभेद उभरा। इस अधिवेशन में अध्‍यक्षता को लेकर कृपलानी और पुरुषोत्तमदास टंडन को रस्‍साकसी चल रही थी।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Wed, 31 Oct 2018 03:52 PM (IST)Updated: Thu, 01 Nov 2018 08:03 AM (IST)
इन मामलों में नेहरू-पटेल का था छत्‍तीस का आंकड़ा, गुटबाजी में किसकी होती थी जय
इन मामलों में नेहरू-पटेल का था छत्‍तीस का आंकड़ा, गुटबाजी में किसकी होती थी जय

नई दिल्‍ली [ जागरण स्‍पेशल ]। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और उस वक्‍त के केंद्रीय गृहमंत्री सरदार बल्‍लभ भाई पटेेल के बीच वैचारिक मतभेद गांधी के निधन के बाद उजागर हो गए थे। दोनों नेताओं के बीच यह संघर्ष विचारों का था, दृष्टिकाेण का था। आजादी के बाद कांग्रेस के भीतर प्रत्‍यक्ष या अप्रत्‍यक्ष दो गुट बन चुके थे। जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनी तो ऐसे कई मौके आए जब अपनी विचारों को स्‍थापित करने के लिए ये गुट सक्रिय हो जाते थे। यह मतभेद केई मुद्दों पर हो सकते हैं, लेकिन कुछ मामलों इस गुटबाजी ने इतिहास रच दिया। आइए जानते हैं उन विरोधों के प्रमुख पड़ाव के बारे में। 

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मृत्यु के पहले पटेल ने बयां किया अपना दर्द

दुर्गादास की किताब इंडिया-फ्राम कर्जन टू नेहरू एंड आफ्टर में दोनों नेताओं के वैचारिक संघर्ष को रेखांकित किया गया है। इस पुस्‍तक में जिक्र है कि दिसंबर 1950 में अपनी मृत्यु से कुछ दिन पहले पटेल ने मुंबई में एक पत्रकार से अपनी पीड़ा का बयां करते हुए उन्‍होंने कहा था कि मैंने नेहरू से स्नेह किया, लेकिन मुझे उनका स्नेह कभी नहीं मिला। मैं चिंता करते करते धुल गया हूं, क्योंकि मैं इस बात में सफल नहीं हुआ हूं कि उन्हें आने वाले संकटों के प्रति सचेत करा सकूं। उन्हें उनके दरबारी गलत राह पर ले जा रहे हैं। मुझे भविष्य के बारे में गहरी आशंकाएं हैं।

राष्‍ट्रपति चुनाव में उभरे मतभेद

आजादी के बाद देश के प्रथम राष्‍ट्रपति का चुनाव होना था। राष्‍ट्रपति के उम्‍मीदवार को लेकर में गहमागहमी शुरू हो चुकी थी। देश की राजनीति में ही नहीं बल्कि संसद में भी कांग्रेस का दबदबा था। उम्‍मीदवार को लेकर नेहरू और पटेल गुट दोनों आमने-सामने आ गए। राष्‍ट्रपति उम्‍मीदवार के लिए नेहरू ने राजगोपालाचारी के नाम को आगे बढ़ाया तो पटेल गुट सक्रिय हो गया। कांग्रेस में विरोध न हो इसके लिए नेहरू ने एक रणनीति के तहत राजेंद्र प्रसाद से भी राजगोपालाचारी के नाम के लिए उनका समर्थन हासिल कर लिया। राजेंद्र प्रसाद इस पद के प्रबल दावेदार थे। उस वक्‍त अधिकतर कांग्रेसी उनके पक्ष में थे। लेकिन बाद में जिस तरह का सियासी माहौल बना कि‍ यह बाजी राजेंद्र प्रसाद के पक्ष में पलट गई। राजेंद्र प्रसाद राष्‍ट्रपति के उम्‍मीदवार बने और इसे प्रत्‍यक्ष-अप्रत्‍यक्ष पटेल गुट की जीत के रूप में देखा गया। यही कारण है कि राष्‍ट्रपति के रूप में राजेंद्र और नेहरू के बीच कई बार मतभेद उभरे। इस मतभेद में कहीं न कहीं यह बात हो सकती है।

कृपलानी और टंडन को लेकर उपजा विवाद

1950 में नासिक अधिवेशन के पूर्व दोनों नेताओं के बीच मतभेद उभरा। इस अधिवेशन में अध्‍यक्षता को लेकर कृपलानी और पुरुषोत्तमदास टंडन को रस्‍साकसी चल रही थी। पुरुषोत्तमदास की निकटता पेटल से थी तो कृपलानी को नेहरू का आर्शीवाद प्राप्‍त था। अध्‍यक्ष पद के लिए हुए चुनाव में कृपलानी की हार हुई। लेकिन कांग्रेस में बहुत विचित्र स्थिति उत्‍पन्‍न हो गई। संगठन में कटुता चरम पर थी। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है टंडन ने नेहरू के खास किदवई को कार्रकारिणी का सदस्‍य नियुक्‍त करने से इंकार कर दिया। इसके चलते संगठन में दो गुटों की बीच उपजा यह विवाद उत्‍तजेनापूर्ण रहा।

राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू की इच्‍छा के विपरीत किया ये कार्य

पटेल के निधन के बाद भी गुटबाजी का दौर जारी रहा। दरअसल, पटेल के निधन के बाद नेहरू की इच्‍छा थी राष्‍ट्रपति राजेंद्र प्रसाद उनके संस्‍कार में हिस्‍सा नहीं लें। इस बाबत नेहरू का तर्क था कि राष्‍ट्र प्रमुख का एक मंत्री के अंतिम संस्‍कार में भाग नहीं लेना चाहिए। लेकिन राजेंद्र प्रसाद ने उनकी इच्‍छा के विपरीत जाकर पटेल के अंतिम संस्‍कार में शामिल हुए। 


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