इरान पर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के तेवर से बढ़ेगी भारत की कूटनीतिक चुनौती
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से इरान के साथ परमाणु समझौते को रद्द करने की धमकी से कूटनीतिक समस्या पैदा हो गई।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से इरान के साथ किये गये परमाणु समझौते को रद्द करने की धमकी से दुनिया में एक नई कूटनीतिक समस्या पैदा हो जाने की स्थिति बन गई है। समझौते में अमेरिका के साथ चार अन्य देश (ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस व चीन) जहां अभी भी इरान के साथ किये गये करार के साथ हैं वही इजरायल, सउदी अरब जैसे देशों ने ट्रंप की आक्रामक नीति का जोरदार समर्थन किया है। भारत ने अभी तक आधिकारिक तौर पर इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है लेकिन सरकार अंदरखाने यह मान रही है कि उसके लिए नई कूटनीतिक चुनौती पैदा हो सकती है। खासतौर पर जिस तरह से हाल के महीनों में अमेरिका व भारत के बीच रिश्ते प्रगाढ़ हुए हैं उसे देखते हुए ट्रंप प्रशासन भारत पर इरान से रिश्तों को तोड़ने का दबाव बना सकता है।
इस बारे में पूछने पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने पिछले दिनों साफ तौर पर कोई टिप्पणी नहीं की। उन्होंने यह जरूर कहा कि ''भारत और इरान के रिश्ते काफी पुराने व ऐतिहासिक हैं और हम किसी तीसरे देश के हिसाब से अपने रिश्ते को प्रभावित नहीं करना चाहते।'' लेकिन जानकारों की मानें तो भारत की दिक्कत तब बढ़ जाएगी जब अमेरिका की तरफ से इरान पर नए प्रतिबंध लगाने की कोशिश होगी। पिछली बार जब इरान पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध आयद हुआ था तब भारत को उससे तेल लेना बंद करना पड़ा था। दूसरे कारोबार पर भी असर पड़ा था। प्रतिबंध के बाद किये गये कारोबार के भुगतान को लेकर अभी तक विवाद चल रहा है।
विदेश मंत्रालय के अधिकारी इस बात को लेकर आश्वस्त है कि इस बार इरान पर पहले की तरह कड़ा रुख अमेरिका नहीं दिखा सकेगा। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह यह है कि संयुक्त राष्ट्र के स्थाई परिषद के अन्य चार सदस्य शायद ही अमेरिका का साथ दे। भारत पर दबाव तभी बढ़ेगा जब संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में इरान पर नए प्रतिबंध लगाये जाए। इस तरह के प्रतिबंध से भारत के लिए इरान में चाबहार पोर्ट परियोजना या वहां औद्योगिक पार्क बनाने की परियोजना को आगे बढ़ाना आसान नहीं रहेगा। वैसे ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी ने ट्रंप की घोषणा की आलोचना की है और इरान के साथ किये गये समझौते के प्रति वचनबद्धता दिखाई है। इससे इरान पर यूएन की तरफ से प्रतिबंध लगने की संभावना फिलहाल नहीं दिखती।
पिछले एक दशक के दौरान भारत और इरान के रिश्तों पर नजर डाले तो साफ हो जाता है कि दोनो देश एक दूसरे को पारंपरिक मित्र देश बताते हैं लेकिन कई बार वे एक दूसरे के खिलाफ भी जाते हैं। मसलन, अमेरिकी दबाव में भारत ने इरान-पाक गैस पाइपलाइन से हाथ खींच लिया था। संयुक्त राष्ट्र में भी भारत ने इरान के खिलाफ वोटिंग कर चुका है। इरान भी कश्मीर के मुद्दे कई बार भारत के खिलाफ बयानबाजी करता रहता है। हाल ही में इरान के शीर्ष धार्मिक नेता सैयद अली खामनेई ने कश्मीर पर बेहद आपत्तिजनक बयान दिया है। क्रूड आयात पर भी दोनो देशों के बीच थोड़ा तनाव चल रहा है। सरकारी कंपनी ओएनजीसी को तेल व गैस ब्लाक देने में इरान की सरकार लगातार आनाकानी कर रही है जबकि इसका समझौता काफी पहले हो चुका है।