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'दीदी' करेंगी सरकारी ग्रामीण योजनाओं की स्कीमों की सोशल आडिट

गांव की पढ़ी लिखी महिला यानी बड़ी दीदी सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन को बिना किसी भेदभाव के देख सकती है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Wed, 13 Nov 2019 07:47 PM (IST)Updated: Wed, 13 Nov 2019 07:47 PM (IST)
'दीदी' करेंगी सरकारी ग्रामीण योजनाओं की स्कीमों की सोशल आडिट
'दीदी' करेंगी सरकारी ग्रामीण योजनाओं की स्कीमों की सोशल आडिट

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। केंद्रीय ग्रामीण योजनाओं की सोशल आडिट मानक के अनुरूप नहीं हो रही है। इनमें कई स्तरों पर ढेर सारी खामियां हैं, जिनमें सुधार लाने पर विचार किया जा रहा है। इन्हीं सुधारों में 'बड़ी दीदी' (गांव की पढ़ी लिखी महिला) पर भरोसा करने का फैसला किया गया है। इससे जहां महिला सशक्तिकरण को प्रोत्साहन मिलेगा, वहीं ग्रामीण योजनाओं पर नजर रखने में मदद मिलेगी।

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गांव की पढ़ी लिखी महिलाओं को सौंपा जाएगा दायित्व

केंद्रीय ग्रामीण विकास सचिव अमरजीत सिन्हा ने कहा 'गांव की पढ़ी लिखी महिलाएं ग्रामीण योजनाओं पर नजर के साथ सोशल आडिट के साथ लोगों की समस्याओं के समाधान के लिए नोडल पर्सन की तरह काम करेंगी। ऐसी महिलाओं को गांव में 'दीदी' (बड़ी बहन) कहा जाता है।'

अधिकतर राज्यों में सोशल आडिट संतोषजनक नहीं

राजधानी दिल्ली में ग्रामीण योजनाओं की सोशल आडिट विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया है। इसमें सभी राज्यों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया गया है। इस दौरान राज्यों की कार्यप्रणाली का ब्यौरा पेश किया गया, जिसमें ज्यादातर राज्यों में सोशल आडिट संतोषजनक नहीं पाई गई। केंद्रीय ग्रामीण राज्यमंत्री साध्वी निरंजन ज्योति ने सेमिनार को सागर मंथन करार देते हुए कहा 'इससे कुछ नये विचार आगे आएंगे, जिससे सोशल आडिट में सुधार को बल मिलेगा।'

ब्लाक स्तर पर कोई कर्मचारी नहीं

सोशल आडिट के लिए ब्लाक स्तर पर कोई कर्मचारी नहीं है, जो पंचायत व ग्राम सभा स्तर पर इसकी जानकारी दे सके। जिला स्तर के लाइन डिपार्टमेंट का शायद ही कभी आडिट किया जाता हो, जिस पर चिंता जताई गई। ग्रामीण विकास सचिव अमरजीत सिन्हा ने कहा कि सोशल आडिट का दायित्व पंचायती राज और नेशनल इंस्टीट्यूट आफ रूरल डवलपमेंट को सौंप देना चाहिए, जिसके लोग ग्रामीण क्षेत्रों में ही काम करते हैं।

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन

राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत स्वयं सहायता समूह में काम करने वाली पढ़ी लिखी महिलाओं (बड़ी दीदी) को इससे जोड़ा जा सकता है, जो योजनाओं की कड़ी निगरानी कर सकती हैं। सोशल आडिट की शुरुआत महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से हुई थी, जिसे बढ़ाकर अब प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) और प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना तक कर दिया गया है।

'बड़ी दीदी' की बड़ी जिम्मेदारी

सिन्हा ने बताया कि गांव की पढ़ी लिखी महिला यानी 'बड़ी दीदी' सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन को बिना किसी भेदभाव के देख सकती है। बुढ़ापा पेंशन मिला या नहीं, लाभार्थी को सरकारी मकान मिला या नहीं और योजनाओं में किसी तरह की लीकेज को कारगर तरीके से जांच सकती है। सिन्हा ने एक सवाल के जवाब में बताया कि इन स्कीमों की जांच परख और सोशल आडिट के लिए उसे भुगतान किये जाने का प्रावधान भी होगा।

सोशल आडिट का मानक कैग के सहयोग से तैयार

मंत्रालय ने योजनाओं के सोशल आडिट का मानक कैग के सहयोग से तैयार कराया है। ग्राम पंचायत, ब्लाक और जिला स्तरीय सोशल आडिट के लिए नियुक्त किये जाने वाले कर्मचारियों अथवा प्रतिनिधियों के अल्पकालिक प्रशिक्षण का भी बंदोबस्त किया गया है। इसका जिम्मा टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइसेंस (टिस) और नेशनल इंस्टीट्यूट आफ रूरल डवलपमेंट एंड पंचायती राज को दिया गया है।


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