बीएमसी में कांग्रेस और राकांपा को रास नहीं आ रहा शिवसेना का तानाशाही रवैया
राज्य की सत्ता में कांग्रेस राकांपा एवं शिवसेना भले साथ-साथ हों लेकिन होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों में उनका साथ रह पाना मुश्किल होगा क्योंकि शिवसेना पिछले 35 वर्षो से कांग्रेस-राकांपा के विरुद्ध ही राजनीति करती आ रही है।
राज्य ब्यूरो, मुंबई। महाराष्ट्र की सत्ता साथ-साथ संभालने वाली शिवसेना, कांग्रेस और राकांपा मुंबई महानगरपालिका में तालमेल नहीं बैठा पा रही हैं। बीएमसी में विपक्ष की भूमिका निभा रही कांग्रेस, राकांपा एवं सपा जैसे दलों को शिवसेना का तानाशाही रवैया बिल्कुल रास नहीं आ रहा है।
बीएमसी को मुख्यमंत्री के निवास से चलाए जाने का लगाया आरोप
मंगलवार को विपक्षी दलों ने बीएमसी को मुख्यमंत्री के आधिकारिक निवास वर्षा से चलाए जाने का आरोप लगाया। कहा कि मुख्यमंत्री के बंगले पर ही बीएमसी आयुक्त का एक स्थायी कार्यालय बना देना चाहिए।
कांग्रेस एक साल बाद होने वाले बीएमसी चुनाव में सभी सीटों पर लड़ेगी चुनाव
गौरतलब है कि एक दिन पहले ही कांग्रेस स्थापना दिवस समारोह के अवसर पर मुंबई कांग्रेस ने यह प्रस्ताव पारित किया है कि एक साल बाद होने वाले बीएमसी चुनाव में वह सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। कुछ दिनों पहले ही बीएमसी में नेता विपक्ष की भूमिका निभा रहे कांग्रेस नेता रवि राजा ने कहा था कि भाजपा को सत्ता से दूर रखना ही हमारा लक्ष्य है, लेकिन अब शिवसेना के रुख से दुखी राजा कहते हैं कि हम जब भी सत्तापक्ष से किसी मुद्दे पर बात करने की कोशिश करते हैं, हमसे कहा जाता है कि आदेश ऊपर से (मुख्यमंत्री आवास से) आ चुका है। वे हमसे किसी जनसमस्या पर चर्चा करना ही नहीं चाहते।
समाजवादी पार्टी भी बीएमसी में शिवसेना से खुश नहीं
राज्य की महाविकास आघाड़ी सरकार को समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी भी बीएमसी में शिवसेना से खुश नहीं है। उसके नेता रईस शेख का आरोप है कि बीएमसी आयुक्त के पास उनसे मिलने का समय नहीं है। वह हमेशा मुख्यमंत्री के बंगले पर ही रहते हैं। उनके लिए मुख्यमंत्री निवास पर ही एक कार्यालय बना देना चाहिए।
स्थानीय निकाय चुनावों में कांग्रेस, राकांपा एवं शिवसेना का साथ रह पाना मुश्किल
राज्य की सत्ता में कांग्रेस, राकांपा एवं शिवसेना भले साथ-साथ हों, लेकिन होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों में उनका साथ रह पाना मुश्किल होगा, क्योंकि शिवसेना पिछले 35 वर्षो से कांग्रेस-राकांपा के विरुद्ध ही राजनीति करती आ रही है। अब राज्य की सत्ता में इन दलों के साथ आने के बाद सबसे असहज स्थिति इन दलों के स्थानीय कार्यकर्ताओं के लिए पैदा हो गई है। कोई अपनी सीट छोड़कर दूसरे को नहीं देना चाहता। जबकि दो साल के अंदर ही राज्य के 10 बड़े स्थानीय निकायों के चुनाव होने हैं। इनमें मुंबई महानगरपालिका भी एक है। जहां 1997 तक कांग्रेस काबिज रही। उसके बाद से लगातार शिवसेना जीतती आ रही है।