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विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा...

नि:स्वार्थ प्रेम, सेवा, त्याग, बलिदान, समर्पण और सम्मान जैसे भाव और इन मूल्यों की समझ रखने वाला व्यक्ति यह पात्रता सहज हासिल कर लेता है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 10 Aug 2018 12:49 PM (IST)Updated: Fri, 10 Aug 2018 12:49 PM (IST)
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा...
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा...

शाजापुर/खरगौन [संजय राठौर]। भारतीय धर्म-संस्कृति में जननी-जन्मभूमि का पद सबसे ऊंचा, सबसे बड़ा है। स्वर्ग से भी कहीं ऊंचा और बड़ा। स्वर्ग तो किसी ने नहीं देखा पर कहते हैं मां के चरणों में होता है। सभी को नहीं मिलता। पात्रता अनिवार्य है। स्वार्थ-बेईमानी-भ्रष्टाचार-शोषण, अनैतिक आचरण सहित अन्य पापकर्मों में रत व्यक्ति इसकी पात्रता स्वत: खो देता है। नि:स्वार्थ प्रेम, सेवा, त्याग, बलिदान, समर्पण और सम्मान जैसे भाव और इन मूल्यों की समझ रखने वाला व्यक्ति यह पात्रता सहज हासिल कर लेता है।

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आज हम ऐसे दो सुपात्र भारतीयों की, मातृभूमि के प्रति उनकी समर्पित भावनाओं और इसकी सहज अभिव्यक्ति की सुंदर बानगी प्रस्तुत कर रहे हैं। आइये चलते हैं मध्यप्रदेश के शाजापुर स्थित नई सड़क की ओर। सड़क किनारे बुजुर्ग राजेंद्र कुमार वर्मा लॉंड्री की छोटी सी दुकान चलाते हैं। जहां कपड़ों की धुलाई, ड्राइक्लीनिंग और इस्त्री करते हैं। स्वतंत्रता दिवस नजदीक आते ही इनका काम थोड़ा और बढ़ गया है।

शहरभर में फहराए जाने वाले छोटे-बड़े आकार के तिरंगे राजेंद्र की लॉंड्री तक पहुंच रहे हैं। छोटी-बड़ी सरकारी इमारतों सहित निजी भवनों और रैलियों में लगाए जाने वाले तिरंगे। राजेंद्र बड़े ही सेवा भाव से इनकी हिफाजत करते हैं। धोते हैं, ड्राइक्लीन करते हैं और इस्त्री कर एकदम नया-नवेला रूप दे देते हैं। यह सेवा वे पिछले कई सालों से करते आ रहे हैं। सेवा इसलिए क्योंकि वे इसके लिए कोई शुल्क नहीं लेते। कहते हैं, अपने देश के लिए मैं क्या इतना भी नहीं कर सकता...। देश प्रेम के प्रति उनकी इस सराहनीय पहल ने उन्हें शहरभर में अलग पहचान दिला दी है।

पैसे लेने की हिम्मत नहीं पड़ी...

राजेंद्र कहते हैं, साल 1991 की बात है जब पहली बार मैंने तिरंगे झंडे की ड्रायक्लीन व इस्त्री की, इसके बदले में जब पैसे दिए गए तो मेरे जमीर ने मुझे ऐसा करने से रोक दिया। इस कार्य के पैसे लेने की हिम्मत नहीं पड़ी, लेकिन तब मुझे जो खुशी हुई उसे बयां नहीं कर सकता। इसके बाद से तो हर 15 अगस्त व 26 जनवरी को शहरभर के विभिन्न कार्यक्रमों में फहराए जाने वाले तिरंगे की ड्राइक्लीन, धुलाई व प्रेस करने का सौभाग्य मिलता आया है। बहुत खुशी मिलती है। तिरंगे के प्रति नि:स्वार्थ भाव से की गई सेवा की बदौलत राजेंद्र को साल 2016 में 15 अगस्त को प्रशासन द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है। वह कहते हैं, हर आदमी इस सम्मान का हकदार है, जो देश के लिए सच्चा जज्बा रखता है।

क्योंकि यह महज झंडा नहीं है...

अब मध्यप्रदेश के ही खरगौन स्थित जवाहर मार्ग पर मौजूद जितेंद्र वर्मा की इस्त्री की दुकान का रुख करते हैं। सड़क किनारे एक खाली प्लॉट पर छोटी सी गुमटी है। इसी से जितेंद्र का घर चलता है। शाजापुर के राजेंद्र की तरह ही जितेंद्र भी देश के प्रति जज्बे से भरे हुए हैं। वह भी तिरंगे पर इस्त्री के एवज में कोई शुल्क नहीं लेते हैं। एक या दो संस्थाओं नहीं, बल्कि कलेक्ट्रेट से लेकर अन्य कई शासकीय, अशासकीय कार्यालयों के साथ शैक्षणिक संस्थाओं में फहराए जाने वाले झंडों की समर्पित हो और पूरे सेवा भाव से हिफाजत करते हैं। वह कहते हैं, यह महज झंडा नहीं है, अनगिनत देशभक्तों के महान त्याग और बलिदान का पर्याय हमारा प्यारा तिरंगा है। इसकी सेवा करना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। जितेंद्र बताते हैं कि सन् 1960 में पिता ग्यारसीलाल वर्मा ने यह शुरुआत की थी। जितेंद्र की वृद्ध मां कहती हैं कि उन्हें खुशी है कि बेटे और पोते भी इस परंपरा को निभा रहे हैं।  


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