मस्तिष्क जैसा कृत्रिम नेटवर्क का विकास, दिमाग के क्रियाओं की नकल करने में है सक्षम
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने सिल्वर धातु को शाखा युक्त द्वीपों और नैनो कणों को नैनोगैप पृथक्कीकरण के साथ जैव-न्यूरॉन्स और न्यूरोट्रांसमीटर के समान बनाने के लिए तैयार किया है जहां गोलाकार कणों में फिल्म के टूटने की प्रक्रिया निरंतर होती है।
नई दिल्ली, आइएसडब्ल्यू। मस्तिष्क हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है, जो हमारे शरीर को नियंत्रण में रखता है। हाल ही में भारतीय विज्ञानियों ने आर्टिफिशिएल इंटेलीजेंस की मदद से एक ऐसा उपकरण विकसित किया है, जो मानव मस्तिष्क की क्रियाओं की नकल करने में सक्षम है। यह आर्टिफिशिएल इंटेलीजेंस आधारित एक न्यूरोमॉर्फिक उपकरण है, जो मस्तिष्क से कुशल कंप्यूटिंग क्षमता प्राप्त कर मानव मस्तिष्क के ढांचे की नकल कर सकता है।
विज्ञानी लंबे समय से एक ऐसा उपकरण विकसित करने का प्रयास कर रहे थे, जो बाहरी सपोर्टिंग (सीएमओएस) सर्किट की सहायता के बिना जटिल मनोवैज्ञानिक व्यवहारों की नकल करने में सक्षम हो। जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च (जेएनसीएएसआर), बेंगलुरु के विज्ञानियों ने एक सरल स्व-निर्माण विधि के माध्यम से जैविक तंत्रिका नेटवर्क जैसा एक आर्टिफिशियल सिनैप्टिक नेटवर्क (एएसएन) बनाने का तरीका खोज निकाला है।
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने सिल्वर धातु को शाखा युक्त द्वीपों और नैनो कणों को नैनोगैप पृथक्कीकरण के साथ जैव-न्यूरॉन्स और न्यूरोट्रांसमीटर के समान बनाने के लिए तैयार किया है, जहां गोलाकार कणों में फिल्म के टूटने की प्रक्रिया निरंतर होती है। ऐसे आर्किटेक्चर के साथ उच्च किस्म की अनेक बौद्धिक गतिविधियों का अनुकरण किया जाता है। फैब्रिकेटेड आर्टिफिशियल सिनैप्टिक नेटवर्क (एएसएन) में सिल्वर एग्लोमेरेट्स नेटवर्क शामिल हैं, जो अलग-अलग नैनो कणों से भरे नैनोगैप्स द्वारा पृथक किया गया है। उन्होंने पाया कि उच्च तापमान पर सिल्वर फिल्म को गीला करने से जैव-तंत्रिका नेटवर्क से मिलते-जुलते नैनोगैप्स द्वारा अलग किए गए द्वीप संरचनाओं का निर्माण होता है।
प्रोग्राम किए गए विद्युत संकेतों का एक रियल वर्ल्ड स्टिमुलस के रूप में उपयोग करते हुए इस वर्गीकृत संरचना ने सीखने की विभिन्न गतिविधियों जैसे कि अल्पकालिक स्मृति (एसटीएम), दीर्घकालिक स्मृति (एलटीएम), क्षमता, अवसाद, सहयोगी शिक्षा, रुचि-आधारित शिक्षा, पर्यवेक्षण का अनुकरण किया गया। सिनैप्टिक थकान और इसमें होने वाले आत्म-सुधार की भी नकल की गई।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने बताया कि प्रकृति के पास विकास के माध्यम से नए रूपों और कार्यो को करने के लिए असाधारण समय और विविधता है। प्रकृति और जीव विज्ञान से नई प्रक्रियाओं, प्रौद्योगिकियों, सामग्रियों और उपकरणों को सीखना और अनुकरण करना भविष्य की प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है, जो मानव निíमत प्रौद्योगिकियों के साथ जीवन से भरी दुनिया को तेजी से एकीकृत करेंगे।
जेएनसीएएसआर टीम की यह उपलब्धि हाल ही में 'मेटिरियल्स होराइजन्स' शोध पत्रिका में प्रकाशित की गई है।