Move to Jagran APP

कोरोना वैक्सीन की खरीद को लेकर अमीर देशों में होड़, क्या पीछे रह जाएंगे गरीब मुल्क?

कोविड-19 वैक्‍सीन को जल्‍द से जल्‍द तैयार करने की होड़ जहां विभिन्‍न कंपनियों में मची है वहीं इसकी पहले खरीद को लेकर भी कई देशों में होड़ लगी हुई है। हर देश सबसे पहले इसकी उपलब्‍धता सुनिश्चित करना चाहता है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Mon, 23 Nov 2020 09:14 AM (IST)Updated: Tue, 24 Nov 2020 07:30 AM (IST)
कोरोना वैक्सीन की खरीद को लेकर अमीर देशों में होड़, क्या पीछे रह जाएंगे गरीब मुल्क?
कोविड-19 वैक्‍सीन खरीद को लेकर मची है होड (फाइल फोटो)

नई दिल्‍ली (जेएनएन)। फिलहाल मॉडर्ना, फाइजर व गेमेलिया की कोरोना वैक्सीन के तीसरे चरण के परीक्षण परिणामों की अंतरिम रिपोर्ट सामने आई है, लेकिन देशों के बीच वैक्सीन को हासिल करने की होड़ मच गई है। विकसित देश किसी भी कीमत पर वैक्सीन खरीदने में सक्षम हैं। विकासशील देश भी उसे हासिल करने की क्षमता रखते हैं, लेकिन इस दौड़ में गरीब देश काफी पिछड़ जाएंगे। देशों के बीच वैक्सीन पाने की होड़ कई अन्य विसंगतियों को भी जन्म देगी।

loksabha election banner

6 अरब से ज्‍यादा खुराक का हो चुका है समझौता 

परीक्षण के अंतरिम परिणाम बताते हैं कि दो कोरोना वैक्सीन काफी असरदार साबित हो सकती हैं। कई अन्य परीक्षण के अंतिम दौर में पहुंच चुकी हैं और बड़ी संख्या में वैक्सीन ऐसी भी हैं, जिनके सकारात्मक रुझान सामने आए हैं। हालांकि, किसी भी वैक्सीन को अभी हरी झंडी नहीं मिली है, लेकिन देशों के बीच इनकी खुराक की खरीद की होड़ लग गई है। उत्तरी कैरोलिना स्थित यूएस-ड्यूक यूनिवर्सिटी का एक अहम शोध केंद्र देशों व कंपनियों के बीच के सौदों पर नजर रख रहा है। इसका मानना है कि भरोसेमंद वैक्सीनों की 6.4 अरब खुराक पहले ही बिक चुकी है, जबकि 3.2 अरब खुराक के लिए बातचीत चल रही है। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस से संबंधित ग्लोबल हेल्थ पॉलिसी की असिस्टेंट प्रोफेसर क्लेयर वेनहाम का कहना है कि दवा उद्योग में अग्रिम खरीदारी का प्रचलन है। इससे उत्पाद के तेजी से विकास व परीक्षण के लिए फंड जुटाने में मदद मिलती है।

जिसका निवेश उसकी दावेदारी ज्‍यादा 

वेनहाम कहती हैं कि जो शुरुआती दौर में उत्पाद के लिए निवेश करेगा, वैक्सीन पर उसका दावा ज्यादा होगा। इस क्रम में उच्च आय वाले विकसित देश आगे निकल जाएंगे, क्योंकि उन्होंने काफी निवेश कर रखा है। कुछ मध्यम आय वाले देश भी वैक्सीन की खरीदारी में सक्षम हैं। ब्राजील व मेक्सिको जैसे देश जिन्होंने क्लीनिकल ट्रायल की मेजबानी की है, वे वैक्सीन की खरीद में लाभ उठाएंगे। उदाहरण के लिए, सीरम इंस्टीट्यूट इसके लिए प्रतिबद्ध है कि वह कोरोना वैक्सीन की जितनी खुराक का उत्पादन करेगी, उनमें से आधी का वितरण देश के भीतर करेगी। इसी प्रकार इंडोनेशिया ने चीनी वैक्सीन के साथ करार कर रखा है, जबकि ब्राजील का यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड व एस्ट्राजेनेका के साथ समझौता है।

हर विकल्प पर नजर रख रहे प्रमुख देश

अभी तक यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कि कौन सी वैक्सीन कारगर साबित होगी, इसलिए कुछ देश कई विकल्पों पर हाथ रखे हुए हैं। हालिया आंकड़ों के अनुसार, भारत, यूरोपीय यूनियन, अमेरिका, कनाडा व ब्रिटेन ऐसे देश हैं, जिन्होंने भरोसेमंद वैक्सीन की ज्यादा खुराक आरक्षित कर रखी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि नेता अपनी जनता को प्राथमिकता देना चाहते हैं, क्योंकि वे अपनी जनता के प्रति जवाबदेह हैं। हालांकि, वैश्विक महामारी के प्रति उनकी जवाबदेही सामूहिक होनी चाहिए।

ज्यादा वैक्सीन की सफलता लोगों के लिए बेहतर

ड्यूक के विश्लेषण का नेतृत्व करने वाले एंडिया टेयलर के अनुसार, अग्रिम खरीदारी समझौते और अगले दो वर्षो में वैक्सीन उत्पादन की क्षमता पर गौर करें तो पाएंगे कि अमीर देशों के पास वैक्सीन होगी और गरीब देश इस दौड़ में पीछे रह जाएंगे। यह कोई नहीं जानता कि वैक्सीन निर्माण में पूरी तरह सफलता कब मिलेगी और बाजार में वैक्सीन कब आएगी, इसके बावजूद देश उनकी अग्रिम खरीदारी की दौड़ में शामिल हो गए हैं। ‘टिल वी वीन : इंडियाज फाइट अगेंस्ट द कोविड-19 पैंडेमिक’ नामक किताब के सह लेखक चंद्रकांत लहरिया के अनुसार, ‘भारत में वैक्सीन के विकास और उत्पादन क्षमता को देखते हुए मैं कह सकता हूं कि उसकी कीमत बहुत जल्द कम हो जाएगी। इसके बाद कम व मध्यम आय वाले देश इसे खरीदने में सक्षम होंगे।’

असमानता की कहानी है पुरानी

वैश्विक स्वास्थ्य में असमानता नई नहीं है। डब्ल्यूएचओ का भी मानना है कि हर साल करीब दो करोड़ नवजात को पर्याप्त वैक्सीन नहीं मिल पाती। 90 फीसद दवाएं विश्व की 10 फीसद आबादी तक ही पहुंच पाती हैं। गावी वैक्सीन एलायंस, डब्ल्यूएचओ व कोइलिशन फॉर इपिडेमिक प्रिपेयर्डनेस इनोवेशन (सीईपीआइ) अपने सदस्य देशों के लिए उतनी वैक्सीन खरीद लेना चाहते हैं, जिससे उनकी कम से कम 20 फीसद आबादी का टीकाकरण हो जाए।

अलग से भी हो रहे समझौते

ब्रिटेन व कनाडा समेत अन्य देश जिन्होंने कोवैक्स पहल में साझेदारी की है, वे अलग से भी वैक्सीन के लिए समझौते कर रहे हैं। टेयलर कहते हैं, ‘वे कोवैक्स में तो निवेश कर ही रहे हैं, अलग से भी समझौते कर रहे हैं ताकि मांग बढ़ने पर आपूर्ति बढ़ाई जा सके।’ 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.